कमालगंज (फर्रुखाबाद): गंगा में आयी बाढ़ से तटवर्ती ग्रामों में तबाही मची हुई है लेकिन प्रशासन की तरफ से कागजों में बाढ़ चौकियां बनाने के शिवाय कुछ भी कारगर उपाय न करने से ग्रामीणों में रोष दिखायी दे रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि बाढ़ से उन लोगों के खेत तो पहले ही कट चुके हैं अब उनके आशियाने भी गंगा की धार में समाये जा रहे हैं लेकिन प्रशासन ने कागजों में बाढ़ चौकियां बनाने के शिवाय अब तक कोई राहत नहीं दी है। वहीं ग्रामीणों का यह भी कहना है कि यदि प्रशासन ने बाढ़ की रोकथाम के लिए मई जून में कुछ प्रयास किये होते तो हम लोगों को इतनी समस्या का सामना नहीं करना पड़ता। वहीं इतिहास के पन्नों में पहचाने जाने वाले उज्जैन के राजा भोज का ग्राम भोजपुर में बनाये गये महल की अंतिम दीवार भी अब गंगा की चपेट में आ रही है।
कमालगंज क्षेत्र के ग्राम ढपलपुर में गंगा के कटान से लगभग 75 फीसदी लोग बेघर हो चुके हैं। गंगा का कटान अभी भी जबर्दस्त तरीके से हो रहा है। ढपलपुर व भोजपुर दोनो कटान की चपेट में हैं। भोजपुर के ग्रामीणों ने बताया कि प्रशासन अगर अपै्रल मई में सचेत हो जाता तो हम लोगों के गांव सुरक्षित बच सकते थे। ये दोनो गांवों के 75 फीसदी ग्रामीण भूमिहीन हो चुके हैं। सारी जमीनें गंगा की धार में समा चुकी हैं। इस समय जहां पर गंगा की धार है वहां से दो किलोमीटर दूर गंगा की धार बहा करती थी। अब गंगा की धार पास आने से हजारों बीघा खेती कट चुकी है। प्रशासन ने अभी तक रोकथाम या पीड़ितों की मदद के लिए कोई भी कारगर कदम नहीं उठाया। 1650 ई0 में अंग्रेजों की हुकूमत में यहां पर गंगा जी बहा करतीं थीं।
रामनरेश, रामरतन, वीरेन्द्र, रामू, सियाराम, अरविंद, सादिर, लालू, लालाराम, पूर्व प्रधान ज्ञानेन्द्र बाबू बरतरिया ने जानकारी दी कि प्रशासन ने अगर कोई रोकथाम नहीं की तो पूरा गांव गंगा में शमा जायेगा। वर्षों पुराना टीला जो ऐतिहासिक टीला राजा भोज के जमाने माना जा रहा है वह भी गंगा की चपेट में आ चुका है। टीले की ऊंचाई लगभग 100 फीट है लेकिन गंगा जी ने इस पर नीचे से कटान शुरू कर दिया है।
जानकार बताते हैं कि उज्जैन के राजा भोज ने भोजपुर गांव बसाकर एक भव्य महल का निर्माण कराया था। जिसका प्रयोग राजा भोज उज्जैन से गंगा स्नान करने के दौरान करते थे। महल गंगा के करीब बनाया गया था। जिसको कहीं कुछ लोगों ने कब्जा कर लिया तो कहीं उसके अवशेषों को भी लोग निकाल ले गये। उसमें लगी कीमती लकड़ी का तो पता ही नहीं। एक बार आर्मी के जवानों ने भी इसी किले की खुदाई की थी। लेकिन आज के दौर में भोजपुर गांव के गंगा के किनारे बने राजा भोज के अवशेष के रूप में रह गया टूटा फूटा एक कमरा जो हमें जब तब राजा भोज की याद दिला देता है लेकिन इस बार के कटान को देखते हुए लग रहा है कि किला भी इस बाढ़ में समा जायेगा। प्रशासन अभी तक मौन है। जबकि वर्षों पुरानी खण्डहर हो चुकी धरोहर अपना अस्तित्व खोने की कगार पर है अगर इस पर ध्यान नही दिया गया तो कोई एसा तथ्य नहीं रह जायेगा कि कभी भोजपुर में राजा भोज रहा करते थे।