नौकरशाही तो क्या, मंत्री भी नाचते थे शशांक के इशारे पर

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शशांक शेखर सिंह यानी मायावती सरकार का वह चेहरा जिसका इशारा केवल ब्यूरोक्रेसी ही नहीं कई मंत्रियों तक के लिए आदेश हुआ करता था। बसपा सरकार के पांच साल के दौरान मायावती के सबसे भरोसेमंद सिपहसालार के आदेशों की नाफरमानी की जुर्रत कोई नहीं कर सका।

शशांक शेखर को कैबिनेट सचिव बनाने के फैसले का पीठ पीछे विरोध करने वाले आईएएस अफसर कभी भी मायावती के सामने उनके खिलाफ मुंह खोलने की हिम्मत नहीं जुटा सके। न आईएएस, न आईपीएस, न आईएफएस, न पीसीएस, लेकिन पूरे पांच साल तक बसपा सरकार में कैबिनेट सचिव रहे शशांक शेखर सिंह ने सिर्फ सरकार नहीं बल्कि पूरी नौकरशाही को अपने इशारे पर नचाया।

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आईएएस लॉबी की जबरदस्त मुखालफत के बावजूद शशांक शेखर का दबदबा कम नहीं हुआ बल्कि वह दिनोंदिन और ताकतवर होते गए। पूरे पांच साल पंचम तल से लेकर पूरे प्रदेश में शशांक शेखर की तूती बोलती रही। यह शशांक शेखर की प्रशासनिक क्षमता ही थी कि मायावती सरकार में बड़े-बड़े नौकरशाहों का उनके कमरे में जाते ही पसीना छूटने लगता था।

काम कराने का उनका अपना ही अंदाज था। बसपा के मंत्री तक उनके सामने पड़ने से कतराते थे। मंत्रियों को मायावती तक अपनी बात या संदेश पहुंचाने के लिए पहले शशांक शेखर सिंह के यहां हाजिरी लगानी पड़ती थी। मायावती सरकार के सभी महत्वपूर्ण फैसले उनकी सहमति से ही होते थे।

बसपा सरकार में मायावती के बाद सबसे ताकतवर रहे शशांक शेखर ने जैसे चाहा, सरकार वैसे ही चली। उनके दबदबे का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ब्यूरोक्रेसी ही नहीं उन्हें लेकर पार्टी में उठी बगावत की आवाज भी मायावती ने अनसुनी कर दी। सरकार के प्रशासनिक प्रमुख के साथ-साथ उन्होंने प्रवक्ता की भी भूमिका अदा की। विरोधी खेमा पर्दे के पीछे से उनके खिलाफ मुहिम चलाता रहा लेकिन इन सबसे बेफिक्र शशांक शेखर ने मायावती के प्रति वफादार रहते हुए अपनी भूमिका अदा की।

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मई 2010 में मायावती सरकार ने शशांक शेखर का कार्यकाल 31 मार्च 2012 तक बढ़ा दिया था लेकिन पिछले साल चुनाव के नतीजे आते ही उन्होंने 9 मार्च को ही रिटायरमेंट ले लिया। यानी अखिलेश सरकार के अस्तित्व में आने से पहले वे ससम्मान विदा होकर चले गए।

शशांक शेखर की मृत्यु के साथ ही पिछली सरकार से जुड़े वे राज भी हमेशा के लिए दफन गए जिसकी जानकारी या तो मायावती को थी या फिर शशांक शेखर को।