प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद बाजार मे पेड़ों पर सजी थी शहीदों की अर्थियां

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फर्रुखाबाद: अंग्रेजों के विदेशी शासन के अत्याचार एवं भयंकर आर्थिक शोषण के विरुद्ध सन १८५७ में जो मेरठ में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम प्रारम्भ हुआ उसमे फर्रुखाबाद  भी प्रभावित हुआ| जनपद के भारतीय सैनिकों में विस्फोट होने के पूर्व से ही इस अफवाह से असंतोष था|  ९ मई को जब देशी सैनिकों का विद्रोह दिखाई दिया तो अंग्रेज अधिकारी यूरोपियन अधिकारी नदी के पार चले गए| परंतु जब क्रांति विफल हुई तो मऊदरवाजा से फतेहगढ़ तक मुख्य मार्ग पर पीपल व इमली के पेड़ों पर शहीदों की लाशों की नुमाइश सजी थी।

२३ मई को अलीगढ़ के विद्रोह की खबर मिली| एटा भी विद्रोह की हवा से प्रभावित हुआ| २० मई को १०वी देशी रेजीमेंट में विद्रोह के लक्षण दिखाई दिए| अब कंपनी ने नवाब तफज्जुल हुसैन खाँ की पेंशन बंद करने का हुक्म जारी किया|

१६ जून १८५७ को डुगडुगी द्वारा एलान किया गया कि ” खल्क अल्लाह का मुल्क बादशाह का हुक्म नवाब रईस बहादुर का ” | १८ जून को ४१वीं  पलटन ने जेल तोड़ दी और कैदियों को मुक्त कर दिया| २५ जून १८५७ को क्रांतिकारियों ने फतेहगढ़ के किले पर आक्रमण किया| जून १८५७ के अंत तक फतेहगढ़  का किला भी ब्रिटिश शासकों के अधिकार में न रह सका| ४ जुलाई १८५७ को अंग्रेजों ने किला छोड़ दिया| जब पहली नाव बिठूर पहुँची तब सभी अंग्रेजों को कानपुर के क्रांतिकारियों ने मौत के घाट उतार दिया| दूसरी नाव को फतेहगढ़ किले के नीचे १० मील गंगा की धार में रोक लिया गया और सभी को मार दिया गया|

कोतवाल गुलाम अली का सन १८५७ की क्रान्ति में योगदान-

गुलाम अली १८५७ की क्रान्ति के पूर्व मोहम्दाबाद का कोतवाल था| जब थाना छोड़कर यूरोपियन अधिकारी किले में चले गए तो गुलाम अली फर्रुखाबाद चला आया और आजादी की लड़ाई में कूद पडा| २४ जून १८५७ को फतेहगढ़ पर आक्रमण हुआ गुलाम अली ने ३ जुलाई १८५७ तक यूरोपियनों द्वारा किला छोड़ने तक क्रांतिकारी मोर्चे को संभाले रखा|

२३ अक्टूवर सन १८५७ तक फर्रुखाबाद पर नवाब तफज्जुल हुसैन खाँ का अल्पकालीन शासन रहा| ठाकुर पाण्डेय को फतेहगढ़ का कलेक्टर नियुक्त किया गया| सम्पूर्ण जनपद को ६ तहसीलों में विभक्त किया गया, १० थाने स्थापित किये गए| फतेहगढ़ और कानपुर मार्ग पर सैनिक नियुक्त किये गए| ३ दिसम्बर १८५७ को नवाब के फतेहगढ़ का नाजिम एक बड़ी सेना लेकर अंग्रेज शासकों के विरुद्ध इटावा पहुंचा था| खुदागंज में अंग्रेजी सेना द्वारा पराजित होने पर नवाब को फर्रुखाबाद छोड़ना पडा|

१७ मार्च १८५८ को क्रांतिकारी नेता मोहसिन ने एक बड़ा समूह एकत्र किया| अप्रैल १८५८ में ब्रिगेडियर सीटन ८२वी पलटन के ६०० सैनिकों, ४०० सिक्खों, ५ तोपों के साथ बन गाँव के पास पहुंचा| २२ अप्रैल १८५८ में जनरल बाल्मोट ने फर्रुखाबाद जनपद में स्थित अल्लागंज के क्रांतिकारी निजाम अली की सेना को परास्त किया| इस संघर्ष में निजाम अली खाँ शहीद हुए| ३० मई १८५८ को क्रांतिकारियों ने कम्पिल और रानीगंज पर धावा बोला और उसे अपने बस में कर लिया| सन १८५७ का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का अंत हुआ| २९ जनवरी १८५९ को फर्रुखाबाद के नवाब तफज्जुल हुसैन को पुलिस के पहरे में फतेहगढ़ लाया गया| ३ जजों के सामने मुकद्दमा चला ह्त्या करने के अपराध में नवाब तफज्जुल हुसैन को फांसी की सजा सुनायी गई| लेकिन उनकी इच्छानुसार उन्हें मक्का जाने की अनुमति दे दी गयी|

सन १८८२ में नवाब ने मक्का में ही जीवन की अंतिम सांस ली| सैकड़ों लोगों ने विदेशी शासन के विरुद्ध लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए| क्रांतिकारी नेता निजाम अली खाँ, इस्माईल खाँ, नियाज मुहम्मद, मोहसीन अली खाँ की आजादी के संग्राम में देश भक्त पकडे गए| उन्हें या तो फांसी पर लटका दिया गया या तो गोली मार दी गई|

नवाब सखावत हुसैन खाँ को १३ सितम्बर १८६३ में पीपल के पेंड से लटका कर फांसी दे दी गयी| फतेहगढ़, फर्रुखाबाद, कायमगंज और पटियाली में हथियार तैयार करने के लिए फैक्ट्रियां काम कर रही थीं| उस समय फतेहगढ़ में २ फैक्ट्रियां थीं मोहल्ला भूसा मंडी और मोहल्ला ग्वाल टोली में| इन फैक्ट्रियों से तैयार हथियार क्रांतिकारियों को प्रदान किये जाते थे|

फर्रुखाबाद जनपद में जब सन १९३० का सत्याग्रह प्रारम्भ हुआ| सर्व प्रथम स्वामी रामानंद ने नमक क़ानून भंग यात्रा की| सन १९३० में फर्रुखाबाद के सरकारी हाई स्कूल पर राष्ट्रीय तिरंगा झंडा फहराने के प्रसंग में गिरफ्तार हुए और उन्हें जेल में सजा मिली थी| सन १९२१ में कांग्रेस को गैर कानूनी घोषित कर दिया गया |