फर्रुखाबाद: कहते हैं कि ऊपर वाले से कभी गलती नहीं होती, वह जो करता है अच्छा ही करता है। लेकिन ईश्वर के द्वारा किया गया कार्य आम इंसान की समझ से परे हो जाता है जब ईश्वर पहाड़, नदियां, झरने आदि नायाब चीजें ऐसे तरास करता है मानो कि कारीगर द्वारा बनायी गयी हों। वहीं दूसरी तरफ किसी भी व्यक्ति के शरीर में जब ईश्वर द्वारा यह नजारा देखने के लिए आंखें तक नहीं दी जातीं तो आम इंसान जरूर मालिक से सवाल करने पर मजबूर हो जाता है। यह नजारा आज नवभारत सभाभवन में हुए आशा बहुओं के कार्यक्रम में एक भक्तिगीत गा रही मासूम नेत्रहीन लड़की ने चरितार्थ कर दिया। लड़की द्वारा गाया गया गीत देख तमाशा लकड़ी का लोगों पर ऐसी छाप छोड़ गया कि मासूम को देखकर बाकई में उसका गीत सुनने वाले लोगों की आंखों में आंसू आ गये।
नवभारत सभाभव खचाखच भरा था। मंच पर प्रशासन के सभी बड़े अधिकारी विराजमान थे। स्वागत सत्कार का दौर चल रहा था। आशा बहुएं अपना-अपना गीत प्रस्तुत कर अपने-अपने क्षेत्र की प्रशंसा गीतों के माध्यम से कर रहीं थीं। तभी संचालन कर रहे सूचनाधिकारी ने मंच से संबोधित किया कि अब भक्ति गीत प्रस्तुत करने के लिए एक मासूम सी बच्ची आ रही है। सभा में बैठे सभी लोगों का दिमाग अचानक बच्ची की तरफ आकर्षित हो गया। बच्ची तो थी ही लेकिन बच्ची की दोनो आंखें नहीं थी। उसकी मां जोकि कटरी गंगपुर से अपनी नेत्रहीन मासूम बच्ची को पूरे उत्साह के साथ समारोह में भाग दिलाने के लिए लायी थी। मंच पर पहुंचते ही जैसे ही लोगों की नजर मासूम सी बच्ची सूरी पर गयी तो लोग कौतूहल भरी नजरों से उसकी तरफ देख रहे थे।
बच्ची ने जब गाना शुरू किया तो अनायास ही लोगों की आंखों से आंसू निकल आये। सूरी ने गीत गाया जीते लकड़ी, मरते लकड़ी, देख तमाशा लकड़ी का…………शायद यह गीत सूरी पर पूरी तरह से सटीक बैठा। बचपन से लेकर आज 12 साल की उम्र होते होते सूरी बगैर लकड़ी के नहीं चल पा रही है और न ही शायद आजीवन वह बगैर लकड़ी के चल पायेगी। सूरी के पिता अमृतलाल खेतीबाड़ी करने का काम करते हैं। गीत पूरा होते होते भावुक हो चुके कई लोगोें ने सूरी को पुरस्कृत किया। मुख्य विकास अधिकारी की तरफ से 500 रुपये का पुरस्कार भी सूरी को दिया गया। पूरा स्वास्थ्य महकमा आज लवालव भरा था। चतुर्थश्रेणी कर्मचारी से लेकर एसीएमओ, सीएमओ, मुख्य विकास अधिकारी, जिलाधिकारी, एडी स्वास्थ्य के अलावा स्वास्थ्य विभाग के अन्य कई विभागों के अधिकारी मंच पर मौजूद थे लेकिन क्या सूरी को रोशनी देने का कोई रास्ता जनपद के स्वास्थ्य विभा के पास नहीं था। 500 रुपये सूरी को पुरस्कार स्वरूप देकर क्या सूरी की आंखों में रोशनी ला पायेंगे। जनपद के चिकित्सालयों में न तो डाक्टर हैं और न ही कर्मचारी। जनपद में 150 चिकित्सकों के पद पर मात्र 40 डाक्टर ही तैनात हैं। लचर हो चुकी स्वास्थ्य व्यवस्था में न जाने कितने सूरी जैसे बच्चे आंखों की रोशनी तलाश करने आते हैं लेकिन उन्हें कहीं भी रोशनी की एक किरण नजर नहीं आती। जनपद की स्वास्थ्य सेवा जब मासूम सूरी को आंखों की रोशनी नहीं दे सकती तो फिर इतने बड़े स्वास्थ्य महकमें का आखिर काम ही क्या है। यह प्रश्न शायद सूरी अपने गीत के माध्यम से अधिकारियों के जेहन में उतारने का प्रयास कर गयी।