जेएनआई विशेष: लोहिया अस्पताल में दलालों का डेरा, फलती-फूलती कसाइयों की मंडी

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फर्रुखाबाद: 1 जुलाई डाक्टर्स डे पर जेएनआई की तरफ से विशेष (दीपक शुक्‍ला)– जहां एक तरफ डाक्टर को भगवान का दर्जा दिया जाता है वहीं दूसरी तरफ वही डाक्टर किस तरीके से मरीजों का खून चूसने में दलालों तक का सहारा ले रहे हैं उसकी एक तस्वीर –
धड़ाम की आवाज सुनकर अचानक रोड पर निकल रहे लोग रुक गये, इधर उधर देखने पर पता चला कि पूरन सिंह के किसी अज्ञात वाहन ने टक्कर मार दी। खून से लथपथ पूरन सिंह सड़क पर विक्षिप्त अवस्था में पड़े थे। तमाशबीन अपनी जेबों में हाथ डालकर उसके बदन से निकल रहे खून की एक एक बूंद का अवलोकन ऐसे कर रहे थे जैसे कोई भ्रष्‍ट अधिकारी गांव में पहुंचकर खड़न्जों का करता हैं। कोई मदद का सहारा नहीं, कोई कह रहा इसकी जेब देख लो तो कोई मोबाइल से उसके घर पर फोन करने की राय देकर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा था। जिस वाहन से टक्कर हुई वह वाहन किसका था यह पता नहीं चल सका। आखिर कुछ देर के बाद पुलिस के कुछ सिपेहसहलार मौके पर आ धमके और घायल को देख रही भीड़ को घुड़की दिखाकर पीछे धकेला। तब तक किसी ने फ्री सेवा वाली एक समाजवादी एम्बुलेंस को घंटी कर दी। कुछ ही देर में मौके पर हूटर बजाती हुई एम्बुलेंस आ धमकी और घायल पूरन सिंह को लेकर पूरे गर्व के साथ लोहिया अस्पताल की तरफ बढ़ चली।

Jhola-chhaap1इससे पहले कि एम्बुलेंस लोहिया अस्पताल के कैम्पस में अपना पदार्पण करती कि आस पास के निजी चिकित्सालयों के दलालों को खबर उनके खुफियातंत्र ने पहुंचा दी और सभी अपने अपने चिकित्सालयों से पैर सिर पर रखकर लोहिया अस्पताल की तरफ बढ़ चले। गिद्ध की तरह निगाह और पंजे लिये दलाल पहले से ही घायल पूरन सिंह को अपने पंजे में दबाने के प्रयास करने लगे। आखिर वृहद इंतजार के बाद एम्बुलेंस लोहिया अस्पताल के आपातकालीन कक्ष में मरीज को लेकर पहुंची और स्टेचर पर लिटा दिया। डाक्टर, फार्मासिस्ट मौके पर मौजूद लेकिन किसी ने उसे देखना उचित नहीं समझा। पूरनलाल दर्द से कराह रहा था। कुछ लोग आपस में कानाफूसी कर रहे थे तो कोई मरीज से उसका नाम पूछने में लगा हुआ था। बार्ड व्याय ने कुछ सूखी रुई से खून इत्यादि की बूंदें साफ की और एक इंजेक्शन पूरन सिंह के पुट्ठे में ठूंस दिया। पूरन सिंह कराह उठा। अचानक काफी देर के बाद चतुर्थश्रेणी कर्मचारी ने आकर चिकित्सक से कान में कुछ कहा। आपस में कम आवाज में बात हुई जो किसी ने नहीं सुन पाई। अंदर मरीज का ट्रीटमेंट भी शुरू नहीं हुआ कि आपातकालीन गेट के दरबाजे पर चार पांच एम्बुलेंसें धड़धड़ाकर खड़ी हो गयीं। मानो उन्हें मालूम था कि मरीज सतप्रतिशत रिफर हो जायेगा। दलालों के खोपड़ी के ऊपरी हिस्से में भरे पानी के अंदर जो लहरें अंगड़ाइयां ले रहीं थीं वह किसी से छिपाये नहीं छिप रहीं थीं। 25 प्रतिशत कमीशन की अच्छी खासी रकम पूरनसिंह उनमे से एक को देने वाले थे। इतने में उनके परिवार को सूचना हुई कि रोती बिलखती पूरन सिंह की गरीब विधवा मां अस्पताल आ धमकी और दहाड़े मार मार कर कह रही थी, डाक्टर साहब आप भगवान हैं मेरे बेटे को बचा लीजिए। मेरा एक ही बेटा है। मैं बहुत गरीब हूं। चोट भी कोई खास नहीं थी।

तभी एक व्यक्ति जेब में हाथ डालकर मरीज के परिजनों के पास पहुंचा और हवा में बात करने लगा। अरे भाई बेचारा बहुत सीरियस है। लोहिया अस्पताल में तो इलाज की बात ही मत करो। कोई देखने वाला नहीं। बूढ़ी मां आंसू पोंछते हुए उस अजनवी की तरफ टकटकी लगाकर देखने लगी और पूछा कि ‘लला सीरियस का होत है।’ तो उस व्यक्ति ने पूरन की वृद्ध मां को सीरियस का मतलब ऐसे विस्तार से समझाया जैसे कोई सत्संगी अपने श्रोताओं को सत्संग के समय भगवान के द्वितीय अवतार के बारे में बताता है।

वृद्ध महिला के अंदर इतना डर भर दिया कि वह स्वतः ही चिल्लाने लगी, ‘मेरे बच्चे की छुट्टी कर देउ, हम इसै और कहूं दिखैयैं।’ वह अनपढ़ ग्रामीण वृद्ध महिला दलालों के उस मकड़जाल में फंस चुकी थी लेकिन उसे उनमें अपना देवता नजर आ रहा था। काफी हाथ जोड़ने के बाद चिकित्सक ने बड़े अहसान के साथ पूरन सिंह को रिफर कर दिया, तो उस वृद्ध महिला ने उसी व्यक्ति से पूछा जिसने अस्पताल में इलाज न होने की बात समझायी थी। वृद्धा बोली बेटा अब तुम्हीं बताओ कहा उलाज ठीक हुइयै। उस छदमवेशी व्यक्ति ने चेहरे पर गंभीरता लाते हुए बुढि़या के कंधे पर हाथ रखा, अम्मा चिंता मत करो, हमारे परिचित के डाक्टर साहब हैं, हम तुम्हारे लड़का को अच्छो इलाज कराइ दियैं। जैसे ही पूरन सिंह की मां अपने इकलौते लहूलुहान पुत्र को लेकर आपातकालीन गेट के बाहर निकली तो एम्बुलेंस वाले इस तरह से झपटे जैसे मंदिर के बाहर निकलने पर प्रसाद मांगने के लिए भिखारी।

कोई पूछ रहा कानपुर तो कोई लखनऊ सस्ती दरों पर ले जाने की बात कर रहा था। लेकिन उस छदमवेशी व्यक्ति ने कहा कि पूरन सिंह कहीं नहीं जायेंगे, उसने एक एम्बुलेंस को इशारा किया कि देखौ अम्मा जौ बहुत भलो आदमी है। एकौ पैसा नाइ लियै और पूरन कौ डाक्टर के हियां छोडि़ दियै। बुढि़या ने अपना आशीर्वाद उस एम्बुलेंस वाले को दिया जिसकी शायद कोई कीमत नहीं थी। मुस्कराकर एम्बुलेंस का चालक व छदमवेशी व्यक्ति एम्बुलेंस में बैठ गये और कहीं फोन घुमाया। एक मुर्गा फंस गया। तुम रुको हम अभी आ रहे हैं। एम्बुलेंस एक चिकित्सालय के सामने रुकी, अंदर से पहले से ही स्टेचर उस मरीज का इंतजार कर रहा था। उस व्यक्ति ने उतरते ही स्टेचर पकड़े। प्राइवेट चिकित्सालय के कम्पाउंडर से कहा कि देखो यह बहुत भली माता जी हैं इनके मरीज की अच्छी व सस्ते में इलाज करना। फिर पूछा कि डाक्टर साहब हैं।

स्टेचर पकड़े व्यक्ति ने मुस्कराकर उनके चेम्बर की तरफ इशारा कर दिया। दलाल खुशी खुशी डाक्टर के चेम्बर में घुसा और कुछ देर चोंच लड़ाने के बाद कुछ हरे नोट हाथ में गिनते हुए बाहर निकल गया। मानो उसने अपनी जिम्मेदारी की मजदूरी ले ली। उधर अस्पताल में पहुंचते ही एक दर्जन जांचों के साथ मरीज को गुजरना पड़ा। पहले ही झटके में शाम होते होते 20 हजार का बिल उस वृद्ध महिला के हाथ में थमा दिया गया और काउंटर पर बैठे कर्मचारी ने आंखें लाल पीली करते हुए कहा कि अम्मा जल्दी जमा करा दो डाक्टर साहब आने वाले हैं। यह बताना तो भूल ही गये कि जब लोहिया अस्पताल से मरीज को लेकर वृद्धा चली गयी तो मौके पर खड़े लोग यह कहने पर मजबूर हो गये, जरा सी चोट थी तो उसे रिफर क्यों कर दिया। मुस्कराकर रामसिंह ने कहा कि अरे जानत नहीं वह दलाल था और एक मरीज पर 25 प्रतिशत कमीशन प्राइवेट चिकित्सक दे रहे हैं। महीने में तकरीबन 50 हजार तो ये लोग कमा ही लेते हैं, सब मिले हुए हैं। अंदर जो डाक्टर बैठे हैं, उन्हें भी मिलता है।

आस पास तो अस्पतालों की मण्डी है और फिर ये चले कैसे, दलाल ही चलवाते हैं और टोपी बेचारे मरीज पर आती है। जहां 100 रुपये खर्च होने को हों वहां 10 हजार का चूना लगता है। आपस में बात करने के बाद दोनो इधर उधर टहल गये। अब आओ पुनः वृद्धा के हाथ में 20 हजार का बिल और घुड़की ब्याज में, बेटे के नशे का इंजेक्शन लगा। अब पैसे कहां से आयें। आखिर उसके सामने कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा था। मजबूरन वृद्ध महिला कंपती हुई जुबान लेकर डाक्टर के सामने पेश हुई और डाक्टर को परेशानी बतायी। गुस्साये चिकित्सक ने बुढि़या पर रौब गांठते हुए कहा कि रुपये कम कहां से कर लें। ए सी, पंखा, कूलर, लाइट,बैड, बार्ड व्याय, झाड़ू वाला, इन सभी का खर्चा क्या हम अपनी जेब से देंगे। इलाज तो इतना ही महंगा होता है। थक हारकर जब बात नहीं बनी और चिकित्सक भी समझ गया कि बुढि़या के पास देने के लिए फूटी कौड़ी नहीं है। यह बात चल ही रही थी कि कम्पाउंडर दौड़ता हुआ आया और बोला डाक्टर साहब जो अभी एक्सीडेंट का मरीज आया उसकी नब्ज नहीं मिल रही है। डाक्टर ने मौके पर जाकर देखा और पूरन सिंह के चेहरे पर चादर डाल दी और अपने कारिंदों को हिदायत दी कि जब तक इसका बिल चुकता न हो जाये तब तक इसकी मिट्टी अस्पताल से बाहर नहीं जानी चाहिए।

काफी हाथ पैर जोड़ने के बाद भी चिकित्सक नहीं पसीजा तो मजबूरन उसने अपनी झोपड़ी जिसमें वह विदा होकर आयी थी, एक धन्ना सेठ के हाथों सस्ती कीमत पर बेच दी। डाक्टर के पैसे चुकता कर दिये। शाम को तिराहे के पास एक खोखे पर कुछ दलाल मुस्करा कर जाम से जाम टकरा रहे थे और अपने अपने मुर्गों को कैसे हलाल किया और किसने कितनी कमाई की यह जानने में मशगूल दिखे। उन्हें यह नहीं पता कि उनके द्वारा भर्ती कराया गया मरीज सिर्फ इस दलाली के मकड़जाल में दम तोड़ गया। अगर समय रहते उसी दौरान उसे समुचित इलाज मिल जाता तो शायद उसकी जान बच जाती।

यह एक नमूना मात्र है- लोहिया अस्पताल में आने वाले लगभग हर मरीज को इसी तरह के दलालों के कारनामों से गुजरना पड़ता है, जिसमें सरकारी डाक्टर से लेकर प्राइवेट डाक्टर शामिल रहते हैं।