फर्रुखाबाद: “दीवार क्या गिरी मेरे कच्चे मकान की लोगों ने मेरे आंगन से रस्ते बना लिये।” यह शेर कांशीराम कालोनी की अनेक विधवा लाभार्थियों पर सही उतरता है। कांशीराम कालोनी में अन्य समस्याओं के अलावा एक बड़ी त्रासदी जो सुनने को मिली, उसने राजनीति व प्रशासन के छुटभैये दलालों के घिनौने चेहरों की एक और तस्वीर बेनकाब कर दी। कालोनी की अनेक विधवा लाभार्थी अपने बच्चों के सर पर एक अदद छत की खातिर इन दलालों के सामने बलात्कार के लिये आज भी मजबूर हैं।
विदित है कि कांशीराम कालोनी में पात्रता के लिये गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों में भी विधवाओं को प्राथमिकता देने का प्राविधान था। इसी के चलते कालोनी में काफी संख्या में विधवाओं को आवास आबंटित हुए। बेचारी विधवाओं को क्या मालूम था कि अपने व अपने बच्चों के सिर पर एक अदद छत के लिये उनको अपनी अस्मत का सौदा करना पड़ेगा। यह त्रासदी भी यदि एक बार आकर टल जाती तो बहुत था, परंतु यहां तो अब यह आये दिन का खेल हो गया। दीवार क्या गिरी मेरे कच्चे मकान की लोगों ने मेरे आंगन से रस्ते बना लिये। जब दिल चाहा दरवाजे पर दस्तक दे दी। ना नुकुर की तो दूसरे ही दिन सामान फिंकवाने की धमकी।
कांशीराम कालोनी में आवास आबंटन में किस प्रकार का खेल चला सब जानते हैं। सत्ता और प्रशासन के दलालों ने जमकर चांदी काटी। गरीबों ने अपने जेवर बेचकर घूंस की रकम चुकायी। हो सकता है इन्हीं दलालों ने घूंस की रकम डकारने को उनमें से कुछ के एक दो फर्जी प्रमाणपत्र भी बनवाये हों। परंतु आबंटन हो गया। जैसे तैसे एक अदद छत की जुगाड़ हो गयी तो राहत की सांस ली। परंतु वास्तविक त्रासदी तो यहां पहुंचने के बाद शुरू हुई। इन दलालों ने इस नौआबाद बस्ती में लाभार्थी विधवाओं के घरों पर हमदर्दी के बदले चक्कर लगाने शुरू किये। पहले पहल तो ताजा एहसान के तले दबी महिलाओं ने उन्हें भगवान समझकर घरों में बैठाया। धीरे-धीरे इन दलालों ने अपना असल रंग दिखाना शुरू किया। किसी ने लाभार्थी पर हाथ फेरा तो किसी ने जवान होती बेटी पर निगाह टिकायी। किसी ने नुकुर करने का प्रयास किया तो दूसरे ही दिन फर्जी प्रमाणपत्र की शिकायत या अपनी पहुंच की धौस दिखाकर सामान फिंकवाने की धमकी दे डाली। जब तक छत पास नहीं थी, तब तक तो कोई बात नहीं थी, परंतु अब अपना मकान खोने की हिम्मत जुटाना असान नहीं था। सो अधिकांश ने हथियार डाल दिये, या किस्मत समझकर समझौता कर लिया। हद तो यह है कि यह सारे दलाल एक दूसरे की क्लाईट्स को अच्छी तरह जानते हैं। अक्सर आपस में इन क्लाइंट्स की अदला बदली भी होती रहती है। आज तुम उस ब्लाक में हो तो कोई बात नहीं मैं फलां ब्लाक में हो आता हूं।
इन दलालों में केवल तत्कालीन सत्तारूढ़ दल के ही नहीं दूसरे दलों के चलते-पुर्जा लोग भी शामिल है। आये दिन होने वाली शिकायतों में भी यही दलाल सक्रिय हैं, जो पहले शिकायतें कराते हैं, बाद में उनको अपने रुसूख से दबवाकर दो चार माह के लिये अपनी अय्याशी का सामान फिर पुख्ता कर लेते हैं। यह गरीब महिलायें इन छुटभैये दलालों की कालोनी में हैसियत व संबंधित विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों से उनके रुसूख के चलते उनका नाम तक लेने में हिचकिचा रही हैं।