पति पत्नी और वो (जोंक की तरह चिपका समर्थक)
विधान सभा स्थानीय निकाय के चुनावों में हारी जीती पत्नियां अपने पतियों को आजकल आए दिन तरह तरह के ताने मारती हैं। इनमें सबसे ज्यादा ताने होते हैं पतियों से जोंक की तरह चिपके समर्थकों को लेकर।
ऐसी ही एक पत्नी ने हमेशा हड़बड़ी में रहने वाले अपने पति का हाथ पकड़कर सख्ती से कहा। कहां धरती लोटने जा रहे हो श्री मान जी। चुनाव खत्म हो गये। जो कुछ होना था हो गया। अब यह खटर पटर बंद करो और घर गृहस्थी का काम देखो। सुनो हमारी सुबह सुबह यह जो तुम्हारा गुर्गा स्कूटर पर सवार होकर आ जाता है और शाम तक टाले से भी नहीं टलता उस पर लगाम कसो। यह भी कोई बात हुई। हम कहां हैं क्या कर रहे हैं। दनदनाते हुए भाभी जी भाभी जी कहते घर के भीतर चले आ रहे हैं। अरे भाई यह घर है इसकी मर्यादा है मान है। मान न मान चले आ रहे हैं सूंड उठाए। ऊपर से हर बात में दखल बिन मांगी सलाह। कल से इनकी इंट्री बैठक से आगे नहीं होनी चाहिए। आग लगे ऐसी नेतागीरी में।
पत्नी के इन तेवरों ने पति की सिट्टी पिट्टी गुम कर दी। हैरान परेशान कि कल तक श्रीमती जी जिनके गुण गाते नहीं थकती थीं। भैया ऐसे हैं भैया वैसे हैं। प्रचार में लगे हैं। न दिन देखते हैं न रात देखते हैं। कहते हैं हमारी बस एक तमन्ना है। हमारी प्यारी दुलारी भाभी जीत जाये। बस हमारा काम खत्म। तारीफों के पुल बंध रहे थे। आज अचानक क्या हो गया। पति कुछ कहने का मन करते। इससे पहले ही पत्नी ने सिंह गर्जना कर दी जो कहा है उसे कान खोलकर सुन लो। यह जो तुम्हारा कनखजूरा है। इसे सम्हाल कर अपने पास ही रखो। हमें दुबारा दिखाई पड़ गया तब फिर हममे बुरा कोई नहीं होगा। यह हमारी धमकी नहीं अल्टी मेटम है। हमारे सूत्र बताते हैं यह अल्टीमेटम पतियों को चुनाव लड़ी हारी जीती पत्नियों द्वारा भारी संख्या में मिल रहे हैं।
सुनामी (कोर्ट फैसलों) के कहर का डर
जिले में शांति है। हारे हुए जख्म सहला रहे हैं। जीते हुए खुशियां मना रहे हैं। परन्तु मन ही मन डर भी रहे हैं। हे भगवान हे मेरे मौला क्या होगा। कहीं ऐसा न कर देना कि सब गुड़ गोबर हो जाए। लूट और तिकड़मों से जुटाये गए माल और हराम की कमाई के बल पर जो फतह पाई है। वह कहीं सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से सुनामी के कहर में न बदल जाए। जीतने वाले कम हारने वाले सैकड़ों। सब हाथ जोड़े फैलाए आसमान की ओर देख रहे हैं। प्रार्थना कर रहे हैं दुआ कर रहे हैं। कुछ बेचारों को तो यही नहीं मालूम कि माजरा क्या है। परन्तु जब हारे जीते सब अपनी-अपनी लाइन में लगे दुआ प्रार्थना बंदगी में लगे हैं। तब फिर वह अपने को अनाड़ी कैसे साबित होने दें। वह भी लाइन में लगे हैं। इसे कहते हैं खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है।
सेनापति और नाले मछरट्टा के बीच हमेशा ठनी ही रहती है। अभी जख्म भी ताजे हैं। अगले युद्ध से पहले की शान्ति है। परन्तु नगर की सियासत के केन्द्र में न रह पाने की छटपटाहट भी है। चौक ने सेनापति की मदद की नहीं जीते। सेनापति ने चौक की मदद की। जीत गए। अब तुम्हीं बताओ कि हंसें कि रोयें। एक बार ऐसे जीते जैसे बरात चढ़ी शहनाई बजी। परन्तु धर्मराज युधिष्ठर की तरह चुनाव की चौसर में पत्नी को ही दांव पर लगा दिया। फजीहत दर फजीहत घर से लेकर बाहर तक। सेनाओं और छोअे सेनापतियों को ढ़ाढस बंधाना तक कठिन। घर से लेकर बाहर तक कलह ही कलह । उस्तादी के सारे दांव लगता है मुथरे हो गए। ऊपर से दुश्मनों द्वारा हाईकोर्ट के आने वाले फैसलों से आने वाली सुनामी के कहर की लंबी लंबी खबरें हवा में तैर रहीं और कानाफूसी के माध्यम से फैलाई जा रही अफवाहों पर अगर गौर किया जाए। तब फिर लब्जों लुआव यह है कि आन वाले महिने दो महिने में हाईकोर्ट से कुछ ऐसे फैसले आयेंगे कि बड़े बड़े तीसमारखाओं और सूरमाओं के परखच्चे उड़ जायेंगे। जिले की राजनीति में इन कथित फैसलों की सुनामी कहर बनकर छा जाएगी। जिसमें क्या क्या होगा इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। ऐसा डरावना खाका खींचा जा रहा है कि कुछ पूंछो मत। कुछ इसे ख्याली पुलाव और मन बहलाने वाला ख्याल बता रहे हैं। वहीं कुछ ताल ठोक कर यह दावा कर रहे हैं कि कोर्ट फैसलों की इस सुनामी में केवल वह और उनके लोग ही बचेंगे। सब कुछ सेट है। कहीं कोई कमी नहीं है। देर से ही सही लेकिन इस बार पहिले जैसी गलती नहीं की जाएगी। अब हम ज्यादा दिन शर्मिन्दा नहीं रहेंगे नहीं रहेंगे नहीं रहेंगे।
कुछ हंस रहे हैं। कुछ डर रहे हैं। बाकी जो हुआ उसे देखा जो होगा उसे भी देख लेंगे के अंदाज में अपने काम में लगे हैं। सही भी है शाम के मरे को कोई कहां तक रोए।
मर्ज बढ़ता ही गया ज्यों-ज्यों दवा की
मुंशी हर दिल अजीज आज सुबह से ही हत्थे से उखड़े हुए थे। मियां झान झारोखे से बोले क्या हो रहा है यह सब। खिलवाड़ के लिए नौजवान ही रह गये हैं। देश के सबसे बड़े सूबे में मुख्यमंत्री युवा है। अच्छे सपने दिखाता है। परन्तु जमीनी सच्चाई यह है कि वह परीक्षा भी देने जाता है। तब भी बेचारा तरह-तरह से दुतकारा ही जाता है। कितना खराब माहौल हो गया है पूरे जिले में। लेकिन किसी को कोई परवाह नहीं है। अब परीक्षा देने वाले छात्रों को विभागीय और प्रशासनिक व्यवस्था के चलते जाम, उत्पात, हंगामा, लाठी चार्ज का सामना करना पड़े। तब फिर शासन प्रशासन के लंबे चौड़े दावों का क्या मतलब है।
मियां झान झरोखे बोले सूबे में जब से निजाम बदला है। प्रशासनिक अधिकारी हर मामले में रोज नई-नई घोषणायें कर रहे हैं। अपने जिले में तो मीडिया की कुछ खास ही मेहरवानी है। अखबार उठाकर देखिए -कमियों पर गरजे, अव्यवस्था पर विफरे अधीनस्थ कर्मचारियों पर बरसे, तीन दिन में सुधरने की चेतावनी, विरोध हड़ताल, धरना, जाम आदि शीर्षकों के चित्र सहित समाचारों से अखबार पटे पड़े हैं। पहिले नाले चोक होते हैं। सफाई होने के दावे होते हैं। फिर बरसात होने पर दावों की पोल खुलती है। एक दैनिक कर्मकाण्ड की तरह शासन प्रशासन की कार गुजारियों के समाचार मीडिया रोज परोसता है। इनकी तह में जाकर जिम्मेदारी निर्धारित करने और उद्धरणीय दंड देने की हिम्मत और हौसला कहीं दिखाई नहीं देता।
मुंशी बोले मियां यह सब तो आज से नहीं बरसों से चल चल रहा है। परन्तु हमें तकलीफ इस बात की है कि चाहे अनचाहे प्रशासन युवा मुख्यमंत्री को अनाड़ी और नौसिखिया सिद्ध करने में लगा है। युवाओं के भविष्य से सीधे जुड़े परीक्षा सम्बंधी कार्यक्रमों तक में तैयारियों की लंबी चौड़ी बातों और तैयारियों के बाद हकीकत जब सामने आती है तब ऐसा लगता है कि न किसी को किसी बात से लेना देना है। न ही किसी को किसी का डर है।
मुंशी मियां की बात को ही आगे बढ़ाते हुए बोले। शायद ही नए निजाम और नए प्रशासनिक अमले की भरपूर कोशिशों के बाद भी आफतों, अनियमितताओं, अव्यवस्था, अफरातफरी, अराजकता आदि की स्थिति में तनिक भी सुधार की स्थितियां बन रहीं हों। तुगलकी फरमानों का ऐसा विकट घमासान आज कल पूरे जिले में देखने को मिल रहा है कि कुछ पूंछो मत। आफत ही आफत है। प्रवेश पत्र नहीं मिल रहे हैं। मिल रहे हैं तब त्रुटियों की भरमार है। उन्हें परीक्षा में स्वीकारा नहीं जा रहा है। नतीजतन छात्रों द्वारा होने वाला उत्पात। छात्रों द्वारा कथित वसूली के विरोध में लगाया जाने वाला जाम रोज की जैसी बात है। स्वकेन्द्र परीक्षा न होने पर अराजकता। जाम से जन साधारण के लिए आफत ही आफत। कई कई किलो मीटर लंबे जाम। आश्वासनों पर खुलते जाम। बार-बार लगते जाम। सड़कें न हुईं मयखाने हो गये। जाम से जाम टकराये जा रहे हैं। लोग हलकान हो रहे हैं। छात्र नौजवान अपने भविष्य की चिंता में हिंसक और अराजक होने की कगार पर पहुंच रहे हैं।
मियां बोले और सब जाने दीजिए। गरजने, बरसने, विफरने, धमकाने, चेतावनी देने की सतत वाण वर्षा की बीच किस विभाग में सकारात्मक कार्य संस्कृति बनी। लेकिन लेनदेन के खेल में कहां कमी आई। इनकी बात थोड़े दिनों के लिए स्थगित भी कर दीजिए। परन्तु नौजवानों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं रुका। नकलविहीन परीक्षाओं का माहौल नहीं बना। प्रवेश परीक्षाओं का बाधा रहित संचालन नहीं हो सका। तब फिर आने वाले दिनों में यदि शासन प्रशासन के लिए नाच न जाने आंगन टेड़ा, सूप बोले सो बोले चलनी क्या बोले जिसमें छेद ही छेद, मर्ज बढ़ता ही गया ज्यों ज्यों दवा की जैसे नारे व्यंग्य वाण और ताने खुले आम जोर शोर से लगने लगेंगे। तब क्या होगा। युवा मंत्री के सपनों का जिसके पिता ने उसके कार्यकाल के सौ दिन पूरा होने पर उसे सौ में सौ नंबर दिए हैं। हालात न सुधरने पर जनता कितने नंबर देगी। इसकी सभी को प्रतीक्षा रहेगी। मुंशी और मियां यही बतकही करते हुए पिसती, कराहती, हैरान, परेशान आम जनता की तरह अपने-अपने घर चले गये।
केन्द्रीय मंत्री का बेसुरा राग
आत्म नियंत्रण के अभाव और प्रधानमंत्री की कथित ढीली पकड़ के चलते उनके अधीनस्थ मंत्रियों में विधानसभा चुनाव के दौरान बेसुरा राग तानने की जो होड़ लगी थी। वह अब भी बदस्तूर जारी है। सही भी है जब कुछ अच्छा और सकारात्मक करने की इच्छा शक्ति और संकल्प का अभाव है। तब फिर भोली भाली जनता के बीच अपनी उपस्थिति जताने के लिए मीडिया के माध्यम से हंगामा खड़ा करने से अच्छा और सस्ता उपाय क्या है। अपने जिले के सांसद और केन्द्रीय मंत्री में यह बीमारी कुछ ज्यादा ही है। हर बार तौबा करते हैं। कुछ ही दिनों बाद फिर चालू हो जाते हैं।
शांत और निष्क्रिय रहने या आवंटित कार्य को करते रहने की आदत कभी नहीं रही। मीडिया मौजूद है। आप के बेसुरे राग को जन जन तक पहुंचाने के लिए। ऐसा झन्नाटेदार साक्षात्कार दिया कि हंगामा हो गया। कांग्रेस दिशाहीन किंकर्तव्य विमूढ़ है। प्रधानमंत्री यह हैं वह हैं। राहुल गांधी लुका छिपी का खेल खेलते हैं। वह अभी तक यही तप नहीं कर पाए कि उन्हें क्या करना है क्या नहीं करना है आदि आदि।
जनाव ने सोचा होगा सरदार इस बयान से खुश होगा। शावासी देगा। बयान के सार्वजनिक होते ही वह हंगामा पार्टी एवं सरकार के अंदर और बाहर तथा जनसाधारण में बरपा हुआ कि क्या कहने। तू चल और मैं चल। नतीजा सामने पिछली अनेक बार की तरह इस बार भी ऐसा यूटर्न लिया कि मासूमियत पर बड़े से बड़ा विरोधी भी मर मिटे। भाई साहब बनवास खत्म होने के बाद केन्द्रीय मंत्री बने तीन साल से ज्यादा हो गये। सोचकर बताओ अपने संसदीय क्षेत्र के कायाकल्प के लिए कौन से तीन अच्छे कार्य किए। दो बातें हम जानते हैं आपको चाहें जितना उकसाया जाए, छेड़ा जाये आप गैर जिम्मेदारी पूर्ण वयान कभी नहीं देते। जिन्हें बाद में पलटना पड़े। दूसरे सांसद निधि से होने वाले कराए जाने वाले निर्माण कार्यों, विकास कार्यों में आप कमीशन कभी नहीं लेते, कभी नहीं लेते, कभी नहीं लेते। यह बात हम और जनता ही नहीं राजेपुर विकास खण्ड के चर्चित गांव के प्रधान और बड़े ठेकेदार तक जानते हैं।
और अंत में ……………….
निवर्तमान चेयरमैन और निर्वाचित चेयरमैन के पति मनोज अग्रवाल को सपा नेताओं का तहे दिल से शुक्रगुजार होना चाहिए। मैकूलाल के घंटाघर के जीर्णोद्धार पत्थर को लेकर न वह बबाल काटते। न उनके नाम का लगा लगाया पत्थर हटाया जाता। उसके बाद मंत्री जी के नाम का पत्थर भी चुनाव आचार संहिता के चलते नहीं लग सका। अब इस ऐतिहासिक घंटाघर पर चौक की ऐतिहासिक पटिया के पीछे वाले बाबा पान वालों की प्राचीन दुकान से जुड़े स्वयं पर पति और पत्नी दोनो के नाम का पत्थर लगेगा। कोई सीधी टेड़ी गलत सही आपत्ति भी नहीं लगायेगा। इसे कहते हैं अल्लाह जब देता है तब छप्पर फाड कर देता है। वहीं इसी प्रसंग में यह भी मौंजू होगा कि कुछ विघ्न संतोषी ऐसे भी होते हैं जो दूसरों के अपशकुन के लिए अपनी स्वयं की आंख तक फोड़ लेने की हिम्मत दिखते हैं। इसी के साथ पति पत्नी दोनो को आमने सामने के बार्ड से (कटियार दम्पत्ति) चुनाव जीतने की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें।
चलते-चलते ………………… हंसते हंसते
गर्मियों के दौरान का शादी व्याह का मौसम समाप्त होने को था। एक दूल्हा घोड़े पर बैठा बरात के चलने का इंतजार कर रहा था। ढोल नगाड़े बज रहे थे। संगी साथी नाच रहे थे। बराती खुशी में फूले नहीं समा रहे थे। दूल्हे का पिता खुशी में झूमता अपने घोड़े पर बैठे पुत्र के पास पहुंचा और नोटों की एक पूरी गड्डी उस पर न्यौछावर कर दी। बेटे को पता नहीं हंसी खुशी के माहौल में क्या शरारत सूझी। उसने बड़ी संजीदगी से अपने पिता से कहा। पापा! मैं आपको अपनी बरात में नहीं ले जाऊंगा। आप भी तो मुझे अपनी बारात में नहीं ले गए थे।
पिता ने समझा शादी का मौका है। पढ़े लिखे आज कल के बच्चे हैं। बोला बरात तो मैं अवश्य चलूंगा इसका क्या सबूत है कि मैं तुम्हारा पिता हूं। बराती हूं बराती बनकर बरात में चल रहा हूं। चलूंगा चलूंगा। पता नहीं बेटे को क्या सूझी बोलो नहीं मेरे पास प्रमाण है। चलिए डी.एन.ए. टेस्ट करा लेते हैं। दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। बाप की शक्ल देखने लायक थी। आने वाले दिनों में डी.एन.ए. टेस्ट की धमकी और वारदातें बढ़ने लगें तब शायद ही किसी को आश्चर्य हो। जय हिन्द!
सतीश दीक्षित
एडवोकेट