फर्रुखाबाद परिक्रमा- कानून मंत्री से तो कहीं अधिक जागरूक निकला “बाबूलाल”

EDITORIALS FARRUKHABAD NEWS

महान सूर्याकिरण बद्री विशाल महाविद्यालय के 70 वर्षीय सेवानिवृत्त चतुर्थश्रेणी कर्मचारी बाबूलाल ने झूमते हुए यह कहकर वोट डाला, यह तो हमारा अधिकार है और कर्तव्य। हां इसे हम कैसे भुला सकते हैं?

अंधेरे की पराकाष्ठा, भारत जैसे महान लोकतंत्र के विधि मंत्री और उनकी पत्नी ने 19 फरवरी को अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं किया। हम तुम्हारी नजरों में कुछ भी नहीं हैं। कोई भी तुम्हारे सामने कुछ भी नहीं है परन्तु तुम्हारे इस अक्षम्य अपराध के कारण हम भले ही राइट टू रिकाल नहीं तुम्हें अपना प्रतिनिधि मानने से इंकार करते हैं। अन्ना हजारे की आलोचना करने वालों को पहले अन्ना जैसी सादगी और ईमानदारी अपनानी चाहिए। जय हिन्द।

राष्ट्रपति जी ध्यान रखें (26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर दिये गये भाषण के ठीक एक माह बाद) लोकतंत्र के पेड़ में लगे सड़े फलों को गिराने के लिए पेड़ों को हिलाने से उसके गिरने का तब तक कोई खतरा नहीं जब तक लोकतंत्र की जड़ों को निष्पक्ष और निर्भीक अधिकतम मतदान से सींचा जाता रहेगा।

और अंत में…………. अपनी बात
अगस्त 2011 से कल तक आप से बात नहीं की-

लोकसभा के चुनाव के बाद से ही मतदान प्रतिशत बढाने और चुनाव को कम खर्चीला करने की जो सनक सवार हुई वह बदस्तूर जारी है और जारी रहेगी। हमारा सदैव से यह मानना है कि राजनीति की सारी गंदगी और सड़ांध मतदान की भारी बरसात से ही समाप्त किया जा सकता है। इस बार का रिकार्ड तोड़ मतदान इस दिशा में एक शुभ संकेत है। जिसे नोटों और दारू के बेहिसाब वितरण में कल्पित करने का भरपूर प्रयास किया है। हम न हताश हैं और न निराश, लोकतंत्र के भगवान कहे जाने वाले मतदाता ने जिस प्रकार झूमकर मतदान किया, जिसने हमारी हिम्मत और हौसले को कई गुना बढ़ा दिया है।

हमने कभी यह दावा नहीं किया कि हम दूध के धुले हैं और मुहं में सोना डाले हैं। हम भी मानवीय कमजोरियों और कमियों से मुक्त नहीं है। परन्तु हमारा यह प्रयास सदैव रहता है कि गलतियों, कमियों और कमजोरियों की पुनरावृत्ति न हो। अपने इस दिशा में किये जा रहे प्रयासों की सफलता, असफलता पर निर्णय देने का अधिकार भी मैने बिना किसी भेदभाव के समाज को सौंपा है और उसका हर निर्णय मुझे स्वीकार है।

धूप ने, जल ने, हवा ने किस तरह पाला इन्हें,
इन दरख्तों की कहानी आंधियों को क्या पता।

लोकतंत्र के इस बार के महापर्व में जाति धर्म की बेड़ियों को तोड़ने का कार्य बहुत ही उत्साह के साथ प्रारंभ हुआ है। यही कारण है कि हर हार और जीति के कगार पर खड़े कमजोर से कमजोर और मजबूत से मजबूत प्रत्याशी भी यह कहने को मजबूर हो गये हैं कि उन्हें हर मतदान केन्द्र पर और हर जाति बिरादरी का वोट मिला है। जैसे-जैसे मतदान का प्रतिशत बढ़ेगा जाति और धर्म के नाम पर वोट बैंक की राजनीति कराने वालों का मुहं काला होगा ही। पैसे दारू सहित विविध प्रलोभनों, धमकी, धौंस और षड्यंत्रों के सहारे वोट बटोरने वालों का बाजार भी ठंडा हो जायेगा। इसलिए हताश, निराश होने की कोई आवश्यकता नहीं है, सफर लम्बा है, जारी रहेगा। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र सबसे अच्छा लोकतंत्र बनकर रहेगा।

वे बजह बोझ कोई यूं दिल पे न भारी रखिये,
जिंदगी जंग है, इस जंग को जारी रखिये।

असफलता का मौसम सफलता के बीज बोने का सबसे श्रेष्ठ समय होता है। हम तैयार हैं, आप भी तैयार रहिये।


बाकी बातें अगली बार मियां मियां झान झरोखे और मुन्शी हरदिल अजीज के चुनाव के दौरे से लौटने के बाद विस्तार से-

सतीश दीक्षित
एडवोकेट