होली का हुडदंग- फर्रुखाबादी हाल देख लो गधे चवाते पान देख लो…

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फर्रुखाबाद में बदरंग करने वाली होली न होती हो लेकिन रंग में सराबोर करने के कई ठिकाने थे। इनमे एक था मित्तूकुंचा। यहाँ की होली इतनी हुडदंग वाली थी कि होली वाले दिन लोग मित्तुकुंचा के सामने से निकलते डरते थे। यहाँ जिस पर मोहल्ले के युवाओं की नज़र गयी उसे रंग के ड्रम में डुबा कर ही भेजते थे।  हास्य कवि नटखट की रचना- तुम्हें होरी चड़ी , हियाँ खटिया खड़ी… ने भी खूब धूम मचाई।

बात ७० के दशक की है। मित्तुकूंचा के युवाओं ने मिलकर पवन दल बनाया था। पवन दल हर मोर्चे पर आगे रहता था तो होली के दिन रंगों का खास इंतजाम
रहता था।  रंगों से भरे ड्रम मोहल्ले के गेट पर रखे जाते थे. कुछ लोग रंग भरे ड्रम में डुबोये गए तो लोग इधर से निकलने में घबड़ाने लगे।  पवन दल वालों के हत्थे जो भी चड़ा वह होली को याद करता था। लेकिन ९० का दसक शुरू होते- होते पवन दल की होली का रंग हल्का पड़ने लगा।

मित्तू कुंचा के रहने वाले हर स्वरुप सारस्वत और डिप्टी आदि मिलकर ही नितगंज़ा के शिव मंदिर पर शिव रात्रि का मेला करते थे।  मेले में ख्याल गोई का दो दिन का कार्यक्रम होता था।  दूसरे दिन भोर होने से पहले ख्याल्वाज होली के गीत गाना शुरू कर देते थे।  फिर तो १०-११ बजे तक चंग पर गुलाल से नहाते हुए होली गीतों पर लोग मस्ती में डूब जाते थे।  यह परम्परा तो आज भी चल रही है।  इस साल भी यहाँ शिव रात्रि के मेले में होली के गीतों की मस्ती छायी रही।

८० के दशक में सिन्धी कालोनी के युवाओं ने परेवा वाले दिन शोभा यात्रा निकलना शुरू किया था।  इसमें चल रही झांकियों पर रंग और गुलाल की बारिश होती थी।  युवा मौज मस्ती में झूमते और नाचते- कूदते हुए शोभा यात्रा में शिरकत करते थे।  कई और मोहल्ले के लोगों  ने शोभा यात्रा में सहेयोग करना शुरू किया। पर किन्ही कारणों से यह शोभा यात्रा बंद हो गयी।

होली को फर्रुखाबाद के कवियों ने अपने- अपने ढंग से रचा और सुनाया।  पर ८० के दशक में जिले के हास्य कवि रवि शुक्ल ‘नटखट’ की रचना- तुम्हें होरी चड़ी हियाँ खटिया खड़ी—- बहुत चर्चित रही।  लोग नटखट के खास अंदाज में कविता सुनकर लोट- पोत हो जाते थे।

होली पर चुटीले टाईटल के लिए साप्ताहिक चट्टान की लोगों को साल भर याद रहती थी। अशोक दुबे के संपादन वाले साप्ताहिक चट्टान में फर्रुखाबादी हाल देख लो गधे चवाते पान देख लो—- में अधिकारीयों, नेताओं और पत्रकारों को दिए जाने वाले टाईटल घुसते चले जाते थे। अशोक दुबे के निधन के बाद चट्टान भी बंद हो गया।