फर्रुखाबाद:(जेएनआई ब्यूरो) भागीरथी के तट पर उड़ रही आस्था की लहरों के किनारें बने मेला रामनगरिया के सांस्कृतिक पांडाल में गुरुवार का दिन उन लोगों के लिए खास था जो आल्हा सुनने के शौक़ीन थे| आल्हा की गूंज पर आस्थावानों ने डुबकी लगाई। आल्हा गायक मुन्नालाल राठौर नें रोचक प्रसंग सुनकर श्रोता मस्त दिखे| अपने चिर परिचित हाव-भाव से ख्याति प्राप्त कलाकार ने वीरता व राष्ट्र स्वाभिमान का भाव भरकर प्राचीन कला को जीवंत रखने का संदेश दिया। कार्यक्रम में वीर गाथा काल के वीरो की वीरता का कथानक से कला का परिचय दिया।
आल्हा के विवाह का बड़े ही रोचक ढंग से प्रस्तुति किया जिसे सुनकर लोगों के रोंगटे खड़े हो गए। आल्हा सम्राट की लहराती हुई तलवार उनके द्वारा वीर रस के बखान की पुष्टि कर रही थी। इसी बीच जब गायक नें बड़े लड़इया महोबा वाले, जिनसे हार गई तलवार, गढ़ महुबे के आल्हा उदल, जिनकी मार सही न जाय एक खें मारें दो मर जावें तीसर खोंफ खाय मार जाय! गाया तो लोगों के उत्साह का ठिकाना नहीं रहा । आल्हा के माध्यम से तुष्टिकरण की राजनीति व समाज में बढ़ रहे कुरीतियों पर कुठाराघात किया। आल्हा के माध्यम से ही आल्हा गायक ने कहा कि हमारे पाश्चात्य सभ्यता के चंगुल में फंसने से लोकगीत का ह्रास होता चला रहा है।अगर समय रहते हम लोग नही सोचे तो आने वाले समय में हमारी परंपराएं विलुप्त हो सकती है।