इनदिनों आईपीएस अधिकारियों की स्थिति कुछ ठीक नज़र नहीं आ रही है। अपराधियों का राजनीतिकरण व यूपी आईपीएस एसोसिएशन के मृत हो जाने से यहां के आईपीएस अधिकारियों का दुखड़ा सुनने वाला कोई नहीं है। शायद यही वजह है कि कई ईमानदार आईपीएस अधिकारी अपने आपको दबा व बंधा हुआ महसूस कर रहे हैं। एक समय पर ईमानदारी की मिसाल कायम करने वाले डीआईजी डीडी मिश्रा जब भ्रष्ट सरकार की पोल खोलते नज़र आते हैं तो उन्हें मेंटल हॉस्पिटल में यह कहकर भर्ती करा दिया जाता है कि उनकी मानसिक हालत ठीक नहीं। पुलिस विभाग के एक बड़े अधिकारी को अचानक मेंटल करार दे देना ये दर्शाता है कि उत्तर प्रदेश में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है।
आईपीएस अधिकारी जिसे समाज के एलीट ग्रुप अर्थात सभ्रांत व्यक्ति माना जाता है, इतना ही नहीं आईपीएस का पद खुद में ही समाज का सबसे उत्कृष्ट वर्ग माना जाता है। इसके बावजूद इस वर्ग के अधिकारियों में व्याप्त असंतोष ने जो रिपोर्ट सामने रखी है वह वाकयी चौंकाने वाली है। इन तीन सालों में ३० आईपीएस अधिकारियों ने राजनैतिक दवाव के चलते इस्तीफा दे दिया|
पिछले तीन साल में लोक सेवा के 30 अधिकारियों ने अपने पद से इस्तीफा दिया है और इसके पीछे कहीं न कहीं इन अधिकारियों को पद से मिलने वाली सुविधाओं से असंतोष कारण है। कुछ अधिकारियों ने मोटे वेतन की चाह में पद से रिजाइन कर किसी निजी कंपनी को ज्वाइन करना बेहतर समझा तो किसी ने ड्यूटी के दौरान आयी चुनौतियों से परेशान होकर आईपीएस की कुर्सी ही छोड़ दी।
सूत्रों के मुताबिक 2008 में 12 आईपीएस अधिकारी 2009 में 10 और 2010 में 8 आईपीएस अधिकारियों ने आईपीएस की सेवा से रिजाईन दिया है। वहीं एक अधिकारी का कहना है कि सर्विस कंडीशन में सुधार लाने की आवश्यकता है। उनका कहना है कि आईपीएस अधिकारी अपनी ड्यूटी का अधिक समय फील्ड में काम करते है इसलिए उन्हें कुछ सुविधाएं देनी चाहिए।