धन तेरस के दिन घर का कोना-कोना हो रोशन

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हिन्‍दू धर्म की मान्‍यता के मुताबिक दीवाली के ठीक पहले पड़ने वाली त्रयोदशी यानी धनतेरस के दिन मां लक्ष्‍मी घर पर आती हैं। आज का दिन भले ही यमराज का होता है, लेकिन मां लक्ष्‍मी इस दिन विचरण करती हैं और ऐसे घर में जाना पसंद करती हैं, जहां शांति और स्‍वच्‍छता हो। लखनऊ के पंडित आचार्य राम जी मिश्रा बता रहे हैं कि धनतेरस पर अपने घर को कैसे सजायें-

इस साल धनतेरस आज पूरे देश में बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है| माना जाता है कि मां लक्ष्‍मी उसी के घर पर आती हैं, जिसका द्वार एवं अंदर से घर सबसे स्‍वच्‍छ एवं सुंदर दिखे। लिहाजा धनतेरस के दिन ही अपने घर के द्वार को सजा देना चाहिये। द्वार पर जितनी रौशनी हो उतना अच्‍छा है। धनतेरस के दिन घर के मुख्‍य द्वार पर केसर के तिलक से सतिया बनायें। साथ ही द्वार के ऊपर की ओर बीच में ‘श्री’ लिखें।

घर की तिजोरी या लॉकर जिसमें आप धन व गहने रखते हों उन्‍हें दक्षिण-पश्चिम कोने में होना चाहिये। लॉकर के अंदर शीशे लगे हों तो उसमें सकारात्‍मक ऊर्जा (पॉजिटिव एनर्जी) बनी रहती है और साल भर तक घर में धन की कमी नहीं होती।

धनतेरस के दिन घर का कोना-कोना रौशन होना चाहिये। ऐसी वस्‍तुएं जो काम की नहीं रही हैं जैसे पुराना लोहा, रद्दी, कबाड़, आदि, उन्‍हें धनतेरस से पहले ही बाहर निकाल देना चाहिये। घर के मुख्‍य द्वार या खिड़की के दरवाजों, कुर्सी, मेज, सोफा, आदि से चर-चर की आवाज़ नहीं आनी चाहिये। लिहाजा साफ-सफाई के साथ इसमें या तो तेल डालना चाहिये या फिर उसकी मरम्‍मत करवायें। ऐसा इसलिए क्‍योंकि लक्ष्‍मी माता को आवाज़ पसंद नहीं होती।

घर को पीले रंग के फूलों से सजायें। घर में चमेली या चंपा के फूलों की खूशबू का इस्‍तेमाल करें। यदि आप घर में अष्‍टलक्ष्‍मी श्रीयंत्र लगाना चाहते हैं तो वो सोने या स्‍फटिक का होना चाहिये। चांदी का कतई नहीं होना चाहिये।

ताम्‍बे की तश्‍तरी पर किसी भी अनाज (चावल का इस्‍तेमाल सबसे उत्‍तम) से अष्‍टदल कमल बनायें और उसके बीच में लक्ष्‍मी चरण रखें। अब इस थाली को पूजाघर में रख दें। धनतेरस के दिन से दीवाली तक रोज़ाना सुबह-शाम लक्ष्‍मी माता की आरती करें। दाहिनावर्ती शंख में जल डालकर पूरे घर में छिड़कें।

जिस प्रकार देवी लक्ष्मी सागर मंथन से उत्पन्न हुई थी उसी प्रकार भगवान धनवन्तरि भी अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं। देवी लक्ष्मी हालांकि की धन देवी हैं परन्तु उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए आपको स्वस्थ्य और लम्बी आयु भी चाहिए यही कारण है दीपावली दो दिन पहले से ही यानी धनतेरस से ही दीपामालाएं सजने लगती हें।

कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही धन्वन्तरि का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है । धन्वन्तरी जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरी चुकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें 13 गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर धनिया के बीज खरीद कर भी लोग घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं।

प्रथा

धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ है सुखी है और वही सबसे धनवान है। भगवान धन्वन्तरी जो चिकित्सा के देवता भी हैं उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है। लोग इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हें।

पूजन एवं खरीददारी के मुहूर्त

इस मंत्र के साथ पूजन करने से अच्‍छे फल प्राप्‍त होते हैं। इस बार धन त्रयोदशी 24 अक्टूबर दिन सोमवार को मध्यान्ह 12:31 बजे से 25 अक्टूबर दिन मंगलवार को प्रातः 9:02 बजे तक है। प्रदोष व्यापनी त्रयोदशी 24 अक्टूबर को मनाई जायेगी परन्तु उदयव्यापनी त्रयोदशी 25 अक्टूबर को है।

खरीददारी का शुभ मुहूर्त- 24 अक्टूबर 2011, प्रातः 6:30 बजे से रात्रि 12:40 बजे तक है।
व्यवसाय के लिए शुभ मुहूर्त- 24 अक्टूबर 2011, मध्यान्ह 12:30 बजे से सांय 6:30 बजे तक।