स्कूल की जगह कूड़े के ढेर में भविष्य तलाश रहा बचपन

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फर्रुखाबाद:(मोहम्मदाबाद) देश का भविष्य बच्चों को शिक्षित करने के लिए सरकार ने कई स्कीमें चला रखी हैं। बच्चों में रोजाना स्कूल जाने की आदत डालने के लिए सरकार ने मिड डे मील योजना भी चलाई है। सरकार ने राइट टू एजुकेशन एक्ट भी बना दिया है। सर्वशिक्षा अभियान, राष्ट्रीय माध्यम शिक्षा अभियान, गरीबों को मुफ्त किताबें व छात्रवृत्ति जैसी सुविधा भी दी जा रही है। इसके बावजूद अनपढ़ बच्चों की संख्या कम नहीं हो रही है। हर साल स्कूलों में न जाने वाले बच्चों को आंकड़े सामने आते हैं। आंकड़ों से साफ है कि कहीं न कहीं चूक हो रही है। जहां बच्चों को स्कूल न भेजने में अभिभावक बराबर के दोषी हैं, वहीं सरकारी सिस्टम व मशीनरी में चूक और अधिकारियों की लापरवाही भी बराबर की दोषी है। यही कारण है कि आज देश का भविष्य बच्चे सड़कों व गंदगी के ढेरों पर अपना भविष्य तलाश रहे हैं।
कूड़े की ढेर पर जिदंगी से जूझते और बीमारियों की खुली चुनौती कबूलते कुछ चुनने वालों की जमात आज अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहा है। सूरज की पहली किरण के साथ पीठ पर प्लास्टिक का थैला या बोरा लिये निकल पड़ने वाले इन बच्चों के स्वास्थ्य या सुरक्षा की गारंटी कोई लेने को तैयार नहीं। कूड़ा-कचरा व गंदगी के बीच रहने वाले को आज मानवीय संवदेना से भी परे समझा जाता है। कूड़े के बीच से लोहा, सीसा, बोतल, लकड़ी, कागज आदि चुनने वाले ये बच्चे उपेक्षा के शिकार हैं।
कूड़े-कचरे के बीच से जीविकोपार्जन के लिए कुछ चुनना इनकी नियति बन गई है। जबकि इन नौनिहालों की सुविधा, साधन व सुरक्षा के प्रति सरकारी महकमा बिल्कुल निश्चिंत सा है। चुने सामान को ले ये बच्चे कबाड़ी वालों के पास जाते हैं और कबाड़ी वाले कुछ पैसे देकर कुछ सामान खरीद लेते हैं। यह पैसा न्यूनतम मजदूरी के समान भी नहीं होता है। बावजूद जोखिम लेकर कूड़े की ढेर से दो जून की रोटी जुगाड़ करने में मशगूल रहते हैं ये।
(रक्षपाल सिंह प्रतिनिधि मोहम्मदाबाद)