फर्रुखाबाद परिक्रमा: अंटू मिश्रा आ रहे हैं चुपके चुपके

EDITORIALS FARRUKHABAD NEWS

यहां से विधायक और प्रदेश के स्वास्थ्यमंत्री रहते जिले और प्रदेश की स्वास्थ्य और चिकित्सा सेवाओं की दुर्दशा कर देने वाले बाबू सिंह कुशवाहा के साथी सहयोगी महास्वास्थ घोटाले के महानायक बाहरी लोगों को विधायक और सांसद बनाने के लिए मशहूर फर्रुखाबाद की धरती पर अपनी संभावनायें जांचने पुनः पधार रहे हैं। लगता है विधानसभा चुनाव के समय सीबीआई जांच का डर अनंत कुमार मिश्रा ‘अंटू’ को नहीं रहा। सही भी है प्रदीप शुक्ला के अभयदान के बाद यह दूसरा मामला है।  इससे पूर्व यहां से सांसद रहे अपने ढंग के अकेले पत्रकार संतोष भारतीय भी संभावनायें तलाश रहे हैं। देखना है 2014 आते आते क्या गुल खिलते हैं।

कहां गए संसद की सर्वोच्चता का वखान करने वाले

लगभग दो सप्ताह से संसद ठप है। कोई काम काज नहीं हो रहा है। कोई किसी की नहीं सुन रहा है। सब अपनी अपनी ताने हुए हैं। कहते हैं कोयला की कोठरी में कैसो हू सयानो जाय। एक लीक काजल की लागि है पैलागि है। निसंदेह ही प्रधान मंत्री जी बहुत ही सयाने हैं। योग्य हैं ईमानदार हैं। परन्तु इस बार मामला कोयले का है। भाजपा किसी की भी नहीं सुन रही है। उसे प्रधानमंत्री के त्यागपत्र से कम कुछ भी मंजूर नहीं है। नतीजतन सब कुछ होगा। लेकिन संसद नहीं चलेगी। क्योंकि संसद चलने के लिए है ही नहीं। वह तो अव्यवस्था अराजकता और अनुशासन हीनता की क्रीड़ा स्थली है। अपनी स्वयं के वेतन भत्ते और सांसद निधि को आनन फानन में सर्व सम्मति से बढ़ा लेने के लिए है। पत्रकार से राजनेता बने एक मंत्री के निर्देश पर शाम तक स्थगित होने के लिए है।

भाजपा तो भाजपा है। पार्टी विद द डिफरेंस है। सभ्यता संस्कृति, चिंतन, मनन मंथन, भोजन, शयन और पुनः पुनः चिंतन मनन भोजन शयन के अलवंदार हैं। खाता न वही भाजपा कहे बस वही सही। परन्तु इस बार तो पक्ष और विपक्ष दोनो ही अपनी मजबूरी रणनीतिया नूरा कुश्ती के चलते संसद को दागदार व्यर्थ और बेमतलब साबित करने में लग गए हैं। गूंगी गुड़िया न सही परन्तु सामान्यतः शांत ही रहने वाली कांग्रेस की महारानी भी अपने सांसदों, नेताओं को पलटवार करने, लड़ाई को सड़क पर ले जाने के लिए जमकर जोश दिला रही है।

अब जो कुछ होगा सड़क पर होगा। सड़कों पर निपटेंगे। आओ आओ हम संसद में बहस नहीं करेंगे। सड़कों पर आंदोलन करेंगे। हालात देखकर यही लगता है कि किसी दिन इण्डिया गेट पर सोनिया, सुषमा, मनमोहन, अडवाडी आदि आदि के बीच जमकर कुश्ती या नूरा कुश्ती होगी। कांग्रेस और भाजपा के दिग्गज या तो अपने अपने जुट्टीदार को तलाश लेंगे। दै तेरे की करने में जुट जायेंगे। या फिर शूरमाओं की चल रही कुश्ती के चारों ओर खड़े होकर तालियां बजायेंगे। लेकिन अब जो कुछ होगा सड़क पर होगा। आंदोलन होगा, झगड़ा होगा, बहस होगी, कुश्ती होगी। इस्तीफा मांगा जायेगा। न इस्तीफा दिया जाएगा। न प्रधान मंत्री तू तू मैं मैं में पड़ेंगे। सब कुछ सड़क पर। संसद में कुछ नहीं नतीजतन संसद ठप है।

कुश्ती की चर्चा हो और चरखा दांव के मशहूर इटावा के समाजवादी पहलवान खामोश बैठे रहें। ऐसा हो ही नहीं सकता। नतीजतन ममता दीदी के हाथों लुटे पिटे घायल कामरेडों और आंध्र के नायडुओं आदि के साथ संसद के बाहर धरने पर बैठ गए। संसद ठप है उसका कोई उपयोग नहीं है। हम सब कुछ करेंगे। परन्तु वह कुछ भी नहीं करेंगे जिसके लिए हमें मोटी पगार मिलती है। मलाईदार सुविधायें मिलती हैं। बढ़ी हुई सांसद निधि मिलती है। हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सांसद संसद में बैठकर भले और समझदार लोगों की तरह बात नहीं करेंगे। नतीजतन संसद लगभग दो सप्ताह से ठप है। संसद व्यर्थ बेमतलब हो गई है हमारे सांसदों के लिए। अभी बहुत दिन नहीं हुए। हमने संसद के केन्द्रीय कक्ष में बहुत बड़ा जश्न मनाया था। बड़ी-बड़ी कसमें खाईं थीं। सब व्यर्थ बेमतलब साबित हो रहा है। नतीजतन संसद ठप है।

याद कीजिए अन्ना हजारे के आंदोलन के प्रारंभिक दिनों की। याद कीजिए संसद की सर्वोच्चता का बखान करने वाले दिग्गजों की दहाड़ों की। देश के परिवर्तन और निर्माण की लड़ाई संघर्ष सड़कों पर सेना के कथित भगोड़े (इस्पात मंत्री वेनी प्रसाद जी के अनुसार) के नेतृत्व में नहीं संसद में होगी। क्योंकि संसद सर्वोच्च है और सांसद सर्वोच्च हैं। नतीजतन संसद ठप है।

लगता है इतिहास अपने को दुहरा रहा है। दिल्ली की पुलिस आयुक्त न बन पाने का दर्द दिल में पाले किरनबेदी (क्रेनबेदी) कांग्रेस को सारी फसाद की जड़ बता रही है। अरविन्द केजरीवाल कांग्रेस और भाजपा दोनो को ही चोर चोर मौसेरे भाई बता रहे हैं। अन्ना अपने गांव से ही अरविंद केजरीवाल की पीठ थपथपा रहे हैं। सांसद अपने अपने नेताओं के इशारे पर सड़कों पर लड़ाई का मूड़ बना रहे हैं। टीम अन्ना के अधिकांश सदस्य अच्छे ईमानदार सांसदों की टीम लेकर संसद में जाने की जोड़तोड़ में लग गए हैं। अब आएगा मजा। फिलहाल संसद ठप है। सड़कों पर दिग्गजों के पुतले और अर्थियां जलाई जा रही हैं। लड़ाई सड़कों पर है। जनतंत्र का मंदिर सर्वोच्च संसद ठप है, मौन है।

(दिल्ली से खबरीलाल की भेजी रपट! हम यहां ज्यों की त्यों आपको परोस रहे हैं। जीमिए, तालियां बजाइए, राजनैतिक दलों और अपने नेताओं को सराहिये। संसद के ठप होने पर जश्न मनाइए सड़कों पर! )

कैसी है हमारी संसद
खबरीलाल की दिल्ली से भेजी रिपोर्ट पर मियां झानझरोखे जहां बाग बाग हो रहे थे। वहीं मुंशी हरदिल अजीज हत्थे से उखड़े जा रहे थे। बोले चोर चोरी से जाएगा। परन्तु हेराफेरी से नहीं जाएगा। मियां झान झरोखे ने सवालिया नजरों से मुंशी हरदिल अजीज को देखा। क्या बात है मुंशी। तुम्हारी बजह से ही खबरीलाल लखनऊ, दिल्ली पड़ा रहता है। यहां उसकी बजह से तुम्हारा सिंहासन डोलने लगा था। बहुत सौतिया डाह है तुम्हारे अंदर। अब हम तो पुराने सम्बंधों को निभा रहे हैं। वरना तुम तो तुम ही हो। सही कहा है तुलसीदास जी ने ऊंच निवास, नीच करतूती। देख न सकें पराई विभूती।

मुंशी अपने स्वभाव के हिसाब से दहाड़े। चुपकर क्या मोटा माल खाया है खबरीलाल से। बड़ा तरस आ रहा है। उसक लखनऊ दिल्ली जाने से। मैने उसे क्या धकिया कर भेजा है। अपनी मर्जी से गया है। यहां बाढ़ में डूब जाता। क्योंकि तैरना नहीं आता उसे। यहां कोई किसी को बचाने नहीं आता। बचो तो बला से डूबो तो बला से। अब बाढ़ हर साल आती है। जैसे हर बाढ़ के बाद दुर्गा पूजा, दशहरा और दिवाली आती है। ऐसे में साहब नेता बेचारे क्या करें।

मियां बोले बस कर मुंशी बस कर। तेरी गाड़ी कहां से चलती है और कहां पहुंचती है। कुछ पता ही न चलता। बात चल रही खबरीलाल की। तुम पहुंच गए बाढ़, दशहरा, दिवाली तक। हां बताओ क्या गलती हो गई खबरीलाल से।

मुंशी बोले अरे मियां एक गलती हो तो बताऊं। दोस्त है रहेगा। परन्तु खबरीलाल सब कुछ कहेगा। परन्तु जो वास्तव में दोषी हैं उनकी चर्चा करने में उसकी दम निकलती है। मुंशी सम्हलकर बैठ गए और मियां से बोले। खामोशी से मेरी बात सुनो। टोंकाटाकी की तो वैसे ही चला जाऊंगा जैसे भाजपाई संसद से चले आये हैं और सड़कों पर गरज बरस रहे हैं।

मुंशी बहुत ही गंभीर होकर बोले हमारी संसद कैसी है। इसके लिए एक ही उदाहरण काफी है। यह जो अपना पितौरे वाला टीपू है न। एक चुनाव जीतने के बाद लगातार कई चुनाव हारता रहा। हिम्मत नहीं हारी। न पार्टी बदली और न चुनाव लड़ना छोड़ा। नतीजतन इस बार चुनाव जीत गया। मालिक की मेहर महत्वपूर्ण विभागों का महत्वपूर्ण मंत्री बन गया। बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा। मतलब वोटों के बंटवारे और कम मतदान के चलते जीत गए। तब से ऐसे इतरा रहे हैं जैसे आसमान से तारे तोड़ लाए हैं। कुछ करेंगे नहीं। न बिजली गिरायेंगे। न घुंघुरू बंध जाने के बाद अपनी चाल बदलेंगे। युद्ध चाहें अन्ना आंदोलन का हो या कोई और वयान ऐसे बचकाने देंगे कि सर पीट लेने का मन करे।

मुंशी बोले मियां हम इस सबके लिए पितौरे के अपने टीपू मियां को जिम्मेदार नहीं मानते। अगर फर्रुखाबाद के मतदाताओं ने अपनी जिम्मेदारी समझकर निष्पक्ष और निर्भीक होकर शतप्रतिशत सही अस्सी- नब्बे प्रतिशत मतदान किया होता। तब फिर न वह सांसद होते और न केन्द्र में मंत्री। जिस व्यक्ति को अपने संसदीय क्षेत्र के कुल मतदाताओं का मात्र तेरह प्रतिशत वोट मिलने के बाद इतना बड़ा ओहदा मिला हो वह नहीं बौराएगा तब फिर कौन बौराएगा।

हमें खबरीलाल पर गुस्सा इसलिए आ रहा है कि उन्होंने संसद के ठप होने का गाना तराना जमकर छेड़ा। कांग्रेस भाजपा सहित सभी को लताड़ा। परन्तु संसद को लम्बे समय तक बाधित रखने वाले माननीयों की वास्तविकता को जनता के सामने उजागर नहीं किया।

आज ज्यादा डिटेल में नहीं जायेंगे। हम मतदाता हैं। लोकतंत्र के वाहक हैं। फर्रुखाबाद संसदीय क्षेत्र में पिछले चुनाव में केवल 46.9 प्रतिशे वोट पड़ा। कहां गए वह तिरेपन प्रतिशत मतदाता जिन्होंने मतदान तक की जहमत नहीं उठाई। अब रोने से क्या फायदा। हमारा लोकतंत्र उन लोगों पर आंसू बहाता है जो लोग कोई भी मतदान ही नहीं करते। हमारी संसद के सदन और गलियारे पछताते हैं। जब कम मतदान और वोटों के बंटवारे के बल पर निर्वाचित होकर सांसद बनने वाले लोग ही संसद में बहस सार्थक बहस देशहित में बहस करने के स्थान पर संसद ठप करते हैं।

मुंशी अपनी बात को समापन तक पहुंचाने के अंदाज में बोले ऐसे लोग वैसे लोग ऐसी पार्टी वैसी पार्टी, सब बेईमान, सब एक जैसे। यह कोई बहाना अब नहीं चलेगा। अच्छे सांसद, ईमानदार सांसद, योग्य सांसद कहीं से आयात नहीं किये जायेंगे। हमारे बीच से ही आयेंगे। हमें ही खोजने होंगे। कोई भी दल, कोई भी सरकार चुनाव सुधारों के लिए गंभीर नहीं है। कभी गंभीर होंगे भी नहीं। इनका सारा कारोबार वोट बैंक के बल पर चलता है। मतदान का प्रतिशत बढ़ेगा। तब फिर इनका वोट बैंक का व्यापार ठप हो जाएगा।

मुंशी बोले संकल्प करो जो भी चुनाव होगा। हम सब निष्पक्ष और निर्भीक होकर शतप्रतिशत मतदान के अपने लक्ष्य की ओर तेजी से बढ़ेंगे। विश्वास मानिए आपको अच्छे जनप्रतिनिधि मिलेंगे। इसलिए मेरा मानना है जो लोग मतदान में भाग नहीं लेते वही देश की सारी समस्याओं की जड़ हैं। मतदाता बंधुओं! देश की तरक्की की चाबी किसी और के हाथ में नहीं आपके हाथ में है। निष्पक्ष और निर्भीक होकर मतदान करिए अच्छी संसद अच्छा समाज अच्छी सरकार पाइए। बांकी आपकी मर्जी!

और अंत में…………

संसद की सर्वोच्चता के साथ ही मीडिया के अत्यंत प्रभावी होने की भी चर्चा होती है। नेता अधिकारी और मीडिया दिल्ली और राज्यों की राजधानी में ही बना रहना चाहता है। उसका काम भी चल जाता है। परन्तु यह तिकड़ी यदि आजादी के दीवानों की तरह गली गांव गलियारों में जाने या अपने सहयोगियों को जाने के लिए सच्चे मन से प्रेरित करे। तब फिर मतदानका बढ़ा हुआ प्रतिशत देश की तकदीर बदल सकता है। हम किसी प्रतिष्ठित मैगजीन के कवर पर किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति का फोटो आने पर फूले नहीं समाते। अच्छी बात है। परन्तु हमारा इण्डिया हमारा भारत गांवों में बसता है। यह क्यों भूल जाते हैं। बड़ा मीडिया हमें कुछ दिनों के लिए भले ही चर्चा में ला दे। वोटों की फुहार को वोटों की बरसात में नहीं बदल सकता।

आज बस इतना ही। जय हिन्द!

सतीश दीक्षित
एडवोकेट