एक शहंशाह ने उड़ाया है, हम गरीबों की गरीबी की मजाक……

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मशहूर शायर साहिर लुधियानवी की नज़्म की दो लाइने न जाने क्यू योजना आयोग के नये शगूफे के सिलसिले में अचानक ज़ुबां पर आ जाती हैं “इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर, हम गरीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मजाक”। देश के विकास के लिए योजनाएं बनाने वाली सबसे बड़ी संस्‍था योजना आयोग ने कहा है कि जो व्‍यक्ति शहर में 32 रुपए और गांव में 26 रुपए प्रति दिन में खर्चा चला सकते हैं, वो गरीबी रेखा से ऊपर माने जायेंगे। गरीबी रेखा की नई परिभाषा में सरकार ने कहा कि मुंबई, दिल्‍ली, बेंगलुरु या चेन्‍नई में चार लोगों के परिवार का खर्चा 3,860 रुपए में चल सकता है। उन्‍हें गरीबी रेखा में नहीं गिना जायेगा।

खास बात यह है कि यह योजना हमारे एक ऐसे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्वीकृत की है जो न केवल स्वयं एक अर्थशास्त्री हैं वरन  वित्त मंत्री भी रह चुके हैं। वित्‍तमंत्री रह चुके प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का अर्थशास्‍त्र कहता है कि एक दिन में एक आदमी प्रति दिन अगर 5.50 रुपए दाल पर, 1.02 रुपए चावल, रोटी पर, 2.33 रुपए दूध, 1.55 रुपए तेल, 1.95 रुपए साग-सब्‍जी, 44 पैसे फल पर, 70 पैसे चीनी पर, 78 पैसे नमक व मसालों पर, 1.51 पैसे अन्‍य खाद्य पदार्थों पर, 3.75 पैसे ईंधन पर खर्च करे तो वह एक स्‍वस्‍थ्‍य जीवन यापन कर सकता है। साथ में एक व्‍यक्ति अगर 49.10 रुपए मासिक किराया दे तो आराम से जीवन बिता सकता है और उसे गरीब नहीं कहा जायेगा।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि स्‍वस्‍थ्‍य रहने के लिए 39.70 रुपए पर्याप्‍त हैं। शिक्षा पर 99 पैसे प्रति दिन या 29.60 रुपए प्रति माह का खर्च, 61.30 रुपये प्रति माह में कपड़े, 9.60 रुपए जूते-चप्‍पल और 28.80 पैसे अन्‍य सामान पर खर्च करे तो वो गरीब नहीं कहलायेगा। खास बात यह है कि योजना आयोग ने यह रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को हलफनामे के तौर पर प्रस्‍तुत की है। इस रिपोर्ट पर खुद प्रधानमंत्री ने हस्‍ताक्षर किये हैं। हालांकि रिपोर्ट में अंत में कहा गया है कि गरीबी रेखा पर अंतिम रिपोर्ट एनएसएसओ सर्वेक्षण 2011-12 के बाद पेश की जायेगी।