फर्रुखाबाद परिक्रमा: तुम भी दुम हिलाओ, दूना राशन पाओ!

EDITORIALS FARRUKHABAD NEWS

दिल्ली से आई खबरीलाल की रिपोर्ट सभी दलों और नेताओं की कलई खोल देती है। परन्तु अपने अपने वोट बैंक को सहेजे समेटे दलों और उनके नेताओं और सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है। बंगाल की शेरनी ने दिखा दिया कि उसकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं है।  इसके विपरीत कांग्रेस भाजपा सहित लगभग सभी प्रमुख दल अपना नफा नुकसान देखकर ही सड़क और संसद की अपनी रणनीति बना रहे सुधार रहे और बदल रहे हैं। उनके लिए देश हित और जनहित का कोई मतलब नहीं है। नेहरू गांधी परिवार का कोई भी सदस्य देशी आलोचना से रंचमात्र भी प्रभावित नहीं होता। सामान्यतः उस पर कोई प्रतिक्रिया भी नहीं देता। आलोचना या मुद्दे चाहें विरोधी दलों द्वारा उठाए गए हों या अन्ना हजारे, बाबा रामदेव अरविंद केजरीवाल सहित सिविल सोसाइटी के लोगों द्वारा चलाये जा रहे आंदोलनों से चर्चा में आये मुद्दे हों। देशी मुद्दों या आलोचनाओं आदि का जबाब, सामान्य शिष्टाचार को भी छोड़कर, ईंट का जबाब पत्थर से देने की तर्ज पर देने के लिए कांग्रेस और नेहरू गांधी परिवार में दिग्विजय सिंह, सलमान खुर्शीद अंविका सोनी, जनार्दन पुजारी, मनीष तिवारी जैसे तमाम लोगों की लंबी फौज केन्द्र से लेकर प्रान्तों तक हर समय तैयार रहती है।

नेहरू गांधी परिवार और उनकी कांग्रेस विदेशी मीडिया से बहुत घबड़ाती है। विदेशी मीडिया की आलोचना की आंच जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह आगे राहुलगांधी तक पहुंचाने लगी। तब सभी सिपहसालार सकते में आ गए। आनन फानन में आर्थिक सुधारों के नाम पर एफडीआई, डीजल ईधन गैस के कड़वे और कड़े निर्णय लेकर विदेशी आकाओं की नजर में अपने आपको ‘एचीवर’ और ‘परफार्मर’ सिद्ध करने की कोशिशें शुरू हो गईं। कांग्रेस, भाजपा के मुकाबले अपने वोट बैंक को पूर्णतः सुरक्षित मानकर चल रही है। उसे खतरा है क्षेत्रीय दलों की निरंतर बढ़ती ताकत से। भाजपा का हौवा दिखाकर इनमें अधिकांश को साधने के प्रयास हो रहे हैं। अनेक स्वयं ही तैयार बैठे हैं। यह दल कभी भी चुनाव सुधारों और मतदान प्रतिशत को बढ़ाने के प्रति गंभीर नहीं होते। येन केन प्रकारेण अपने वोट बैंक को बचाए रखने और उसी के बल पर अपने हितों की रक्षा के लिए मनमानी और तानाशाही पूर्ण रवैया अपनाने में इन्हें कभी संकोच नहीं होता।

रही बात भाजपा की। उससे अब राम ही रूठ गए हैं। कुछ एक मामलों को छोड़ दे ंतो भाजपा संसद और सड़क पर शोर चाहें जितना मचाएं। अधिकांश मामलों में कांग्रेस की कार्बनकापी ही है। कांग्रेस की कटुतम आलोचना करती हुई भाजपा कांग्रेस के स्थान पर आगामी लोकसभा चुनाव में अपनी जीत का दावा करती है। परन्तु वास्तविकता बिल्कुल दूसरी है। राम मंदिर के बाद स्वामी विवेकानंद के नाम को भुनाने के लिए नरेन्द्र मोदी गुजरात में चाहें जितना शोर शराबा मचायें। प्रधानमंत्री और राहुलगांधी को सीधे अपना निशाना बनाकर भले ही अपने आपको ‘पी एम इन वेटिंग’ साबित करें। परन्तु उनके इस अभियान से भाजपा के महत्वाकांक्षी नेतृत्व और गुजरात से बाहर जन सामान्य में भावनायें मोदी के विरोध में ही जा रही हैं। कलह कलेश आरोप प्रत्यारोप के चलते यह पार्टी भी अन्य पार्टियों से अलग नजर नहीं आती। अगर कहीं से भी भाजपा में कुछ अच्छी संभावनायें नजर आतीं। अगर कहीं से भी भाजपा में कुछ अच्छी संभावनायें नजर आतीं तब फिर सपा के कांग्रेस के बगलगीर होते ही बसपा और बहिन जी भाजपा की सहयोगी बनने में देर नहीं लगाती। यह भी वोट बैंक की ताकत और मजबूती ही है।

एक दूसरे को फूटी आंखों न सुहाने वाली सपा और बसपा दोनो ही कांग्रेस को फिलहाल केन्द्रीय सत्ता में बनाए रखने को तैयार हैं। यहां उन मुद्दों के समर्थन और विरोध से कोई मतलब नहीं है जिनको लेकर हाय तोबा मचाई जा रही है। अगर सांप्रदायिकता की प्रतीक भाजपा और धर्मनिरपेक्षता की अलंवरदार कांग्रेस इतनी ही बुरी और अच्छी हैं। जितना यह क्षेत्रीय दल बताते हैं। तब फिर अपनी भरपूर ताकत लगाकर यह सारे दल भाजपा और कांग्रेस को किनारे क्यों नहीं लगा देते। इसके लिए उन्हें बहुत कुछ नहीं करना है। केवल अपने अपने कैडर को गांव गली मुहल्लों में मतदान से उदासीन रहने वाले मतदाताओं को मतदान केन्द्रों तक पहुंचकर मतदान प्रतिशत को बढ़ा देना है। पश्चिम बंगाल में 35 वर्षों से बैठे वामदलों को अपदस्थ करने के लिए ममता बनर्जी ने यही किया था।

परन्तु वैचारिक आधार पर शून्यता की ओर जा रहे यह दल या जातीय समीकरणों वाले गिरोह मतदान प्रतिशत की बढ़ोत्तरी को अपने लिए खतरा मानते हैं। पश्चिम बंगाल के बामपंथी, बिहार के लालू तथा राम विलास पासवान और स्वयं कांग्रेस तथा उत्तर प्रदेश में बहिन जी का हाथी, सोनिया का हाथ और गड़करी का कमल इसका जीता जागता प्रमाण है। अपने वोट बैंक की धीरे-धीरे ही सही लेकिन निरंतर बढ़ती ताकत के बल पर यूपी के मुलायम अपनी तथा कथित सभी बुराइयों के चलते राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा आलोचना के विशेषण बटोर रहे हैं। सबसे बड़ी चुनौती भी वही हैं। सबसे बड़ी चुनौती भी उनके सामने है। आज की तारीख में मुलायम सिंह की जितनी स्वीकार्यता उत्तर प्रदेश में है। उतनी ही स्वीकार्यता अपने योग्य शिक्षित और परिश्रमी पुत्र युवा के साथ मिलकर अन्य प्रदेशों से थोड़ी थोड़ी बटोर कर बना ली जो कठिन भले ही हो असंभव रंचमात्र भी नहीं है। उस स्थिति में न तो कोई तीसरे मोर्चे के गठन को रोक पाएगा। न ही मुलायम सिंह को प्रधानमंत्री बनने से रोक पाएगा। परन्तु इसके लिए मुलायम सिंह यादव को केवल अपने परिवारी जनों को ही नहीं अपने जमाने के धुरंधर समाजवादियों और उनसे जुड़े लोगों को अपनी पार्टी से जोड़ना होगा। मुलायम सिंह यादव को समाजवादी के साथ ही साथ अब समाज शास्त्री भी बनना होगा। संघर्षशील वह हैं ही और समर्थ को शुभचिन्तकों की उनके पास कमी नहीं है। देखना है एफडीआई डीजल गैस सिलेंडर महंगाई भ्रष्टाचार और बेरोजगारी आदि को लेकर प्रांरभ हुई इस लड़ाई को मुलायम सिंह अपनी चिरपरिचित संघर्ष शीलता के बल पर कहां तक ले जाते हैं।

सदर तहसील के चप्पे चप्पे में नोट लगते हैं!

चौंकिए नहीं श्रीमान जी! मुंशी हर दिल अजीज बिना सबूत के कोई बात नहीं करते। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भले ही यह कहें कि रुपये पेड़ों पर नहीं लगते। परन्तु फर्रुखाबाद में पेड़ भी ऐसे हैं। सरकारी विभाग और अस्पताल भी ऐसे हैं। जिन्हें जरा भी हिलाओ और टटोलो नोटों की बरसात होने लगेगी। सदर तहसील ने इस बार नोट बटोरने में कीर्तमान स्थापित किया है। यहां हाल यह है कि मर्ज बढ़ता ही गया ज्यों ज्यों दवा की। न्याय और व्यवस्था की फर्रुखाबाद तहसील की यह केन्द्रीय धुरी कुम्हार के चाक की तरह विभिन्न प्रमाणपत्रों के आवेदकों, दलालों, बिचौलियों, लेखपालों, तहसीलकर्मियों द्वारा जितनी तेजी से घुमाई जाती है उतनी ही तेजी से नोटों रुपयों की वर्षा होने लगती है। नए सत्र में अभी तक हजारों की संख्या में प्रमाणपत्र बन चुके हैं। हजारों विचाराधीन हैं। कम ज्यादा की बात नहीं करते। परन्तु यदि एक भी प्रमाणपत्र बिना सुविधा शुल्क के नियमानुसार बना हो तब तो यहां के रणवांकुरों का अपमान है। यहां की कहानी ही अजब गजब है। यदि आप पैसे वाले हैं। हथेली गर्म करने का हौसला रखते हैं। आपको प्रमाणपत्र मिल जायेगा कि आप बहुत गरीब हैं। दूसरी ओर अगर आप के पास पैसे नहीं हैं या आप बहुत ही नियम कायदे वाले हैं तब फिर तहसील के महारथी आपको इतना अमीर बना देंगे कि आपके पड़ोसी तक आपसे जलने लगेंगे। मैनुअल से लोकवाणी और आवेदनों नोटों की फसल उगाने में लगे हैं। वृक्षारोपण के सत्र में वन विभाग ने पेड़ों पर जमकर नोट लगाए। शिक्षा स्वास्थ्य परिवहन समाज कल्याण सहित सारे विभाग दलाल और उनके चमचे रातों रात कितने होशियार और बेखौफ हो गए। हों भी क्यों न सजातीय नेताओं का वरदहस्त है। सच ही कहा है-

यह कैसा समाजवादी शासन,
कुत्तों को इंसान से दूना राशन।
इसमें क्या बात है मतलब साफ है,
तुम भी दुम हिलाओ दूना राशन पाओ।

और अंत में ………………………..
सुना है नेताओं के सारे प्रयासों को धता बताकर बड़ा साहब शान से छुट्टी गुजर कर वापस आ रहा है। प्रन्द्रह दिनों मनमानी करने और करवाने वालों की शामत आने वाली है। असल असल होता है कार्यवाहक कार्यवाहक ही होता है। ज्ञापन लेने आने में देर हो गई। सपाइयों ने बसपाई मानसिकता का फतवा दे दिया। मुख्यालय के तीनो थानेदार सपाई मानसिकता के हैं और जगहों का भी कार्यालयों का भी कमोवेश यही हाल है। जिस जाति का अधिकारी उसी जाति के नेता का संरक्षण उसी जाति के चमचे ओर दलाल। लेकिन बड़का साहब बड़का साहब है। किसी की नहीं सुनता गलत बात तो करना दूर सुनता तक नहीं। हां अपनी बात सही बात न्यायोचित बात को बताने की समझाने की अगर हिम्मत धैर्य और कुव्वत है। नेता की संस्तुति नहीं है। तब फिर सब ठीक है। बात सुनी भी जाएगी और मानी भी जाएगी। लिहाजा बड़का साहब के छुट्टी से वापस आने पर क्या होगा इसको लेकर सबकी धुक धुकी तेज है।

चलते चलते………………….

20 सितंबर का भारत बंद पूरे जिले में बहुत सफल रहा। पिछले भारत बंद के मुकाबले ज्यादा सफल रहा। ऐसा दिलजलों का कहना है। एक बोला बंद जनता ने सफल किया, नेताओं ने तो श्रेय लिया है। दूसरा बोला इस बार पिछले बंद के प्रभारी अपने निजी कार्यों की बजह से इस बंद में कहीं नहीं दिखाई दिए। तीसरा बोला तभी इस बार का बंद पिछले बंद से ज्यादा सफल रहा। चौथा बोला- नहीं नही ंहम कुछ नहीं कहेंगे। पांचवां बोला, बोल बोल क्या कहना चाहता है- चौथा डरते डरते बोला मुंशी हरदिल अजीज की सलाह अपने सचिन भैया ने मान ली है। इसी कारण इस बार के बंद में शामिल नहीं हुए। एक चमचा बोला सचिन भैया फेस बुक पर मित्र मत बनाओ। गली गांव मुहल्लों में झांपा छोड़कर खुले दिल दिमाग से लोगों के मित्र बनो और बनाओ। तभी होगा कल्याण। आज बस इतना ही। जय हिन्द।

सतीक्ष दीक्षित
एडवोकेट