ब्रेकिंग: ढाई किलो के उल्लू की तलाश में लगे शहर के कई धनाड्य

Uncategorized

AAफर्रुखाबाद: कहते है कि लक्ष्मी की कृपा उल्लुओं पर ही ज्यादा होती है| लक्ष्मी का वाहन भी उल्लू ही है| अधिकारी को अगर राजी करना है तो उसके चालक को अपने जाल में फसाने से काम जल्दी हो जाता है| यह बात तो सभी जानते ही है| कुछ इसी तरह दीपावली पर लक्ष्मी जी को खुश करने के लिए शहर के कुछ व्यापारी उल्लू की पूजा में यकीन रखते है|
यह राय उनके धर्म गुरु आदि ने शायद उन्हें दी है| सूत्रों से मिली खबर के अनुसार इस बार तो एक वाहन व्यवसायी को एक खास किस्म के उल्लू की तलाश है| वह उल्लू जो की माँ लक्ष्मी के उल्लू से मिलता हो| दरअसल उन व्यवसायी को उनके धर्म गुरु ने ढाई किलो के उल्लू की पूजा करने की सलाह दी है| जिससे बाद कई व्यवसायी उसकी तलाश में भी लगे है| यही नहीं जनपद के बहेलियों और कंजड़ जाति के लोगो को भी पैसे देकर खरीदने का प्रलोभन दिया गया है|
शहर के बड़े वाहन व्यापारियों को जैसे ही इस बात का पता चला की दीपावली को जो ढाई किलो के उल्लू की पूजा करेगा उसके पास लक्ष्मी धन की वर्षा करेगी| ढाई किलो के उल्लू के चक्कर में जिले में उल्लुओं की सहमत आ गयी है| उल्लू पकडे और छोड़े जा रहे है| ज्यादातर को मार कर उनका मॉस भी खाया जा रहा है| सूत्रों से मिली जानकारी से पता चला है कि शहर के कई धनाड्य द्वारा बहेलियो व् गिहार बस्ती के लोगो को उल्लू पकड़ने की सुपारी दी गयी है|
यह भी कहा गया है कि जो ढाई किलो वजन का उल्लू पकड़कर लायेगा उसे मोटी रकम दी जाएगी क्योकि इस वर्ष बजनी उल्लू की पूजा करना बहुत ही शुभ बताया गया है| सूत्र ने तो यह भी बताया की गिहार बस्ती के कुछ शिकारियों ने घरो में उल्लुओ को पकड़ कर उनका वजन बढ़ाने के लिए कबाव व पिस्ता भी खिला रहे है| शिकारियों ने उल्लू पकड़ने के चक्कर में तकरीवन आधा सैकड़ा उल्लुओ को मौत के घाट उतार दिया है| लेकिन वह भी अभी तक उल्लू ही बने हुए है|
जानिए क्यों कि जाती है उल्लू की पूजा
प्राचीन मान्यताओं के मुताबिक़ उल्लू को अशुभ माना जाता है, लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हरिद्वार में उल्लू की पूजा होती है. गंगा सभा के अध्यक्ष राम कुमार समेत कई पुरोहित कहते हैं कि उल्लू को पूजे बिना लक्ष्मी की कृपा नहीं होती. उल्लू लक्ष्मी जी की सवारी है, इसलिए धन-धान्य की प्राप्ति के लिए उल्लू की पूजा की जाती है. उल्लू किसी के लिए अशुभ नहीं होता. उन्होंने बताया कि हरिद्वार में गौतम गोत्र के वंशजों द्वारा उल्लू पूजन की परंपरा अर्से से चली आ रही है. ऐसा करके वे लोग उल्लू के संरक्षण का संदेश देते हैं. गौतम गोत्र के लोग उल्लू के दर्शन को शुभ मानते हैं. उल्लू को बंधक बनाकर पूजा करना उचित नहीं है. यदि वह अपने आप मिल जाए तो उसकी पूजा अवश्य करनी चाहिए या फिर उसके प्रतीक स्वरूप लकड़ी या अन्य धातु से बने यंत्र की पूजा करनी चाहिए. आचार्य चंद्रकांत द्विवेदी कहते हैं कि उल्लू अशुभ नहीं हो सकता. जो मां लक्ष्मी का वाहन है, वह अशुभ कैसे हो सकता है. गौतम गोत्र के वंशजों को इस परंपरा का विस्तार करना चाहिए.

हिंदू मान्यताओं के अनुसार, गौतम ॠषि ने तीर्थनगरी हरिद्वार में उलूक तंत्र की संरचना की थी. मान्यता है कि यहां राजा दक्ष ने यज्ञ किया था, जिसमें उन्होंने भगवान शिव को नहीं बुलाया था. शिव की उपेक्षा पर भगवान विष्णु भी क्रोधित हुए थे. विष्णु ने समस्त ब्राह्मणों को विद्याविहीन होने का शाप दे दिया. इससे नाराज़ होकर भृगु ॠषि ने विष्णु की छाती पर पांव रख दिया. यह देखकर लक्ष्मी ने ब्राह्मणों को धन-धान्य से विमुख होने का शाप दे दिया. मान्यता है कि इस शाप से बचाव के लिए गौतम ॠषि ने उलूक तंत्र बनाया. अपने वाहन का तंत्र बनने से प्रसन्न होकर लक्ष्मी जी एवं भगवान विष्णु ने अपने शाप से मुक्त कर दिया. तबसे गौतम गोत्र के वंशज दीपावली पर उल्लू की विशेष पूजा करते हैं.