महंगाई व मिक्सी की मार झेल रहे रामनगरिया के पत्थर कारीगर

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pathar tarastee mahilaफर्रूखाबादः एक जमाना था जब घरों में महिलायें खाना बनाने से पहले सिल बटना पर मसाला पीसा करतीं थीं। जिस बजह से हर घर में सिल-बटना का प्रयोग होता था और इस व्यवसाय को करने वाले भी अच्छी कमाई कर लेते थे। लेकिन जमाने कि बयार में अब ज्यादा तर घरों मे इस पत्थर के उपकरण का चलन कम हो गया है। बाजार मे पिसे हुये मशाले जगह-जगह मिलने से इसकी बिक्री भी प्रभावित हुई है।
जनपद में लगने वाले घटियाघाट के रामनगरिया मेले में अपनी-अपनी दुकानंे लगाने वाले दुकानदार अभी से ही पहुंचने लगे हैं। जिनमें दूर दूर से पत्थर कारीगर भी रामनगरिया मेले में आकर अपनी दुकानें सजा रहे हैं। लेकिन चिंता की लकीरें उनके माथे पर दूर से ही नजर आ रहीं हैं, क्योंकि पिछले बार की अपेक्षा इस बार पत्थर व pattharविक्री के दाम में भी काफी अंतर आ गया है। जिसमें पिछले वर्ष 50 से 80 रुपये का सिल, डेढ़ सौ रुपये का हो गया और 100 से डेढ़ सौ रुपये में बिकने वाला अच्छे पत्थर का सिल 200 से 250 रुपये तक पहुंच गया है। जिसने ग्राहकी भी प्रभावित हुई है। [bannergarden id=”8″]

पूरे परिवार के साथ रामनगरिया मेले में मुख्य द्वार के पास आधा दर्जन से अधिक पत्थर के कारीगर दुकान सजा चुके हैं। लेकिन महंगाई और कम ग्राहकी उन्हें इस बार मायूस किये है। आधुनिकता के चलते लोगों ने जहां एक तरफ सिल वट्टा का प्रयोग छोड़कर मिक्सी का प्रयोग शुरू कर दिया है। जिसमें कम समय में अच्छा मसाला पिस जाता है और कोई झंझट भी नहीं होती। वहीं महंगाई ने भी पत्थर कारीगरों को प्रभावित किया है।

मेले में मैनपुरी, हरदोई, कमालगंज, भोगांव आदि से कारीगर आकर पत्थर के उपकरण बेचने के लिए तैयार हैं। भोगांव से आये पत्थर कारीगर अमर सिंह, हरदोई क्षेत्र से पहुंचे पप्पू व जनपद से ही पहुंचे मतौली ने पत्थरों पर नकासी करके उनमें अनेक तरह की डिजाइने बनायी हैं। फिलहाल अभी मेला पूर्ण रूप से शुरू नहीं हुआ है। फिर भी कारीगरों ने माना है कि घरों में मिक्सी आ जाने से सिलवट्टे का काम प्रभावित तो हुआ है लेकिन जो जानकार है वह सिलवट्टे का ही मसाला खाने में प्रयोग करता है। पत्थर कारीगर पप्पू कहते हैं कि सिलवट्टा से पिसा मसाला मिक्सी से पिसे मसाले से कई ज्यादा स्वादिस्ट होता है।

कहां से होता है पत्थरों का आयात
मुख्य रूप से पत्थर इलाहाबाद क्षेत्र के शाकरगंज व शिवराजपुर से आते हैं। जिसमें लाल पत्थर, दूधिया पत्थर या सफेद पत्थर प्रयोग में लाया जाता है। एक ट्रक पत्थर की कीमत तकरीबन एक लाख रुपये होती है जिसमें 700 सिल बनाने वाले पत्थर, 50 चक्की के पाट बनाने वाले पत्थर, 200 बट्टा बनाने वाले पत्थर आदि निकलते हैं। एक कारीगर एक ट्रक पत्थर पर कारीगरी कर तकरीबन 25 से 30 हजार रुपये बचा लेता है।