ज्यादा बिकने वालीं 100 दवाएं होंगी सस्ती

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medicin_15_11_2014नई दिल्ली: तनाव, हाइपरटेंशन, एचआईवी, दर्द और न्यूमोनिया के इलाज में ज्यादा बिकने वाले ब्रैंड की दवाएं जल्द ही सस्ता होने की उम्मीद है। दवाई बिक्री को नियंत्रित करने वाली संस्था नेशनल फार्मास्‍यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) कम-से-कम 100 और दवाओं के कॉम्बिनेशन को मूल्य नियंत्रण के दायरे में लाना चाहती है।

उदाहरण के लिए, वर्तमान में पैरासेटामॉल का एक ब्रैंड ही मूल्य नियंत्रण के तहत आता है, जबकि एनपीपीए ने भारतीय फार्माकंपनियों में लिस्टेड इस दवा के सभी ब्रैंडों की कीमतों को नियंत्रित करने का प्रस्ताव रखा है। इसी प्रकार, एचआईवी के इलाज में सामान्य रूप से इस्तेमाल होने वाली नेलफिनविरऔर रिटोनविर के मामले में रेग्युलेटर कैप्सूल के साथ साथ टैबलट की कीमतों को भी निर्धारित करने की योजना बना रहे हैं।

अथॉरिटी की यह पहल अहम है क्योंकि यह दूसरी बार है जब एनपीपीए ने राष्ट्रीय आवश्यक औषधि सूची, 2011 के दायरे से बाहर की दवाओं की कीमत को घटाने का प्रयास किया है। मई में अथॉरिटी ने 108 दवाओं की कीमत को घटाने के लिए एक जनहित क्‍लॉज लगाया था। मगर, कंपनियों के अदालत का दरवाजा खटखटाने और कानून मंत्रालय के राय के बाद सूची वापस लेनी पड़ी थी।

अधिकारिक सूत्रों के अनुसार, कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर इस बार इस मसले पर राजनीतिक सहमति है। वर्तमान में सरकार औषधि सूची, 2011 में लिस्टेड दवा के 348 ब्रैंडों या 652 पैकों की कीमत को नियंत्रित करती है। उसमें भी इस सूची में सिर्फ खास खुराकें, ब्रैंड और कॉम्बिनेशन ही शामिल हैं।

एनपीपीए के इस ताजा कदम का उद्देश्य मूल्य नियंत्रण की सीमा को बढ़ाकर सामान्य रूप से उपयुक्त होने वाली और अधिक बिकने वाली दवाओं की खुराकों, ब्रैंडस और कॉम्बिनेशन को शामिल करना है। हाल ही में मूल्य निर्धारण अथॉरिटी ने एक डीटेल स्टडी में पाया कि औषधि सूची 2011 के निर्देश और विवरण में कुछ खामियां मौजूद हैं।

पूरे देश में स्टडी के बाद एनपीपीए ने सूची में संशोधन का प्रस्ताव रखा है। अथॉरिटी की इस पहल से दवा कंपनियों के बीच हाहाकार मच गई है। उनको इस नियम से दवाओं पर अपने लाभ के मार्जिन को लेकर चिंता है।