Monday, December 23, 2024
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गठबंधन करते वक्त भी नहीं भूलीं मायावती,23 साल पहले हुआ ‘गेस्ट हाउस कांड’

लखनऊ:उत्तर प्रदेश की राजनीति में धुरविरोधी माने जाने वाले बहुजन समाज पार्टी व समाजवादी पार्टी ने भी भाजपा के खिलाफ लोकसभा चुनाव को एक जंग के रूप में लिया है। लखनऊ के विख्यात गेस्ट हाउस कांड को भूलकर दोनों दल 23 वर्ष बाद एक बार फिर साथ हो गए हैं।
लखनऊ में गठबंधन का ऐलान करने के लिए बुलाई गई प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान भी मायावती को वह गेस्ट हाउस कांड याद रहा। उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रहित में हम उस कांड को भुलाकर साथ आए हैं।’ लोकसभा चुनाव 2019 में उत्तर प्रदेश में नरेंद्र मोदी को मात देने के लिए धुरविरोधी पार्टियां एक साथ आ रही हैं। इसे साबित हो गया है कि अब राजनीति अवसरों का खेल है। यहां पर कोई स्थाई कोई दोस्त या दुश्मन नहीं होता। कम से कम उत्तर प्रदेश में तो ऐसा ही होने जा रहा है। जो कल तक एक दूसरे की शक्ल देखना पसंद नहीं करते थे वो आज 23 साल की दुश्मनी भुलाकर एक मंच पर आने को तैयार हैं।
लखनऊ में एक ऐसी ऐतिहासिक तस्वीर आज देखने को मिली। इस तस्वीर में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती की साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस देखने को मिली। लोकसभा चुनाव 2019 के लिए दोनों में गठबंधन करीब फाइनल हो चुका है। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में आज सीट बंटवारे और गठबंधन को लेकर औपचारिक ऐलान हो सकता है। दोनों दलों में यह गठबंधन 23 वर्ष बाद हो रहा है। इससे पहले 1993 में भी दोनों दल भाजपा को शिकस्त देने की खातिर एक हो गए थे।
इससे पहले जब सपा-बसपा में 1993 में गठबंधन हुआ था तब प्रदेश में बाबरी विध्वंस के बाद राष्ट्रपति शासन चल रहा था। मंदिर-मस्जिद विवाद के कारण ध्रुवीकरण चरम पर था। यह सभी राजनीतिक दल समझ चुके थे। इसी के मद्देनजर प्रदेश की दो धुरविरोधी पार्टियां सपा और बसपा ने साथ चुनाव लड़ने का फैसला लिया। इस चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। गठबंधन ने चार दिसंबर 1993 को सत्ता की कमान संभाल ली। मायावती मुख्यमंत्री बनीं। दो जून, 1995 को बसपा ने सरकार से किनारा कर लिया और समर्थन वापसी की घोषणा कर दी। दोनों का गठबंधन टूट गया। बसपा के समर्थन वापसी से मुलायम सिंह की सरकार अल्पमत में आ गई। तीन जून, 1995 को मायावती ने भाजपा के साथ मिलकर सत्ता की कमान संभाली। दो जून 1995 को प्रदेश की राजनीति में जो हुआ वह शायद ही कभी हुआ हो। उस दिन एक उन्मादी भीड़ सबक सिखाने के नाम पर बसपा सुप्रीमो की आबरू पर हमला करने पर आमादा थी। उस दिन को लेकर कई बातें होती रहती हैं। यह आज भी एक विषय है कि दो जून 1995 को लखनऊ के राज्य अतिथि गृह में हुआ क्या था।
मायावती कर चुकीं हैं अखिलेश का बचाव
अखिलेश और मायावती दोनों ने साथ आने के संकेत काफी पहले से देने शुरू कर दिए थे। इस जोडी का फॉर्मूला गोरखपुर व फूलपुर में हुए उपचुनाव में निकला। जहां लोकसभा चुनाव में परचम लहराने वाली भाजपा को अपने गढ़ में शिकस्त झेलनी पड़ी। अखिलेश यादव खुद मायावती को इसकी बधाई देने उनके घर गए थे। इसमें कोई दो राय नहीं मायावती के जेहन में आज भी गेस्टहाउस कांड जिंदा है, तभी तो एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान उन्होंने इस कांड को लेकर अखिलेश यादव का बचाव किया था और कहा था कि उस वक्त अखिलेश राजनीति में आए भी नहीं थे।
क्या हुआ था उस दिन
मायावती के समर्थन वापसी के बाद जब मुलायम सरकार पर संकट के बादल आए तो सरकार को बचाने के लिए जोड़-तोड़ शुरू हो गया। ऐसे में अंत में जब बात नहीं बनी तो सपा के नाराज कार्यकर्ता व विधायक लखनऊ के मीराबाई मार्ग स्थित स्टेट गेस्टहाउस पहुंच गए, जहां मायावती ठहरी हुईं थीं। उस दिन गेस्ट हाउस के कमरे में बंद बसपा सुप्रीमो के साथ कुछ गुंडों ने बदसलूकी की। बसपा के मुताबिक सपा के लोगों ने तब मायावती को धक्का दिया और मुकदमा ये लिखाया गया कि वो लोग उन्हें जान से मारना चाहते थे। इसी कांड को गेस्टहाउस कांड कहा जाता है।

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