सरेशाम से ही बन जाता है लोहिया अस्पताल निजी नर्सिंगहोम्स के दलालों का अड्डा

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फर्रुखाबाद: लोहिया अस्पताल के इमरजेंसी कक्ष में सरे शाम से ही डाकटरों के दलालों व निजी अस्पतालों की एम्बूलेंस चालकों का अड्डा बन जाती है। ओपीडी बंद होने के बाद आपात्कालीन चिकित्सा सुविधाओं की आस में आने वाले मरीजों व उनके तीमारदारों पर यह लोग गिद्ध की तरह घात लगाये बैठे रहते है। पीड़ित का मर्ज व उसके परिजनों की आर्थिक स्थिति भांपकर डोरे डालने शुरू कर देते हैं। इस पूरे चक्रव्यूह में लोहिया अस्पताल व सरकारी डाक्टरों के चमचे भी महती भूमिका निभाते हैं, क्योंकि लोहिया अस्ताल के आसपाल कुकुरमुत्ते की तरह उग आये निजी अस्पातल भी तो सरकारी डाक्टरों और यहां तक कि सरकारी दवाओं के ही बलबूते फल-फूल रहे हैं।

बीते कुछ सप्ताह पूर्व मुख्य चिकित्साधिकारी डा0 राकेश कुमार ने जब अपनी कुर्सी संभाली तो उनका निशाना था लोहिया अस्पताल। ठीक तीसरे दिन सीएमओ ने लोहिया अस्पताल का निरीक्षण किया और उनकी नजर लोहिया अस्पताल में घूम रहे दलालों व लोहिया कैम्पस में खड़ी प्राइवेट एम्बुलेंसों पर गई तो उन्होंने सीएमएस डा0 नरेन्द्र बाबू कटियार को तीखे लहजे में हिदायत दे डाली कि अगर लोहिया कैम्पस में किसी बाहरी व्यक्ति का प्रवेश हुआ तो उस चालक के खिलाफ एफआईआर पक्की समझो। आदेश इतने सख्त थे कि घंटे दो घंटे लोहिया अस्पताल में एम्बुलेंस के नाम पर एक पत्ता भी नहीं हिला। लेकिन शाम होते होते स्थिति पहले जैसी सामान्य हो गयी। एम्बुलेंसें आपातकालीन गेट पर आकर रुक गयीं और चालक अस्पताल के अंदर पहुंचकर अपने-अपने ग्राहकों का इंतजार करने में मशगूल हो गये। मुख्य चिकित्साधिकारी डा0 राकेश कुमार के आदेश की खुलेआम फिर धज्जियां उड़ा दी गयीं।

वहीं इस सम्बंध में लोहिया अस्पताल के सीएमएस नरेन्द्र बाबू कटियार ने बताया कि मुख्य चिकित्साधिकारी के आदेश से कोई भी प्राइवेट एम्बुलेंस लोहिया में प्रवेश नहीं करेगी। लेकिन अगर कोई एम्बुलेंस लोहिया में खड़ी कर रहा है तो उस पर सख्त कार्यवाही की जायेगी। इसके लिए आपातकालीन सुरक्षा में लगे होमगार्डों को कह दिया गया है कि किसी तरह की एम्बुलेंस को अस्पताल में प्रवेश न किया जाये। इसके बावजूद भी अगर कोई एम्बुलेंस घुसती है तो उस पर कानूनी कार्यवाही की जायेगी।

कहते हैं कि जब किसी कर्मचारी को काम न करना हो तो वह संगठन बनाकर राजनीति शुरू कर दे, अधिकारी स्वतः हड़ताल पर जाने के भय से उस पर उंगली नहीं रखेगा। ऐसा ही कुछ स्वास्थ्य विभाग में इन दिनों चल रहा है। न जाने कितने सीएमओ आकर चले गये लेकिन कर्मचारियों की स्थिति में एक प्रतिशत भी सुधार करने में नाकामयाब साबित हुए। जब भी जिले में कोई नया मुख्य चिकित्साधिकारी आता है तो वह लोहिया अस्पताल के निरीक्षण में अपनी पूरी बफादारी निभा देता है और कर्मचारियों को तो ऐसे हिदायत दी जाती है कि अगर इस आदेश से जरा भी इधर उधर हुए तो समझो कर्मचारी बर्खास्त ही हो जायेगा। परन्तु होता इसका ठीक विपरीत। जिले में कहीं भी किसी स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी को ले लीजिए। शायद ही कोई काम करना चाहता हो।