Tuesday, December 24, 2024
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यूपी में इसलिए साथ नहीं आ सकते मायावती-मुलायम? ये हैं वजहें…

maya-mulayam1नोएडा: क्या उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में बीएसपी सुप्रीमो मायावती और एसपी प्रमुख मुलायम सिंह यादव साथ आएंगे? बिहार में महागठबंधन की जीत ने पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में भी ऐसे गठजोड़ की चर्चा को हवा देने का काम किया है। बिहार में धुर विरोधी रहे लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार की जोड़ी ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए को शिकस्त दी। इसी के बाद से राजनीतिक हलकों में ऐसी अटकले तेज हो चली हैं कि जब बिहार में लालू-नीतीश साथ आ सकते हैं तो यूपी में भी मायावती-मुलायम साथ क्यों नहीं आ सकते?

उत्तर प्रदेश में दोनों ही पार्टियां पिछड़ों और दलितों का प्रतिनिधित्व करती हैं। यूपी में करीब 21 फीसदी दलित हैं और 17 फीसदी अति पिछड़े हैं। एक्सपर्ट बताते हैं कि विधानसभा चुनाव से पहले अगर ये दोनों राजनीतिक दल एक साथ आते हैं तो विरोधी दलों के लिए चुनाव किसी दुस्वपन से कम नहीं होगा। लेकिन राजनीतिक बयानबाजी से इतर क्या हकीकत में यह गठजोड़ सामने आ सकेगा?
यूपी में इसलिए साथ नहीं आ सकते मायावती-मुलायम? ये हैं वजहें…

क्या यूपी चुनावों में मायावती और मुलायम सिंह यादव साथ आएंगे? बिहार में महागठबंधन की जीत ने पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में भी ऐसे गठजोड़ की चर्चा को हवा देने का काम किया है।हमने अध्ययन के बाद कुछ ऐसे बिंदु तैयार किए हैं जिससे अभी तो ऐसी कल्पना साकार होती दिखाई नहीं देती।

1993 की कड़वाहटः बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद 1993 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में जब समाजवादी पार्टी और बीएसपी ने तालमेल किया तो इसे पिछड़ों और दलितों की ऐतिहासिक गोलबंदी का नाम दिया गया। चुनाव के बाद मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने और मायावती उपमुख्यमंत्री। हालांकि उसी दौर में भी मायावती सुपरमुख्यमंत्री की तरह पेश आती रहीं। लेकिन 1995 में कुछ ऐसा हुआ कि मायावती के लिए मुलायम सिंह राजनीतिक और निजी तौर पर दुश्मन नंबर-1 बन गए।

एसपी से खींचतान से खफा मायावती उस समय लखनऊ गेस्ट हाउस में सरकार से समर्थन वापसी का ऐलान करने जा रही थीं। उनके यह ऐलान करते ही एसपी समर्थकों ने गेस्ट हाउस पर हल्ला बोल दिया। मायावती को बंधक बना लिया। उनके साथ काफी अभद्रता की गई। अगर कुछ नेता और पुलिस अधिकारियों ने ऐन वक्त पर उनकी मदद ना की होती तो मायावती के साथ कोई बड़ी घटना हो सकती थी। मायावती 1995 में बीजेपी के साथ चली गईं। उस घटना के बाद से मायावती और मुलायम राजनीतिक दुश्मन बनकर उभरे और यह लड़ाई आज भी जारी है।

राजनीतिक दुश्मनी की चौड़ी खाईः मायावती के दलित और मुलायम सिंह के यादव-मुस्लिम वोट बैंक को अगर जोड़ दिया जाए तो ये सूबे के कुल मतों का 42 प्रतिशत होता है। एक वृहद जनता परिवार बनाने की तैयारी में लगे लालू प्रसाद यादव ने मुलायम सिंह और मायावती से एक साथ आने की अपील की थी। मुलायम ने ऐसा किया भी। मगर पहले बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने मुलायम से हाथ मिलाने की बात को सिरे से खारिज कर दिया। फिर बिहार चुनाव से पहले मुलायम ने इस सपने की धज्जियां उड़ा दीं।

राजनीतिक महत्वाकांक्षाः बिहार चुनाव से पहले मुलायम को मनाने के लिए लालू प्रसाद यादव और शरद यादव ने कई जतन किए लेकिन नेताजी माने नहीं। अब, जो मुलायम अपने समधी लालू की जिद के आगे नहीं झुके क्या वो मायावती के मजबूत कद के आगे नतमस्तक होंगे? राज्य में मायावती का कद भी किसी से छोटा नहीं है। लोकसभा चुनाव में बसपा को भले ही एक भी सीट न मिली हो, लेकिन पार्टी का वोट प्रतिशत बढ़ा है। जब भी मायावती कैमरे पर आती हैं, उनका बयान उनके व्यक्तित्व को चित्रित करने वाला होता है। अब दोनों नेता राज्य में बड़े नेता हैं, इन्हें समझौते की मेज पर आने के लिए भी तो कुछ समझौते करने ही होंगे।

मजबूत काडर को कौन समझाएगा?: एसपी हो या बीएसपी , दोनों ही दलों का मजबूत काडर है। ये कार्यकर्ता पार्टी के समर्पित तो हैं ही साथ में, अपनी बात मनवाने के लिए भी किसी हद तक जा सकते हैं। मायावती ने कई मौकों पर एसपी के काडर को गुंडा कहा है। यही नहीं, पूर्व सीएम एसपी में जातिविशेष के प्रभुत्व पर भी कटाक्ष करती रही हैं। एसपी-बीएसपी के कार्यकर्ताओं में जमीनी स्तर में 23 साल की रंजिश साफ दिखाई देती है। क्या वो उसे भुला सकेंगे?

बीजेपी का रोलः यूपी की राजनीति में चर्चा भी सुनाई देती है कि माया-मुलायम गठबंधन टूटने के पीछे कहीं न कहीं बीजेपी का भी हाथ था। इस गठबंधन के टूटने के बाद मायावती ने बीजेपी का ही दामन थामा था। अब जब बीजेपी बिहार की राजनीति हार चुकी है तो उसकी नजरें यूपी पर है। वह किसी भी कीमत पर राज्य के समीकरण अपने पक्ष में करने की कोशिश करेगी। मायावती और मुलायम सीबीआई के रडार पर भी रहे हैं। सवाल है कि साथ आने की कोशिश में क्या उन्हें फिर से इसके चाबुक को झेलना पड़ सकता है। बीजेपी यह कभी यह नहीं चाहेगी कि एसपी-बीएसपी साथ आएं। आखिर बीजेपी इस वक्त केंद्र में है और राज्य में 73 सांसद भी एनडीए से हैं।

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