बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में संक्रामक रोगों ने पैर पसारे

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फर्रुखाबाद: एक तरफ बाढ़ की विभीषिका ने जहां ग्रामीणों पर कहर बरसाया। वही जलस्तर घटने पर संक्रामक रोगों ने अपने पांव पसारने शुरू कर दिये। कुछ लोग तो महज राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए उनके दरवाजे पर पहुंचते हैं। उनकी पीड़ा कोई नहीं समझता। लेकिन उन गांवों में चिकित्सीय विभाग की कोई टीम नहीं पहुंचती जो गांव पूरी तरह पानी से घिरे हुए हैं। प्रशासन भी इस तरफ से आंखे फेरे हुए है। जिस प्रकार पिछले वर्ष सामाजिक संस्थाएं बाढ़ग्रसित गांवो के निवासियों की मदद के लिए आगे बढ़कर बाढ़राहत सामग्री उपलब्ध करा रहे थे लेकिन इस वर्ष उन्होनें भी अपने हाथ खड़े कर लिए हैं।

बाढ़ प्रभावित गांवों में बाढ़ का पानी तो घटने लगा है। वहीं कटान शुरू हो गया है। इसके साथ ही इन गांवों में खांसी, जुखाम, बायरल फीवर, मलेरिया, डायरिया, पेटदर्द, दस्त आदि संक्रामक बीमारियों से लोग ग्रसित होने लगे हैं। शायद ही ऐसा कोई घर बचा हो जहां परिवार के एक दो लोग इन बीमारियों से ग्रसित न हो। वहीं बाढ़ प्रभावित राईपुर चिनहट, तल्फी नगला इकलहरा आदि गांवों के पालतू पशुओं में भी खुरपका, गला घोटू, बुखार आदि संक्रामक रोग फैले हुए हैं।

वहीं गाँव के मनीराम, धीरसिंह ने बताया कि हमारे गांवों में कोई भी डाक्टरों की टीम नहीं आती है। अगर कभी किसी गांव में पहुंच भी गयी तो हमारे पशुओं को टीकारण आदि की सुविधाएं भी नहीं मिल पाती जिससे रोगों की रोकथाम हो सके। गांव इकलहरा निवासी रामसेवक पुत्र मोहन ने बताया कि मेरी भैंस कई दिनों से बीमार है। मैं बाजार से मंहगी दवाई लेकर आया हूं।

बाढ़ की इस विभीषिका से सब कुछ गवां चुके ग्रामीणों के सामने अब संक्रामक रोगों का खतरा तेजी से बढ़ा हुआ है। जिस कारण उनके पास इलाज कराने के लिए एक फूटी कौड़ी भी नहीं है। उन्हें अपने परिवार के भूखे पेट की आग बुझाने के लिए दूसरों के ऊपर निर्भर रहना पड़ रहा है। ऐसे मे वे अपने जीवन के ऊपर मंडराते बीमारियों के खतरे के निदान के लिए कहा से पैसे लायें। बाढ़पीड़ितों ने प्रशासन से चिकित्सीय सुविधाएं उपलब्ध कराये जाने की मांग की है।