नई दिल्ली: महाराष्ट्र सरकार की पहल के बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने भी यह माना है कि रेप पीड़िता का टू-फिंगर टेस्ट उसके राइट टू प्रीविसी का खंडन है और कोर्ट ने सरकार से कहा है कि सेक्शुअल असॉल्ट की पुष्टि करने के लिए कोई बेहत मेडिकल प्रक्रिया उपलब्ध करवाई जाए।
[bannergarden id=”8″]जस्टिस बीएस चौहान व एफएमआई कालीफुला की बैंच ने कहा कि बेशक इस टेस्ट की रिपोर्ट रेप की पुष्टि कर भी दे, तब भी इसे रेप पीडिता के इस टेस्ट के लिए समहति के रूप में नहीं देखा जा सकता। बैंच ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि टू-फिंगर टेस्ट और इसका व्याख्यान रेप पीड़िता के निजता के अधिकार, शारीरिक और मानसिक अखंडता और आत्म सम्मान का हनन करता है। कई विदेशी नियमों को रेफर करते हुए जज ने कहा कि रेप पीड़िता को कानूनी सहायता पाने का अधिकार है, जिसमें उसकी शारीरिक और मानसिक अखंडता और आत्मविश्वास का हनन ना हो।
बैंच ने कहा कि मेडिकल प्रक्रियाओं को निर्दयता या अमानवीय तरीके से नहीं किया जाना चाहिए। ना ही उनके साथ अपमानजनक तरीके से पेश आना चाहिए। उनके साथ सम्मान से पेश आने और उनके दर्द को समझने की जरूरत है।