पर्दा- बेपर्दा – बेपर्दा : डमी प्रत्याशी वापसी तक दिहाड़ी लेकर रहे नज़रबंद

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फर्रुखाबाद:  इस चुनाव  में उम्मीदवारों के खर्चे की नयी- नयी मदें खुल गयीं।  यह बात भी साफ हो गयी कि आयोग ने आचार संहिता की किताब कितनी भी मोटी कर दी हो पर अभी दंद- फंद के तमाम रास्ते उम्मीदवारों के पास हैं। जब पर्देदारी से वास्ता ख़त्म करने पर ही उतर रहे हैं तो जानते हैं कि उम्मीदवारों को डमी उम्मीदवारी के लिए भी क्या- क्या पापड़ बेलने पड़े।  इस परदे को बेपर्दा करने के बाद खुलासा हुआ है कि न केवल डमी उम्मीदवारों ने फीस ली बल्कि जिन प्रस्तावकों ने दस्तखत किये उनकी मुट्ठी भी गरम करनी पड़ी।

एक साहेब ने बताया कि एक हाई प्रोफाईल उम्मीदवार के दो डमी उम्मीदवार थे। अब आयोग इन डमी को नहीं पकड़ पाया यह उसका सर दर्द है।  बात उन दिनों की है जब नामांकन पत्र भरे जा रहे थे।  रणनीति के तहत इन उम्मीदवार ने दो डमी उम्मीदवारों से नामांकन कराये। उनकी पार्टी  का नाम तो बहुत बड़ा पर कार्यकर्त्ता इतने भी नहीं कि १० प्रस्तावक बन जाएँ।  सो पहले तो उम्मीदवार तलासे गए और सोचा गया था कि प्रस्तावक तो शान में दस्तखत कर ही देंगे। पर जब एक बड़े नेता ने अपने रौब में मोहल्ले के लड़के को नामांकन पत्र पर दस्तखत करने के लिए बुलाया तो उसने टोका- भाई, इस काम के तो पूरे एक हज़ार रुपये हुए. अब नेता जी का माथा ठनका। आखिर उम्मीदवार को क्या मुह
दिखाते। प्रचार तो यह कर रखा था कि मोहल्ले में बहुत दबदबा है। पर यहाँ तो प्रस्तावक बनने के लिए एक हज़ार रुपये मांगे जा रहे थे।  खैर पार्टी के अन्य नीति निर्धारकों को समस्या के बारे में बताया गया।  तय हुआ कि रुपये तो दे दो पर उसे नाम वापसी के दिन तक रखा के रखो कहीं दूसरे उम्मीदवार के हाथ न लग जाए।  इस तरह प्रस्तावकों को नाम वापसी तक पांच सौ रुपये देकर नज़रों के सामने रखा गया।

डमी का खेल सभी उम्मीदवारों का था।  और तो और दो प्रमुख राजनीतिक दलों के उम्मीदवार बतौर डमी चुनाव लड़ रहे थे।  इनमे से एक के नेता ने तो हेलीकाप्टर से आकर सभा की थी।  पर उम्मीदवार ने अपने काउंटिंग एजेंट एक बड़े दल के उम्मीदवार को बेच दिए। अब चुनाव आयोग की रेट लिस्ट में न तो नामांकन पत्र पर प्रस्तावक के हस्ताक्षर करने की फीस तय थी और न काउंटिंग एजेंट दूसरे उम्मीदवार को बेचने के रेट। पुलिस ने वाहनों की तलाशी का ड्रामा भी खूब किया।  कारोबारी परेशान किये गए पर हरियाणा और दिल्ली से अटैचियाँ भरके आती रहीं जिसका इस्तेमाल उम्मीदवारों ने सब कुछ खरीदने में किया।

बात यहीं ख़त्म नहीं होती जिस मोहल्ले के युवक ने उम्मीदवार के डमी के नामांकन पत्र पर दस्तखत करने के एक हज़ार ले लिए या जिसने बहुमूल्य वोट के लिए कुछ नोट पकड़ लिए उसने नेता से सड़क, हैण्ड पम्प, बिजली और स्कूल की समस्या के बारे में शिकायत करने का अधिकार भी खो दिया।  अब ५०० रुपये लेकर वोट डालने वाले शख्स ने अगर हैण्ड पम्प से पानी न आने की शिकायत की तो उम्मीदवार कह सकता है कि इस काम के लिए कितने रुपये देंगे।  बड़े इलाके में अगर दो- चार भी ऐसे बाकये हो जाएँ तो हैरत नहीं करना चाहिए।

भतीजा निकला चाचा से पांच-

जैन समाज में इस बार एक भतीजे ने चाचा का सियासी बुखार उतारने के लिए कमर कसी थी। चचा कांग्रेस के पुराने नेता हैं और कई बार सोनिया राहुल को लिहाफ और साड़ी भेंट कर फोटो खिंचवा चुके हैं।  पहले समाज में वे अकेले नेता थे।  इस बार उनका एक भतीजा जन क्रांति पार्टी में राजनीति करने लगा। नया मुस्लमान होने के नाते बाबा, दादी, भैया, भाभी, चाचा- चाची के पैर छू- छू कर काम चौकस कर लिया। खबर तो यह है कि भतीजे ने चचा का सारा सियासी खेल ख़राब कर दिया।  चचा का सगा भाई वोट डालने नहीं गया औए भतीजे ने समाज के हर घर पर कल्याण सिंह के झंडे लगवा दिए।