हुनर के धागे से बंदियों नें “योग दरी” बुन भरे कलाकारी के रंग

FARRUKHABAD NEWS FEATURED JAIL जिला प्रशासन

फर्रुखाबाद:(दीपक-शुक्ला) तिहाड़ जेल की एक कैदी सीमा रघुवंशी द्वारा लिखी पुस्तक “तिनका-तिनका तिहाड़” पुस्तक में लिखी ‘सुबह लिखती हूं शाम लिखती हूं, इस चारदीवारी में बैठी बस तेरा नाम लिखती हूं’ इन फासलों में जो गम की जुदाई है बस उसी को हर बार लिखती हूं’| इन पंक्तियों में सलाखों के पीछे रहने का एक छुपा दर्द कविता के रूप
में पिरोकर बयां किया गया है।
क्या आपने कभी जेल के उस माहौल को महसूस किया है जहां आप एक दुनिया का हिस्सा होकर भी, एक ऐसी अकेली जगह पर हैं जहां की दीवारों से भी लोग बचकर चलना पसंद करते हैं और शायद यहां रहने वाले कैदियों के लिए दुनिया की सबसे प्यारी चीज है ‘आजादी’  जिसे हम जैसे बाहर की दुनिया में रहने वाले लोग नहीं समझ सकते। लेकिन क्या आप जानते हैं सेन्ट्रल जेल में ऐसे कई काम किए जाते हैं जो जेल को बंदीगृह नहीं बल्कि सुधारगृह के रूप में दर्शाते हैं। वैसे तो कुछ काम नये नही दशकों से कभी कम तो कभी जादा बंदी अपने हुनर का प्रदर्शन अपनी कलाकारी से करते रहे है|
इस बार केंद्र व प्रदेश सरकार की योग के लिए पहल जब सलाखों के पीछे पंहुची तो सेन्ट्रल जेल अधीक्षक एसएमएच रिजवी, जिला जेल अधीक्षक विजय विक्रम सिंह नें योग को बंदियों की दिन चर्चा में शामिल कराया| जिसके बाद बंदियों नें पहले से चल रहे दरी के काम में नई कलाकारी करने का मन जेल अधीक्षक रिजवी की सलाह पर बना लिया| बंदी सुधार गृह में बंद बंदियों नें योग के लिए दरी का ही निर्माण कर दिया|कई रंगो के धागों के साथ तरासी गयी दरी लोगों को अपने घर ले जाने के लिए आकर्षित कर रही है| योग दरी की कीमत 450 रूपये रखी गयी|
जल्द आन लाइन बिक्री के लिए होगी उपलब्ध
सेन्ट्रल जेल अधीक्षक नें जेएनआई को बताया कि आलाधिकारियों से सम्पर्क किया गया है| विभाग के द्वारा कार्यवाही होते ही योग दरी को आन लाइन बिक्री के लिए भी उपलब्ध कराया जायेगा|

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

सेन्ट्रल जेल में कैदियों के जीवन में बदलाव करने के लिए चलाई जा रही इन दिलचस्प मुहिम से सलाखों के पीछे छुपी इन कहानियों को समाज द्वारा एक नए सिरे से पढ़ने की उम्मीद की जा सकती है।