फर्रुखाबाद: बात छोटे और मझोले चुनाव की तो व्यक्तिगत मसले और दोस्ती अलग रंगत दिखाती है| न पार्टी का बंधन और न जात का सिला| होता है बस दिल मिले का सिला| कुछ तस्वीर यूं ही नजर आई सोमवार सुबह विजय के मुस्लिम बाहुल्य मोहल्ले खटकपुरा में| मियां हाजी वसीमजमा खान इसी मोहल्ले के वासिंदे है| विजय जब मोहल्ले में आये तो गले मिलना और मुसाफ़ा करना जो इस शहर की तहजीब में शामिल है, सो मिले| मैदान जंग का हो तो खुल के दांव चला मगर शाम की रोटी एक थाल में खा| पिछले सैकड़ो सालो में इसी शहर में ये मिसाले देखने को मिली है| न कभी मजहवी दंगा न वैमंस्ता| एक दफ्तर में पंडित और पठान देखे जा सकते है तो एक दूसरे की होली दिवाली और ईद पर गुजिया सिमैया खाते मिल जायेंगे| बड़ी बेमिसाल कहानी इस शहर की, बस कमबख्त नेताओ से बचा के रखना| जात धर्म अगड़े पिछड़े और मजहब का जहर इस देश में सिर्फ और सिर्फ नेता घोलते हैं आम इंसान को तो दो जून की रोटी कमाने से कहाँ फुर्सत|
बात टोपी और खालिस कांग्रेसी हाजी वसीम जमा खान की है| खालिस कांग्रेसी इसलिए कि जनाब मैडम लुईस खुर्सीद और सलमान खुर्शीद के बेहद करीबी और किचेन नहीं तो ड्राइंग रूम केबिनेट के आदमी जाने जाते है| और फर्रुखाबाद में तो बस कांग्रेस का मतलब भी यहीं से शुरू होता है और यहीं पर ख़त्म| तो जनाब वसीम साहव धुप से बचने के लिए ब्रिटिश टैप चार्ल्स शोभराज टाइप टोपी पहन के निकले| वोट मांगते गली में विजय से मिले तो उस्ताद ने टोपी की तारीफ कर दी| मियां ने देर नहीं की- भाई की टोपी है क्या बात करते हो आप लगा लो| उस्ताद में टोपी लगायी और चले वोट मांगे| तो कांग्रेसी वसीम अब विजय के साथ है या नहीं ये तस्वीरो से नहीं कहा जा सकता मगर दोस्ती राजनैतिक है और ये 24 तक किधर रहेगी इन्तजार करना होगा|