नई दिल्ली: मेरठ की बेटी रजिया को संयुक्त राष्ट्र ने पहला मलाला आवार्ड देकर शिक्षा जगत के सुल्तान का तमगा दे दिया। मेरठ और आसपास के इलाके में रजिया और उस जैसे न जाने कितने बच्चों की नाजुक हथेलियां फुटबाल को आकार देने में लहूलुहान होती थीं। अच्छी फुटबाल बनाने में कई मासूमों की अंगुलियां टेढ़ी हो गई। मगर नियति ने उसे एक मौका दिया तो अपने जज्बे से उसने न सिर्फ अपना जीवन रोशन किया बल्कि उन दर्जनों बच्चों की अंगुलियों में कलम पकड़ा दी जो कुछ वक्त बाद शायद कलम थामने के लायक भी न बचते।
रजिया के इस जीवट को संयुक्त राष्ट्र ने भी माना और अब वह भारत की ‘मलाला’ है। शिक्षा की खातिर तालिबान के सामने खड़ी होने वाली पाकिस्तान की बहादुर लड़की मलाला यूसुफजई शुक्रवार यानी 12 जुलाई को 16 साल की हो रही है। संयुक्त राष्ट्र में ‘मलाला-डे’ के अवसर पर शामिल होने के लिए रजिया न्यूयॉर्क नहीं जा पाईगी। लेकिन, पहला मलाला अवार्ड भारत की 15 वर्षीय रजिया को ही दिया जाएगा। संयुक्त राष्ट्र महासचिव के विशेष राजदूत गार्डन ब्राउन ने रजिया को पत्र लिखकर बताया है कि वह अपनी जुबानी पूरे विश्व को रजिया की कहानी सुनाएंगे।
बदलाव की यह कहानी तब शुरू हुई जब रजिया महज पांच साल की थी। मेरठ के नांगली कुंबा गांव में बचपन फुटबाल की सिलाई कर परिवार को सहारा देने में जुटा हुआ था। फुटबाल की सिलाई में बच्चों को इसलिए लगाया जाता है क्योंकि उनकी नाजुक अंगुलियां जितनी बारीक सिलाई करती हैं, उतनी बड़े नहीं कर पाते। लेकिन, कई मामलों में देखा गया है कि कुछ साल तक काम करते-करते बच्चों की अंगुलियां टेढ़ी हो जाती हैं। गैर सरकारी संस्था ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ ने रजिया का बचपन आजाद कराने की कोशिश की। उसके परिजनों से बात की और उन्हें समझाया, जिससे रजिया मजदूरी से आजाद हो गई।
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शिक्षा की रोशनी और अपने जज्बे से उसने आस-पास के गांवों तक रोशनी फैलाई। अब तक उसने 46 बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त कराकर स्कूल में दाखिला दिलाया है। उसने खुद कुराली के एसडीआर स्कूल से 11वीं पास कर ली है। आसपास के कई गांव अब बाल मित्र ग्राम हो गए हैं। यानी अब वहां बच्चों से मजदूरी नहीं कराई जाती। आत्मविश्वास से भरी रजिया ने कहा कि वह आगे भी समाज सेवा ही करना चाहती है। उसे अच्छा लगता है कि समाज में बहुत कुछ बदल रहा है। उसने पास के स्कूल में पानी पीने की व्यवस्था कराई, डीएम से मिलकर लड़कियों के लिए अलग से शौचालय की व्यवस्था करवाई और अपने गांव को सुरक्षित करने के लिए सबको साथ लेकर दीवार खड़ी करवा दी।
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