फर्रुखाबाद परिक्रमा – अपनों ने अपनों को ही दे मारा- न कोई जीता न कोई हारा!

EDITORIALS FARRUKHABAD NEWS

अपनों ने अपनों को ही दे मारा- न कोई जीता न कोई हारा!

पंचायतों के चुनाव लोकतंत्र के मजाक बनकर रह गए हैं। जहां से भी शुरू करोगे। अंत धनबल बाहुबल और शासन प्रशासन के बेशर्मी पूर्ण सहयोग असहयोग पर ही होगा। रही बात जश्न मनाने की, सत्ता के नशे में पांच साल बसपाई यही तो करते रहे। वही आज सपाई कर रहे हैं। आंखें बंद कर लो। कुछ दिखेगा ही नहीं।

सही बात यह है कि हमारे लोकतंत्र में दिन प्रतिदिन लोक का अभाव होता जा रहा है। तंत्र हावी होता जा रहा है। बढ़पुर विकासखण्ड में 62 बीडीसी हैं। इसमें से 27 बीडीसी ने मतदान में ही हिस्सा नहीं लिया। 35 ने मतदान किया तीन मत निरस्त हो गये। सपा के जीते प्रत्याशी को मात्र 21 (कुल मतदाताओं के लगभग एक तिहाई) मत मिले। जश्न मनाना आपके हाथ में है। कोई आपको रोक तो सकता नहीं। परन्तु यह लोक नहीं तंत्र तिकड़म धौंस, धमकी और दबाव का ही खेल है। वास्तविकता को उजागर करने के स्थान पर मीडिया भी बेशर्मी से हिस्से का मखमली रूमाल में सहेज कर रखा गया चांदी का जूता पाकर या खाकर इस खेल में अपना प्रभावी योगदान कर रहा है।

जन साधारण से सीधे और प्रति दिन जुड़ी रहने वाली कोई सेवा जब ब्रान्डेड हो जाती है। तब उससे इससे अधिक की उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए। ऊपर से नीचे तक नेताओं, नौकरशाहों, ठेकेदारों, माफियाओं को और अधिक निरंकुश भ्रष्ट लंपट, उद्दड बनाने का एक मुश्त ठेका भी तो विज्ञापन के नाम पर लोकतंत्र में सबसे अधिक ताकतवर होते जा रहे मीडिया ने ही ले रखा है। तंत्र और मीडिया तंत्र में अब केवल अपवादों का ही अंतर है। वैसे दोनो का चोली दामन का साथ है। इस जिले में आप खांटी समाजवादी हैं। बगल के जिले में आप खांटी भाजपाई हैं। हमें हमारा नेग दे दीजिए। हम आपकी वैसी ही गायेंगे बजायेंगे। जैसा आप आदेश करेंगे। इससे लोकतंत्र की मर्यादाओं का क्षरण होता है। होता रहे हमारे ठेंगे से। पैसा फेंकते रहो। तमाशा देखते रहो। पैसा हजम तमाशा खतम। क्या समझे नहीं समझे। समझोगे भी नहीं।

वैसे क्रिकेट की भाषा में कहें तो बसपा और सपा के बीच की इस चुनावी सीरीज में जिला पंचायत अध्यक्ष की सुपर शील्ड या ट्राफी जो भी कहो के साथ बसपा सपा से काफी आगे हैं। जब तक सायकिल सिंह हाथी सिंहों से कायमगंज, राजेपुर, शमशाबाद, नबावगंज सहित सुपरशील्ड नहीं जीत लेते तब तक जश्न मनाने का कोई खेल बनता नहीं। लेकिन यदि आपको अपनी नाक कटाकर दूसरों का अपशकुन करने में ही मजा आता है तब फिर आपकी मर्जी।

जनता से सीधे मतदान के बिना पंचायत चुनावों का कोई मतलब नहीं है। यह बात अब दिन प्रतिदिन साफ होती जा रही है। इससे गांवों, विकासखण्डों और जिले के ग्रामीण अंचलों का विकास होने के नाम पर चंद लोगों का ही खेल मजबूत होगा।

रघुकुल रीति के नए व्याख्याकार-

भाजपा आज नरेन्द्र मोदी की गुजरात में शानदार जीत के बाद दिन में ही लोकसभा चुनाव के काफी दूर होने पर भी दिल्ली की कुर्सी के सपना देख रही है। बाबरी विध्वंस के बाद उत्तर प्रदेश में उस समय नरेन्द्र मोदी से भी कहीं अधिक ठसक और हनक रामलला से सीधे बात करने वाले अयोध्या कांड के महानायक कल्याण सिंह की थी। क्योंकि इस मुद्दे ने पूरे राष्ट्र को झकझोर दिया था। वैसे भी उत्तर प्रदेश गुजरात से कई गुना बड़ा है। वही महानायक कल्याण सिंह जी आज कहां हैं। रामराज्य के असली ठेकेदार तो भारतीय जनता पार्टी के लोग ही हैं।

खबर है कल्याण सिंह का बेटा 21 जनवरी को अपनी पार्टी का विलय भाजपा में कर देगा। परन्तु पिता श्री तकनीकी कारणों से भाजपा में नहीं शामिल होंगे। आपको मालूम है कि वह तकनीकी कारण क्या है। हम बताते हैं। यदि कल्याण सिंह जी 21 जनवरी को भाजपा में शामिल हो जायेंगे। तब फिर लोकसभा से उनकी सदस्यता समाप्त हो जाएगी। यह हैं राम की मर्यादा, सीता की लक्ष्मण रेखा, भारत और इण्डिया नैतिकता चाल चलन चरित्र संस्कारों आदि के वर्तमान व्याख्याकार – फर्क देख लीजिए-
रघुकुल रीति सदा चलि आई
प्राण जायें पर वचन न जाई।

एक बार फिर दोहराते हैं-
एक राम ने सीता छोड़ी एक धोबी के कहने पर,
अबके राम गधा न छोड़ें लाख दुलत्ती सहने पर।

भागवत की नयी भागवत

‘‘शाइनिंग इण्डिया’’ के उदघोषकों ने नहीं उनके संरक्षकों और मार्गदर्शकों ने दिल्ली के जघन्य रेप काण्ड पर एक नई बहस छोड़ दी है। इण्डिया में सब कुछ गलत होता है। इसके मुकाबले भारत बिल्कुल सीधा सादा सरल और दुर्गुण रहित है।

भागवत जी! आपकी भागवत कहां से प्रारंभ करें। अगर आपकी स्वयं की मानसिकता इतनी विक्रत है। तब फिर सामान्य जनों की बात ही छोड़ दीजिए। भारत भारत ही है और भारत ही रहेगा। जब भारत अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहा था। तब आपके पूर्ववर्ती  भारत को इण्डिया कहने वालों की मदद कर रहे थे। जरा यह भी बता दीजिए कि महात्मा गांधी और नाथूराम गोडसे में कौन भारत है और कौन इण्डिया है। अटल जी और अडवाडी जी में कौन इण्डिया है और कौन भारत है। सुषमा स्वराज्य और अरुण जेटली में कौन इण्डिया है और कौन भारत है। नरेन्द्र मोदी और कल्याण सिंह में कौन क्या है। शहनवाज खां और मुख्तार अव्वास नकवी में कौन क्या है। वसुन्धरा राजे और येदुरप्पा में कौन क्या है। दीनदयाल उपाध्याय और नितिन गडकरी में कौन क्या है। सूची बहुत लंबी है। आप भी जानते हैं। हम भी जानते हैं। जनता सब कुछ जानती है। अब आपका अयोध्या में मंदिर निर्माण का सपना संकल्प कहां। मोदी का शहरी ग्लोबल विकास और स्वदेशी का नारे के बीच इण्डिया और भारत कहां है।

आप स्वघोषित महान हैं। आपकी रेखायें लक्ष्मण रेखायें हैं। राम की बात मत करिए। आपकी कथनी और करनी का फर्क तो लंकापति रावण से भी अधिक प्रतीत होता है। नारी सीता सी पत्नी चाहते हो। तब फिर स्वयं भी तो राम बनने का संकल्प करो। आपके चंगू मंगू उपकृत आपके वक्तव्य पर कुछ भी कहें। परन्तु आपने ऐसा ओछा वयान देकर पूरे देश को अपमानित किया है।

सर्दी ही सर्दी हाय राम यह बेदर्दी

सर्दी में कुड़ता भिगो कर उसे सुखाने के नाम पर आग तापने वालों का जमाना खत्म हो गया। आज हालात पूरी तरह से बदल गए हैं। सर्दी का आलम यह है कि बच्चों से लेकर प्रौढ़ और बूढ़े भी ऊपर से नीचे तक मोजों, टोपों, दस्तानों आदि से ढ़के मुंदे होने और चाय काफी की चुस्कियों, बीड़ी सिगरेट के लंबे कसों और अलावों की गर्माहट के बाद भी सर्दी सर्दी ही चिल्ला रहे हैं। गजब की सर्दी हाय सर्दी, वाह री सर्दी ऐसी सर्दी आज तक नहीं पड़ी। हर जगह सुबह से शाम तक सर्दी और केवल सर्दी की चर्चा। कोई हाथ आपस में रगड़ रहा है। कोई हाथ आग ताप रहा है। हमेशा बेपरवाह रहने वालों के हाथ भी पूर्ण अनुशासन की मुद्रा में जेबों में अंदर हैं।

भुने आलू, उबले अंडे, गर्म मूंगफली, सूखे मेवे, ऊनी कपड़े लत्ते, प्राश केसरी कल्प भांति भांति के सोमरस का भारी उपभोग सर्दी के असर को तोड़ नहीं पा रहा है। स्कूलों, कार्यालयों, सड़कों, बाजारों में सन्नाटा छाया है। हर ओर यही आवाज हाय राम यह बेदर्दी। कभी न देखी ऐसी सर्दी।

और अंत में …………….… पिछले हफ्ते सैफई से सेन्ट्रल हाल और लखनऊ से धीरपुर नगला दीना और आवास विकास तक एक खबर जोर से उड़ी या उड़ायी गई। खबर थी दो पूर्व सांसदों के पुत्र बहुत शीघ्र सपा की सदस्यता ग्रहण करेंगे तथा प्रस्तावित लोकसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी होंगे। नागपुर में प्रदेश के मुख्यमंत्री के मेजवान और फर्रुखाबाद में एक केन्द्रीय मंत्री की पत्नी के आश्रयदाता कांग्रेसी नेता के यहां आयोजित कार्यक्रम में इस बात को लेकर तरह तरह के दावे खुलेआम किए जा रहे थे। कहा जा रहा है कि भाजपा में कल्याण सिंह की कथित वापसी को लेकर धीरपुर नरेश कुछ ज्यादा ही अधीर हो रहे हैं। कल्याण सिंह के खास रहे कुछ स्थानीय सजातीय नेता इस समय विभिन्न दलों में विराजमान हैं वह भी अपनी जोड़ तोड़ में लगे हैं। दोनो पूर्व सांसद पुत्रों में एक अंतर यह है कि एक के विषय में बातें चाहें जितनी उड़ी या उड़ायी गई हों। परन्तु वह रहे अपने स्वर्गीय पिता की पार्टी में। वहीं दूसरे सांसद पुत्र को बसपा छोड़ कर सभी प्रमुख दलों में लंबा समय गुजारने का अच्छा अनुभव है। हाल यह है कि कोई भी इस बात को नकारने या स्वीकार करने की हिम्मत नहीं दिखा पा रहा है।

और अंत में ………...जैसे जैसे व्यापारिक संगठन बढ़े वैसे ही सड़कों पर अतिक्रमण बढ़ा। जाम स्थायी समस्या बन गया। संभवतः पहली बार पुलिस और प्रशासन ने सही और कड़ा कदम उठाया है। अब वाहन, दुकानों के सामने नहीं सड़क के बीचों बीच लंबाई में खड़े किए जायेंगे। नतीजतन ट्रैफिक वनवे हो जाएगा। फुटपाथों पर अतिक्रमण नहीं होगा। यह पुलिस प्रशासन का अच्छा प्रयास है। इसे कड़ाई से लागू किया जाना चाहिए। दुकानदारों, व्यापार मण्डलों और जनता को इसमें सहयोग करना चाहिए। अतिक्रमण कराने में नहीं अतिक्रमण हटाने में सहयोग करिए। क्योंकि यह शहर जिला हमारा, आपका, सबका है। आज बस इतना ही। जय हिन्द!

सतीश दीक्षित
एडवोकेट