अन्धविश्वास: किन्नरों के नंगे होने से अपशगुन!

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21August2010kinnar किन्नर हमारी तरह ही इंसान हैं। फिर समाज में इनके साथ इतना भेद-भाव क्यूँ है। ये हमारी तरह ही एक दिल और दिमाग रखते हैं, जिससे वो हमारी तरह ही सोच सकते हैं और प्यार कर सकते हैं। फिर क्यूँ नहीं हम उनकी भावनाओं को समझने का प्रयत्न करते हैं। क्यूँ नहीं हम उनके दुखों को महसूस कर पाते हैं । क्यूँ हम उनको समाज के एक निचले स्तर पर जीवन यापन करते हुए देख रहे हैं और सहज ही असंवेदनशील होकर आगे बढ़ जाते हैं। किन्नर हमारे सम्माज का एक बड़ा हिस्सा हैं। हम उनके प्रति बेरुखी का रवैय्या नहीं अपना सकते। लेकिन कई भ्रांतियां है जो अंधविश्वास से जुडी है| जिसका लाभ किन्नर उठाते है| नंगे होने पर अपशगुन हो जाना भी अन्धविश्वास से जुडी भ्रान्ति ही है|

सामाजिक तिरस्कार-
यदि हममें सही मायनों में इंसानियत है तो हमे चाहिए की हम किन्नरों के मानवाधिकारों के लिए भी लड़ें। भारतीय संविधान में केवल स्त्री और पुरुष दो ही प्रकृति को स्थान मिला है। समाज का ये थर्ड- सेक्स उपेक्षित है और अपने अधिकारों के लिए दर-दर भटक रहा है, अपमानित होकर।

समाज के किसी भी क्षेत्र में चाहे वो -शिक्षा हो, रोजगार हो, स्वास्थ्य हो, कानून हो, प्रवास हो अथवा अप्रवासन की बात हो, सभी जगह इन्हें मुश्किलों और भेद-भाव का सामना करना पड़ता है।

कानून में इंडियन पैनल कोड के सेक्शन 377 में भी इन्हें इनके मौलिक अधिकारों से वंचित ही किया गया है। क्यूंकि कानून में सिर्फ स्त्री और पुरुष को ही मान्यता प्राप्त है, किन्नरों को नहीं। इसलिए ये कुछ भी करेंगे तो कानून के दायरे में रहेंगे और हमेशा पुलिस के चंगुल में फंसे रहेंगे। क़ानून के रखवाले इन्हें पकड़ कर ले जाते हैं औत इन पर जेल में तरह तरह का अत्याचार होता है। जो पैसा ये मुश्किल से कमाते हैं, उसे भी पुलिस हफ्ता वसूली में ले लेती है। आखिर ये अपने जीवन यापन के लिए क्या करें ?

शादी-ब्याह, बेटा होना अथवा किसी शुभ अवसर पर पर नाच गाकर ये अपनी जीविका अर्जित करते हैं। लेकिन उसके लिए कितना पापड बेलना पड़ता है इन्हें। लोगों की हिकारत भरी नज़र , इन्हें अपने कमाए हुए पैसो की ख़ुशी नहीं होने देती, न ही किसी प्रकार के सम्मान का एहसास दिलाती है।

आज ज़रुरत है किन्नरों को भी उनका पूरा सम्मान दिया जाए । एक सुखी जीवन बसर करने के मूलभूत सुविधायें मुहैया कराई जाएँ। शिक्षा और रोजगार में भी इन्हें पूरे अवसर मिलने चाहिए ताकि समाज के इस समुदाय का भी उत्थान हो सके। इनके पास भी हमारी तरह भावनाएं है, संवेदनाएं हैं। ये भी भावुक होते हैं। इनकी भावनाओं की पूरी कद्र होनी चाहिए । समाज में उचित सम्मान और प्यार मिलना चाहिए।

किन्नर एवं स्वास्थ्य

हमारे देश में करीब दस लाख किन्नर हैं। मुलभुत सुविधाओं से वंचित ये समुदाय अनेकानेक बीमारियों जैसे एड्स आदि से ग्रस्त हो जाता है। पैसों की कमी तथा समाज में भेद-भाव के चलते इन्हें समुचित स्वास्थ्य सेवाएं नहीं मिलती और ये समय से पहले ही काल-कवलित हो जाते हैं। ये संकोच-वश चिकित्सा करवाने में भी हिचकते हैं।

किन्नरों में- ‘ जेंडर आईडेंटीटी क्राईसिस ‘ के कारण अवसाद , फ्रस्टेशन, असहायता, तथा पीड़ा-जनित क्रोध भी पनपता है। लेकिन ये ‘ जेंडर आईडेंटीटी क्राईसिस ‘ कोई मानसिक रोग नहीं है और इसके बहुत से सरल उपाय , चिकित्सा विज्ञान में मौजूद हैं। जैसे :-

  • हार्मोन रिप्लेसमेंट थिरेपी ।
  • लेसर हेयर रेमोवल या एलेक्ट्रोलिसिस ।
  • सेक्स रि-असायिन-मेंट थिरेपी – [एस आर टी ]

उपरोक्त चिकित्सा , ट्रांस-सेक्सुअल लोगों पर कारगर है , लेकिन ट्रांस-क्वीर पर नहीं।
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किन्नर और क़ानून

कानून में इसकी व्यवस्था की किन्नर , खुद को एक स्थापित लैंगिक पहचान देने के लिए अपना नाम और लिंग परिवर्तित कर सकते हैं। अब एक नए कानून के तहत अप्रवासन के लिए इन्हें ‘एम् ‘ और ‘ऍफ़’ के स्थान पर ‘इ’ लिखने की अनुमति मिल गयी है।

क्यूंकि ये हमारी तरह ही इंसान हैं , इसलिए मौलिक अधिकारों में कोई भेद-भाव नहीं होना चाहिए।

यदि कोई इनके साथ भेद भाव करता है तो उसे भी नस्लीय-जुर्म की तरह ही सजा मिलनी चाहिए।

मुस्लिम अल्प संख्यकों को तो वोट-बैंक के लिए बहुत से नेताओं का आश्रय प्राप्त है , लेकिन अल्पसंख्यक किन्नरों के विषय में इंसानियत से महरूम सरकार क्यूँ नहीं सोचती ?

हिजरे पैदायशी या फिर समाज के बनाए हुए ?

कुछ तो जन्म’जात किन्नर होते हैं , लेकिन अठारवीं शताब्दी में अरबों/मुगलों के आक्रमण के बाद अमानवीय तरीके से पुरुष को बधिया करना [ कासट्रेशन ], प्रचलन में आ गया। मुगलों ने अपने हरम में स्त्रियों की देखभाल तथा अन्य निम्न कार्यों के लिए इन्हें हिजरा बनाकर इनका इस्तेमाल किया।

किन्नर एवं धर्म

किन्नर सभी धर्मों में है. –हिन्दू धर्म में किन्नर जाति , ‘बहुचरा देवी ‘ की पूजा करती है। ‘ बहुचरा-माता ‘ का मंदिर गुजरात में है । किन्नर इन्हें अपनी आश्रयदात्री मानते हैं।

भगवान् शंकर का अर्ध-नारीश्वर रूप भी विशेष रूप से पूज्य है। इस रूप को किन्नर अपना आश्रयदाता मानते हैं।

किन्नर और रामायण

भगवान् राम जब वनवास जा रहे थे तो किन्नरों का समूह उनसे प्रेम-वश उनके पीछे-पीछे आने लगा । भगवान् राम ने उन्हें रोककर समझाया और वापस जाने के लिए कहा । १४ वर्ष बाद जब भगवान् राम वापस अयोध्या लौटे तो उन्होंने , उन किन्नरों को उसी स्थान पर पाया। इस पर प्रसन्न होकर श्रीराम ने किन्नरों को आशीर्वाद देने के सामर्थ्य का वरदान दिया। और तभी से किन्नर समुदाय , ख़ुशी के अवसरों पर पहुंचकर आशीर्वाद देते हैं।

किन्नर और महाभारत

महाभारत युद्ध के पहले ‘ अरावानी ‘ माँ काली को अपने रक्त की बलि देता है और उनसे पांडवों की विजय का वरदान मांगता है। इसी अरवानी से भगवान् कृष्ण ने ‘ मोहिनी ‘ का रूप रख कर विवाह किया ।

दक्षिण भारत में किन्नर इन्हीं के कारण अरावन कहलाते हैं। तथा इन्हें अपना प्रोजेनिटर [ पूर्व-पुरुष] मानते हैं। तामिलनाडू में अप्रैल-मई के महीने में 18 दिन तक ये अरावन-त्यौहार मानते हैं , जिसमें शरीक होने के लिए देश -विदेश से किन्नर आते हैं। इस त्यौहार में ये अरावन-कृष्ण विवाह मनाते हैं फिर अगले दिन अरावन की मृत्यु का शोक मानते हैं। इश्वर से ये प्रार्थना करते हैं की अगले जन्म में इन्हें किन्नर न बनाएं।