चुनावी झुनझुना: माया का भ्रष्टाचार विरोध

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सुबह सुबह अखबारों के मुख्य प्रष्ठ की खबर- “सरकारी भ्रष्टाचार पर उत्तर प्रदेश सरकार गंभीर” पढ़कर मायावती के पिछले कार्यकाल के 9 साल रह रह कर जेहन में उबाल मारने लगे| मायावती को 9 साल लग गए ये जानने में कि उत्तर प्रदेश में सरकारी भ्रष्टाचार है या फिर सत्ताधारी नेताओ समेत खुद की तिजोरिया भरने में इतना वक़्त लग गया| फिर एक बात ये भी जेहन में कौंधी कि कहीं ये अन्ना हजारे का भूत तो मायावती को नहीं डरा रहा है| अचानक चुनाव से ठीक कुछ महीने पहले उन्हें सरकारी भ्रष्टाचार रोकने की बात मीडिया में छपवाने के लिए मजबूर होना पड़ा| कुछ भी हो इस खबर को उत्तर प्रदेश की जनता बस व्यंग के रूप में पढ़ने वाली है| ये मीडिया एथिक्स है- नेताओ की बगुला भगत बनने या उनके तारीफ के कसीदों वाली खबर को जनता मात्र व्यंग के रूप में लेती है और सम्बन्धित पात्र को सिर्फ नकारात्मक चर्चा मिलती है| हाँ इन खबरों को पढ़ा खूब चटकारे लेकर जाता है| उत्तर प्रदेश में सरकार भले ही भ्रष्टाचार के प्रति गंभीर हो या नहीं मगर इतना तो सच है कि जनता ने इस खबर को गंभीरता से लेते हुए खूब चुटकियाँ ली| कडुआ सच ये है कि आज उत्तर प्रदेश में मायावती, उनके कुनबे के नेता और भ्रष्टाचार उत्तर प्रदेश में एक दूसरे के पर्यायवाची शब्द के रूप में इस्तेमाल किये जा सकते हैं|

मायावती ने सरकारी भ्रष्टाचार को रोकने की बात कहकर बसपा के कार्यकर्ताओं लिए एक नयी मुसीबत खड़ी कर दी है| सुबह सुबह फतेहगढ़ स्टेशन पर 5 बजे अखबारों के अड्डे पर जिसे देखो वही खबर पढ़ रहा था| खबर पढ़ने के बाद ठहाके लगाकर पाण्डेय जी गुप्ता जी को सम्बोधित करते हुए बोल पड़े- देख लो माया का नया नाटक लिखा है सरकारी भ्रष्टाचार पर रोक लगाएगी| अब क्या जिस गाँव में गरीब को राशन नहीं मिल पायेगा उस गाँव का कोटेदार और सम्बन्धित अधिकारी सजा पायेगा? अगर स्कूल में मास्टर नहीं पढ़ाएगा तो क्या जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी सजा पायेगा? क्या बिना घूस के बन्दूक के लाइसेंस बन जायेगा| क्या बच्चो को वजीफा सही समय से नहीं मिला तो समाज कल्याण अधिकारी घर भेज दिया जायेगा? सब नाटक है| नेताओ और मंत्रियो को चुनाव लड़ने के लिए पैसा चाहिए| शिकंजा कसा गया तो आम आदमी से जुड़ा भ्रष्टाचार भले ही दूर न हो अफसरों के तबादले होंगे, निलम्बित होंगे और फिर नयी पोस्टिंग और बहाली के लिए घूस की बढ़ी दरो पर वसूली होगी| चुनावी खर्चे का इंतजाम करने का ये आखिरी पैतरा है इस सरकार का|

एक बसपा समर्थक गौतम साहब पहले तो पाण्डेय जी को सुनते रहे मगर अपनी पार्टी और मायावती की बुराई बर्दास्त न कर सके| कुछ नहीं मिला तो बोल बैठे पाण्डेय जी आप लोग तो जन्मजात दलित विरोधी हो| बहिन जी की सरकार में अपराध कम हुआ, भ्रष्टाचार कम हुआ और जो बचा उसे जड़ से समाप्त करने में समय लगता है| उसके लिए प्रयास किया जा रहा है| गौतम जी तमतमा रहे थे गुप्ताजी की और मुखातिब होकर बोले इस सरकार में भी जो जो दाग लगे वो भी सवर्णों की वजह से| औरैया के तिवारी हो या बांदा के दुबे जी| इन सबने ही बंटाधार किया है| भ्रष्टाचार के आरोप भी कुशवाहा, भदोरिया, चौहान और मिश्रा पर लगे हैं| किसी दलित नेता के ऊपर एक भी आरोप लगा हो तो बताओ| बात कर रहे हैं| आप लोगो से एक दलित की बेटी की इतनी ऊँचाइया नहीं देखी जाती इसीलिए मीडिया तक में दुष्प्रचार कर रहे हो| मत भूलो की बसपा का कार्यकर्ता मीडिया की बातो पर यकीन नहीं करता|

हद हो गयी गौतम साहब- सारी अच्छाई तुम्हारे खाते में और बुराई हमारे खाते में| इतने ही बुरे लगते हैं तो क्यूँ टिकेट पर तिवारी मिश्रा चौहान कुशवाहा को लड़ाते हो| और रही बात भ्रष्टाचार की तो आज के ही अखबार में कांशीराम योजना में फर्जीवाडा खोलने के लिए सूचना न देने पर अपर जिलाधिकारी पर जुरमाना लग गया है| ये क्या है? बिना घूस के काशीराम आवास नहीं मिले| ये आरोप तो गौतम साहब तुम खुद लेकर घूम रहे थे दो महीने पहले जब तुम्हारे भतीजे को पात्र होने बाबजूद घूस न देने के कारण कांशीराम आवास नहीं मिला था| अब बाते बना रहे हो| गौतम साहब बेचारे क्या बोलते इतना कह कर चलते बने- इसीलिए तो अब बहिनजी ने ये निर्णय लिया है कि भ्रष्टाचार साबित होते ही सरकारी कर्मचारी सजा भुगतेगा| गौतम साहब पीठ दिखाकर चलते बने तो गुप्ताजी बोल पड़े भ्रष्टाचार साबित करने की जाँच कौन करेगा- हैं तो सब एक ही कुनबे के| न साबित होगा न सजा मिलेगी| पाण्डेय जी ने कुछ न बोलना ही उचित समझा|

ये प्रकरण उदहारण नहीं है यतार्थ है| आखिर ग्राम सचिव का भ्रष्टाचार अकेला ग्राम सचिव का नहीं होता| नरेगा के किसी भी कार्य में 20 प्रतिशत का अनिवार्य कमीशन सचिव वसूलता है उसके बाद ही भुगतान होता है| ये 20 प्रतिशत भ्रष्टाचार खंड विकास अधिकारी से जिले मुख्य विकास अधिकारी तक वितरित होता| अगर आरोप लगा तो जाँच भी इनमे से ही कोई करेगा| कैसे खुलेगा भ्रष्टाचार| कोटेदार के भ्रष्टाचार में खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के लिपिक से लेकर अफसर तक और सम्बन्धित तहसील के तहसीलदार और एसडीएम् तक का हिस्सा होता है| वाही पकड़ने वाले और वाही जाँच करने वाले| अगर एक बार मान भी लिया जाए कि मायावती सरकारी भ्रष्टाचार के प्रति संजीदा है तो खुद मायावती तो आम जनता और मीडिया के सवालों से दूरी बना कर रखती है उन तक सही बात पहुचेगी कैसे| उनके कोरडीनेटर और सरकारी सचिव मायावती को आम जनता की मुसीबते बताने से रहे| वे तो कहते है कि मायावती तो सिर्फ अच्छा अच्छा सुनना चाहती है लिहाजा वे वही बताते और सुनाते है जिनसे उनके कानो को सुख मिलता हो| अगर कोई ऐसी सही सूचना जो सरकार की छवि ख़राब करने वाली हो पंहुचा दी तो खुद की ही मुसीबत ही समझो| चापलूस दरबारियो से घिरे राजा कभी लम्बे समय तक शासन नहीं कर सके इतिहास इस बात का गवाह है| खैर अब देखते है कि मायावती कौन सी नयी पॉलिसी बनती है अन्ना हजारे के यूपी दौरे से निपटने के लिए|