मेरे व्हाट्स अप में लगभग पचास ग्रुप है जिनमे से मैंने एक भी नहीं बनाया है| जिले और प्रदेश स्तर के ग्रुप है| अधिकतर पत्रकारों ने बनाये है| लगभग 10 साल क्षेत्रीय और राष्ट्रीय टीवी मीडिया में काम के दौरान प्रदेश भर में मेरा मोबाइल नंबर बटा था इसलिए आस पास के किसी प्रदेश के किसी जिले में ग्रुप बने मैं जोड़ दिया जाता हूँ| ऐसे ही एक ग्रुप में पिछले दिनों हुए जिलाधिकारियो के तबादले के साथ ही उनकी कार्यप्रणाली (गुण दोष उदहारण सहित ) का एक सन्देश वायरल हुआ| मैंने भी पढ़ा और डिलीट कर दिया|
जमाना कितना बदल गया है| अफसर के पहुचने के पहले ही उनके गुण दोष की खबर पहुच जाती है| सम्भल कर काम करने की जरुरत है| जनता का भरोसा सिस्टम से उठ रहा है| समस्या आने पर सिस्टम तो ढूंढे नहीं मिल रहा| कार्यपालिका नौकरी बचाने में लगा है| विधायिका आजीवन सत्ता में रहने की जुगाड़ में लगी है| न्यायपालिका काम के बोझ तले दबा काम कम होने का इन्तजार कर रही है| और इन सब के बीच जनता अपने अनुकूल व्यवस्था ढून्ढ रही है| मगर व्यवस्था है कि कार्यपालिका और विधायिका की सहचरी बनी हुई है|
वैसे मेरी पत्रकारिता और सोच सकारात्मक पहलु को लेकर ही रही है| पढ़ने वाला उसे किस रूप में देखे ये उस पर होता है| हम किसी कमी को लिखते है उसे सही करने के उद्देश्य से मगर जो पात्र इसमें संलग्न होता है उसे नकारात्मक ही समझ आता है|
तो नए डीएम ने चार्ज संभाल लिया है| फर्रुखाबाद की टकसाल अब उनके कब्जे में है| टकसाल से याद आया कि ये अंग्रेजो के जमाने में स्थापित प्रशासनिक व्यवस्था है| डीएम तब कलेक्टर कहलाते थे| और उनकी जिम्मेदारी ब्रिटिश सरकार के लिए राजस्व कलेक्ट करने की होती थी| राजस्व वसूली में सख्ती करनी पड़ती थी और कई बार विद्रोह हो जाता था उसे कुचलने के लिए उन्हें कई शक्तिया प्रदान की गयी थी| धारा 144, और आई पी सी 147, 151 जैसी अन्य कई| तब राजस्व का बड़ा भाग खेती की जमीन और अफीम आदि से आता था| अब लगान तो नगण्य है| आज़ादी के बाद लगान के विरोध करने और उसे देने में आनाकानी करने के सामूहिक किस्से सुनने तक को नहीं मिलते| मगर कुछ लीक पीटी परम्पराए अब भी सत्य नारायण की कथा की तरह चल रही है जिसमे कथा कलावती और लीलावती की है, सत्यनारायण की कथा तो कहीं है नहीं|
उस जमाने में जो राजस्व जमा होता था उसे जिले की टकसाल में रखा जाता था| उसका इंचार्ज कलेक्टर होता था| तो आज भी उसी टकसाल के रजिस्टर पर अपने पहले हस्ताक्षर के साथ ही शुरू होता है किसी भी नए डीएम का कार्यकाल|