फर्रुखाबाद, चुनाव में भितरघात के आरोप में प्रदेश मंत्री डा. रजनी सरीन के निष्कासन के बाद कई नेताओं की बोलती बंद है| एक बार कायमगंज में सुशील शाक्य की शिकायत पर डा० वी० डी० शर्मा का निलंबन हुआ था| तब से यह दूसरी बड़ी कार्यवाही कही जा सकती है| लेकिन सवाल यह उठता है कि भितरघात करने के आरोप में डा० सरीन पर गाज भले ही गिरी हो भितरघात करने की शुरुआत तो दशको पहले हो गयी थी| अगर तब समय से कारवाही हो जाती तो भाजपा की यूं छीछालेथन न होती| फर्रुखाबाद में चुनाव लड़ने वाले भाजपा के कद्दावर नेता स्व ब्रह्मदत्त द्विवेदी पर भी छिबरामऊ में छोटेसिंह यादव की मदद कर भाजपा प्रत्याशी राम प्रकाश त्रिपाठी को हरवाने के आरोप लगते थे|
पिछले चुनाव में ही मेजर सुनील दत्त द्विवेदी की हार के बाद रजनी सरीन पर कार्यवाही से सभी के कान सतर हो गए थे| भाजपा के राष्ट्रीय और प्रांतीय नेता रजनी सरीन के निवास पर जाते रहे हैं| पिछले नगर पालिका चुनाव में जब रजनी सरीन अध्यक्ष पद का चुनाव हारी थीं तब भी भितरघात का मुद्दा उठा था| भाजपा के बड़े नेता पर आरोप लगा था कि उन्होंने नगरपालिका चुनाव में मनोज अग्रवाल की जमकर मदद की जिसके बदले में मनोज ने इस चुनाव में बसपा के लिए निष्क्रिय रहकर एहसान चुकाया| लेकिन तब न जांच हुई और न किसी के खिलाफ कार्यवाही हुई| यदि पार्टी ने उस समय सख्ती दिखाई होती तो 5 साल बाद फिर भितरघात का जिन्न जिन्दा नहीं होता|
अब तो चलन हो गया है कि हिसाब बराबर करने के लिए मदद न कर सको तो मैदान से गायब हो जाओ| मेजर के लिए बड़े मुश्किल से अंतिम समय में प्रांशु सक्रिय हुए तो वहीँ डॉ रजनी पुराने जख्मो को लेकर अंपने भाई को चुनाव लड़ाने कालपी चली गयी| प्रांशु की टिकेट की पैरवी करने से क्षुब्ध मेजर सुशील शाक्य के प्रचार के लिए मनोयोग से अमृतपुर नहीं गए| सब यहीं का यहीं है जो जैसा बो रहा वैसा ही काट रहा है| हालात नहीं सुधरे तो नगरपालिका चुनाव में भी लुटिया डूबी समझो|