ब्राह्मण वोटर: दो दो हारे विधानसभा चुनाव में चौक के दगा की टीस अभी भी जिन्दा है

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फर्रुखाबाद: नगर पालिका चुनाव प्रचार का अंतिम दौर भी समाप्ति पर है। पार्टियों की आस्था तार तार हो चुकी है। राजनीति पूरी तरह से जाति पर आकर ठहर गयी है। लगभग हर जाति वर्ग के वोटर अपना अपना मन बना चुके हैं। परंतु अभी भी लोगों में ब्राह्मण मतदाता के प्रति शंका है, कि यह ऊंट किस करवट बैठेगा। हमने इसका जायजा लेने को कुछ सामान्य वोटरों के मन टटोलने का प्रयास किया तो  कि उनकी वेदना का पता चला।अधिकांश ब्राह्मणों के दिल में दो दो विधानसभा चुनावों के दौरान वैश्यों की दगा का दाग है। हाल ही में बसपा द्वारा उनके पक्ष में समर्थन की घोषणा कर दिये जाने नें तो आग में घी डालने का काम किया। बसपा की भ्रष्ट सरकार में उपेक्षित रहे ब्राहमण नीले झंडे के नीचे आयेंगे बहुत मुश्किल लगता है|

ज्यादा पुरानी बात नहीं है। वर्ष 2006 में हुए विगत नगर पालिका चुनाव में शहर के ब्राह्मण मतदाता ने दस वर्षों से नगर पालिका पर कब्जा जमाये बैठी दमयंती सिंह को हटाने के लिये एक मुश्त वोट मनोज अग्रवाल को दिया था। विगत नगर पालिका चुनाव के आंकड़ों के अनुसार मनोज अग्रवाल ने दमयंती सिंह से रविदास नगर, नानक नगर, शिवाजी नगर, लक्ष्मी नगर, लक्ष्मण नगर, अब्दुल हमीद नगर, कबीर नगर, दुर्गा नगर, गोविंद नगर, महादेवी नगर, चंद्रगुप्त नगर व महारणा प्रताप नगर में ही शिकस्त खायी थी। परंतु भाजपा की रजनी सरीन केवल अपने मोहल्ले व सजातीय वोटों वाले खतराना के वार्ड संख्या 23 परशुराम नगर से ही जीत पायीं थीं। ब्राहमणों ने मनोज अग्रवाल को एक सामान्य व्यापारी से उठाकर नगर का प्रथम नागरिक बना दिया। परंतु नतीजा क्या हुआ। उसके मात्र एक वर्ष बाद ही हुए विधानसभा चुनाव में मेजर सुनील दत्त द्विवेदी के सामने ही मनोज अग्रवाल विधानसभा चुनाव में कूद पड़े। जबकि इस वादे पर ब्राह्मणों से घर(भाजपा) छुड़वाया गया था कि नगरपालिका मनोज लड़ेंगे और विधायकी मेजर सुनील को मनोज लड़ायेंगे| मगर ब्राह्मणों को तब अंगूठा दिखा दिया गया था|

मेजर सुनील दत्त 35 हजार वोट लेकर भी दूसरे स्थान पर रहे थे, व मात्र पांच हजार मतों से विजय सिंह से चुनाव हार गये। जबकि मनोज अग्रवाल ने नगरपालिका अध्यक्ष रहते हुए विधान सभा चुनाव लड़ा व 22 हजार 904 वोट लिये। यदि यही वोट मेजर के खाते में चले गये होते तो उनकी जीत निश्चित थी। शहर का ब्राह्मण खून का घूंट पी कर रह गया। उसके बाद लोक सभा चुनाव का मौका आया। सत्तारूढ़ दल में होने का नशा कुछ एसा चढ़ा कि हरदोई से नरेश अग्रवाल को चुनाव लड़ने के लिये यहां बुला लाये। उनका जो हश्र हुआ वह सबके सामने है। एक बार फिर विधानसभा चुनाव सामने आया तो लोगों को पुरानी गल्तियों को न दोहराये जाने की आस जागी। परंतु एक बार फिर मेजर सुनील दत्त द्विवेदी चंद वोटों से ही सही चुनाव हार गये। एक बार फिर नगर पालिका चुनाव का समर सजा है। नाले को हरा पाने की लड़ाई से बड़ी लडाई अब विश्वास के बदले मिले दगा से बदला लेने की है|

अनुपम दुबे द्वारा ब्राह्मणों के समर्थन को लेकर बुलाई गयी बैठक में भी ब्राहमण प्रत्याशी शशि प्रभा के होते गैर जाति को वोट देने की बात उठी थी| उधर संजीव पारिया की पत्नी जो भाजपा प्रत्याशी भी है उन्हें जिताने के लिए सबसे अधिक जोर पकड़ा था| परम्परागत भाजपाई वोट ब्राहमण नीले झंडे के नीचे आने को तैयार नहीं लगा था| बात ये भी उठी थी कि हम जीते या हारे एक साथ रहे| और अब बहुत हो गयी दूसरो को हारने की लडाई चलो इस बार जीत के लिए संघर्ष करे|

नगर पालिका चुनाव के अंतिम दौर में बसपा द्वारा मनोज अग्रवाल की पत्नी वत्सला अग्रवाल को समर्थन की घोषणा ने इस संवेदना में आग में घी का काम किया है। चुनाव की कमान बसपा के हाथ है और मुख्य जिम्मेदारियां भी बसपा से जुड़े लोगो को ही दी जा रही है| ये बात बीती रात से ब्राह्मणों में किसी कांटे की तरह चुभन दे रही है| मेजर सुनील दत्त द्विवेदी अपनी पार्टी की प्रत्याशी के लिये इस बार काफी मन से लगे नजर आ रहे हैं। शुद्ध राजनैतिक उद्देश्यों के साथ प्रचार अभियान में उनके समर्थक भी साथ हैं। ब्राह्मणों का पूरा रुझान एक साथ मेजर और भाजपा की माला के साथ हुआ तो टाउन हाल पर भगवा फहराने का मंसूबा पूरा भी हो सकता है|