‘पीएम इन वेटिंग’ की लिस्ट से आडवाणी का नाम गायब

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लखनऊ। भाजपा केन्द्र की सत्ता में आयी तो देश का अगला प्रधानमंत्री कौन बनेगा। अलट बिहारी बाजपेयी के बाद भाजपा में यदि सबसे बड़ा कोई नाम है तो वह है लालकृष्ण आडवानी। हालांकि आडवानी के नाम पर पार्टी के अधिकांश सदस्य खुले दिल से सहमति नहीं दे पा रहे हैं। इसी पशोपेश की स्थिति से उबरने के लिए राजधानी में पार्टी के बड़े नेता एकत्र हो रहे हैं।

उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव की तैयारियों की आड़ में भाजपा नये प्रधानमंत्री का नाम खोजने का प्रयास कर रही है। सुषमा स्वराज व अरूण जेटली प्रधानमंत्री पद के प्रमुख दावेदारों में से हैं प्रदेश की राजधानी में होने वाली बैठक में पार्टी नेता श्री आडवानी को मनाने का भी प्रयास करेंगे कि वे प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को स्वत: ही छोड़ दें।

दो दिन बाद लखनऊ के सांइटिफिक कन्वेंशन सेन्टर में भारतीय जनता पार्टी के दर्जन भर बड़े नेता एकत्र होंगे। राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक के लिए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर मुरली मनोहर जोशी व विनय कटियार समेत कई दिग्गज नेता मौजूद होंगे। भाजपा प्रदेश इकाई का कहना है कि कार्यसमिति की बैठक में राज्य के विधान सभा चुनावों की रणनीति तय की जाएगी जबकि हकीकत कुछ और ही है।

विधानसभा चुनाव के लिए बड़े नेताओं का एक साथ आना लाजिमी नहीं है। पार्टी सूत्रों के अनुसार बैठक का मुख्य मुद्दा प्रधानमंत्री पद के दावेदार का नाम खोजना है। लालकृष्ण आडवानी भले ही उप प्रधानमंत्री के पद पर रह चुके हों परन्तु पार्टी का कोई भी नेता उन्हें एक अच्छा प्रधानमंत्री नहीं मानता है। पार्टी में श्री आडवानी की छवि एक कट्टरवादी नेता की है जो किसी भी परिस्थति में झुकने को तैयार नहीं होता।

राजनेताओं का कहना है कि लोकतंत्र के लिए यह बेहतर संकेत नहीं है और व भी ऐसी दशा में जब सरकार जोड़तोड़ कर बनायी जाए। भाजपा नेता यह मानते हैं कि देश की सत्ता में आने के लिए उसे कई अन्य दलों का साथ लेना होगा जिसके लिए बहुत सयंम रखना पड़ता है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए पार्टी चाहती है कि प्रधानमंत्री पद पर के लिए ऐसा नाम चयन किया जाए जो सभी घटक दलों में सामंजस बनाकर देश चलाए।

प्रधानमंत्री पद के दावेदारों में सुषमा स्वराज व अरूण जेटली का नाम तेजी से उभर कर सामने आ रहा है। लम्बे समय से पार्टी में काम कर रही तेज तर्रार नेता सुषमा स्वराज को प्रबल दावेदार कहा जा रहा है लेकिन देखना यह होगा कि कार्यसमिति की बैठक में कितने नेता उनके नाम पर सहमति जताते हैं। जबकि दूसरे नम्बर पर अरूण जेटली हैं जिनके समर्थन में राजनाथ सिंह पहले ही तैयार हो चुके हैं। राजधानी सिंह का प्रयास होगा कि उनके समर्थक श्री जेटली के पक्ष में हामी भरे। उधर मुरली मनोहर जोशी भी अपने समर्थन में वोट जुटाने का प्रयास कर रहे हैं। अब सबसे बड़ी समस्या है लालकृष्ण आडवानी की जिन्हें राजी करने का प्रयास सभी नेताओं को मिलकर करना होगा क्योंकि जब तक श्री आडवानी हामी नहीं भरते हैं किसी भी नेता की दाल गलने वाली नहीं है।