मैं मर रही हूं, माफ करना!

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balika-badhuजोधपुर:कलर्स टीवी चैनल पर आने वाले सीरियल ‘बालिका वधू’ से अधिकतर लोग परिचित होंगे। जिसमें एक बच्ची की शादी कर दी जाती है वैसे असल जिंदगी में भी ऐसे मामलों की भरमार है, लेकिन जोधपुर का ये मामला चौंकाने वाला है। यहां एक 15 साल की बच्ची की 55 साल के अधेड़ से शादी कर दी जाती है, जिससे छुटकारा पाने की कोशिश करते-करते बालिका वधू मौत को गले लगाने की भी कोशिश करती है। और उसके शब्द होते हैं, ‘मैं मर रही हूं। माफ करना।’

जोधपुर की इस बालिका वधू ने न्याय न मिलने से परेशान होकर नींद की गोलियां खाकर आत्महत्या करने की कोशिश की, लेकिन बालिका वधू ने अपने सुसाइड नोट में जो कुछ लिखा, वो हमारे समाज की आंखे खोलने वाली हैं। बालिका वधू ने सुसाइड नोट में लिखा है कि ‘आज मेरी पेशी थी आज भी कुछ नहीं हुआ। मैं इसलिए मर रही हूं क्योंकि जज साहब आज भी नहीं आए और न ही वह बूढ़ा आया। मुझे पता है, मुझे न्याय नहीं मिलेगा। मैंने आप सबको परेशान किया है। आप लोगों ने मेरे लिए कितना कुछ किया। फिर भी मुझे कोर्ट से न्याय नहीं मिला। मैं आप सबको और परेशान नहीं करना चाहती।‘ ये उस बालिका बधू का सुसाइड नोट है, जो मूलत: अजमेर और अब जोधपुर की निवासी है।

इस लड़की की ढ़ाई साल पहले 15 साल की उम्र में उसके दादा लालचंद ने दो लाख रुपयों के लिए 55 वर्षीय जैसलमेर के भारेवाला निवासी रामचंद्र पवार के साथ विवाह करवा दिया। माता-पिता ने विरोध किया तो उन्हें भी घर से निकाल दिया। बालिका के माता-पिता ने समाजिक संगठन सारथी की कृति भारती के माध्यम से कोर्ट में बाल विवाह को निरस्त करने के लिए अर्जी दी। लेकिन एक साल बाद भी इस पर कोई निर्णय नहीं हुआ। इससे मानसिक तनाव और लगातार दबाव से परेशान इस बालिका बधू ने नींद की गोलियां खाकर आत्महत्या की कोशिश की।

कृति भारती की मानें तो उन्होंने करीब एक साल पहले इस मामले को लेकर कोर्ट में बाल विवाह को निरस्त करने के लिए अर्जी लगाई। इसके लिए बालिका के नाबालिग होने के वो सभी दस्तावेज कोर्ट के समक्ष रखे, लेकिन कोर्ट ने इसे बाल विवाह की बजाए तलाक का केस मानते हुए सुनवाई शुरू की। इसके बावजूद कभी जज साहब नहीं आते तो कभी आरोपी पक्ष। जिसकी वजह से इस मामले में तारीख पर तारीख पड़ती गई और ये बालिका वधू कोर्ट के चक्कर काट-काट कर मानसिक-आर्थिक रूप से परेशान हो गई। जिसके बाद उसने आत्महत्या का प्रयास किया। हालांकि गनीमत ये रही कि बालिका वधू को समय पर अस्पताल पहुंचा दिया गया। जिसकी वजह से उसकी जान बचाई जा सकी।

गौरतलब है कि बाल विवाह जैसी कुप्रथा हमारे समाज में अभिशाप के रूप में प्रचलित है। इस प्रथा पर अंकुश लगाने के लिए केन्द्र और राज्य की सरकारें अपने-अपने स्तर पर हर तरह के प्रयास भी करती है। यहां तक कि न्यायपालिका भी ऐसे मामलों पर सख्ती बरतती है। और विधिक सेवा प्राधिकरण तो इसके खिलाफ मुहिम चलाकर जागरूकता के साथ ही अंकुश लगाने के लिए संबंधित विभागों को दिशा निर्देष भी जारी करती है। फिर भी इस बालिका वधू के बाल विवाह को निरस्त करने की दरख्वास्त पर कोई सुनवाई नहीं हुई। जिसकी वजह से उसे ऐसा कदम उठाने को मजबूर होना पड़ा। ये पूरा घटनाक्रम आज के सभ्य समाज के साथ ही सरकार, न्याय व्यवस्था, प्रशासन पर कई सारे सवाल खड़ी करती है। जहां लाख दावों के बाद भी उसे न्याय न मिल सका।