नई दिल्ली:दलित संगठनों का दबाव रंग लाया। केंद्र सरकार सरकार एससी/एसटी एक्ट पर संशोधन बिल लाने को तैयार हो गई है। एनडीए के दलित सांसद इस मुद्दे को लेकर सरकार पर लगातार दबाव बना रहे थे। इस बिल के आने के के बाद सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले की स्थिति बहाल की जाएगी। सरकार ने दलित संगठनों से अपील की है कि अब वह 9 अगस्त को बंद न करें।
कैबिनेट बैठक में यह फैसला लिया गया है। अभी हाल में लोजपा अध्यक्ष रामविलास पासवान के बेटे और सांसद चिराग पासवान ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ट जस्टिस आदर्श कुमार गोयल ने एससी-एसटी एक्ट को कमजोर किया है। सरकार ने उन्हें पुरस्कृत करते हुए एनजीटी का चेयरमैन बनाया। हम मांग करते हैं कि जस्टिस गोयल को एनजीटी चेयरमैन पोस्ट से हटाया जाय और ऑर्डिनेंस लाकर सरकार पुराने एससी-एसटी एक्ट को बहाल करें। अगर हमारी मांग 9 अगस्त तक सरकार नहीं मानती है तो लोजपा दूसरे दलित संगठनों के साथ सरकार के खिलाफ आंदोलन में हिस्सा ले सकती है|
दलित संगठनों ने इस सिलसिले में 9 अगस्त को ‘भारत बंद’ का आह्वान किया था। सरकार के एक सूत्र ने बताया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित (अत्याचार रोकथाम) कानून के मूल प्रावधानों को बहाल करने वाला विधेयक संसद में लाया जाएगा। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने मार्च में अपने फैसले में संरक्षण के उपाय जोड़े थे, जिनके बारे में दलित नेताओं और संगठनों का कहना था कि इस ने कानून को कमजोर और शक्तिहीन बना दिया है. भाजपा के सहयोगी और लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष राम विलास पासवान ने न्यायालय का आदेश पलटने के लिए एक नया कानून लाने की मांग की थी. सत्तारूढ़ पार्टी के संबंध रखने वाले कई दलित सांसदों और आदिवासी समुदायों ने भी मांग का समर्थन किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने किया था संशोधन से इन्कार
सुप्रीम कोर्ट ने 16 मई, 2018 को अनुसूचित जाति और जनजाति कानून (एससी-एसटी एक्ट) पर अपने फैसले में संशोधन करने से इन्कार कर दिया। केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि संसद भी निर्धारित प्रक्रिया के बिना किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने की इजाजत नहीं दे सकती है। अदालत ने सिर्फ निर्दोष लोगों के जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की रक्षा की है। जस्टिस आदर्श गोयल और यूयू ललित की खंडपीठ ने कहा कि अगर एकतरफा बयानों के आधार पर किसी नागरिक के सिर पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी रहे तो समझिए कि हम सभ्य समाज में नहीं रह रहे हैं।
\ज्ञात हो कि 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट के तहत शिकायत मिलने पर तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने कहा था कि गिरफ्तारी से पहले प्रारंभिक जांच होनी चाहिए। इसके अलावा अन्य निर्देश भी दिए गए थे। पीठ ने कहा कि ऐसे कई फैसले हैं, जिनमें कहा गया है कि अनुच्छेद-21 (जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार) को हर हाल में लागू किया जाना चाहिए। संसद भी इस कानून को खत्म नहीं कर सकती है। हमारा संविधान भी किसी व्यक्ति की बिना कारण गिरफ्तारी की इजाजत नहीं देता है। यदि किसी शिकायत के आधार पर किसी व्यक्ति को जेल भेज दिया जाता है तो उसके मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है। केंद्र सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने भी सुप्रीम कोर्ट के कई पुराने फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि संसद द्वारा बनाए गए कानून को अदालत नहीं बदल सकती है।