श्‍मशान घाट पर चलती है डायन बनाने की ‘फैक्‍ट्री’

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घनी काली अंधेरी आधी रात-सूनसान सड़क और नदी के किनारे सन्‍नाटे में लिपटी मौत की खामोशी। खामोशी के बीच झींगुर की आवाज माहौल को और डरावना बना देती हैं। ऐसा ही कुछ माहौल श्‍मशान घाट का होता है मगर जब श्‍मशान में शव की साधना हो रही हो तो, शायद किसी के भी रौंगटे खेड़े हो जायें। जी हां यह साधना की जाती है डायन की फैक्‍ट्री बनाने के लिये। चौंकिए नहीं हम बात कर रहे हैं हिंदुस्‍तान के स्‍टील नगरी जमशेदपुर की जहां औरतें डायन बनने आती हैं।

क्‍या वाकई में डायन का कोई वजूद है, लोग उसे क्‍यों कहते आधी रात की डायन, आखिर क्‍या होता है आधी रात के बाद? दिल्‍ली से लगभग डेढ़ हजार किमी दूर जमशेदपुर अपने-आप में काफी तरक्‍की कर चुका है, लेकिन उसके आप-पास के कुछ ऐसे गांव है जहां या तो डायन लोगों का शिकार करती हैं या फिर लोग डायन का शिकार करते हैं।

क्‍या होता है आधी रात के बाद?

घनी काली अंधेरी रात में पुरी दुनिया सो रही है, लेकिन वह जाग रही है, क्‍योंकि उसे मालूम है क‍ि आज की रात उसको वह हासिल होने वाला है जिसके लिए उसने अपनी सैकड़ो रातें बर्बाद की। वह बकायदा श्‍मशान में चिता के पास बैठकर अपने मकसद को अंजाम देने की कोशीश कर रही है। इधर वह पूजा शुरू करती है और दूसरी तरफ उसके साथ और भी औरते जुड़ती चली जाती है।

कुछ देर बाद चिता के पास ढोल और नगाड़े बजने लगते है, और वे मशगूल होकर नाचने लगती है। यह साधना भगवान के लिए नहीं बल्कि शैतान को खुश करने के लिए है, क्‍योकि यह औरते यहां आई है किसी को डराने नहीं, बल्कि डायन बनने। यह इलाका स्‍टील नगरी जमशेदपुर के आस-पास का है जहां आधी रात के बाद सजती है डायन की फैक्‍ट्री।

डायन का खौफ

झारखंड में फैक्‍ट्रियों के शहर जमशेदपुर के आस-पास के हलाकों में आज भी लोगों के दिलों दिमाग में डायनों का खौफ बरकरार है। आज भी लोगों के मन में उनकी दुनिया रहस्‍यमयी बनी हुई है। इस खौफ को देखकर ऐसा लगता है क‍ि यहा के गांवों में डायनों का तांडव जैसे रोज की बात हो। लोगों का कहना है क‍ि डायन बेहद खतरनाक होती हैं, वह रूप बदल सकती हैं। कुछ भी बनकर आ सकती हैं और लोगो का कलेजा उसे पसंद है।

लोगों का कहना है क‍ि 15 साल पहले एक औरत जीते-जी डायन बन गयी थी। चैत अमावस की रात वे दबे पाव अपने घर से निकली और वहां पहुची जहां हर तीसरी आधी रात को डायन की दुनिया आबाद होती है। इनके करीब जिसने भी जाने की कोशीश की वह जिंदा नहीं बच पाया।

क्‍या वाकई में डायन का कोइ वजूद है?

अब आपको बता दें कि एक अच्‍छी खासी और भली औरत को डायन करार दे दिया जाता है। वह जितनी बार चीख-चीख कर लोगों को इंसान होने का सबूत देती है, उतनी ही बार पूरा गांव उसे डायन करार दे देता है। डायन और इंसानों के बीच सह और मात के खेल में अभी तक जाने कितनी जाने जा चुकी है।

एक औरत को डायन करार देने का यह कोई पहला मामला नहीं है। झारखंड राज्‍य की सैकड़ों गांवों में आज भी नजाने कितनी औरतों को डायन का खिताब देकर उनको समाज से बेदखल कर दिया जाता है।

आखिर क्‍या है इस अंधविश्‍वास का सच

बैजंती और उसके पति की गांव में ही अच्‍छी-खासी जमीन हुआ करती थी। शादी के काफी समय बाद भी जब बैजंती को बच्‍चा नहीं हुआ तो शुरू हो गया जायदाद की लालच का एक भयानक खेल। उसका शौहर अक्‍सर बिमार रहने लगा, तो बैजंती के खिलाफ पूरे गांव में डायन की हवां उड़ा दी गयी। एक दिन पति की मौत के बाद लोगो ने अपनी साजिश को अन्‍जाम दे दिया। उसको भरे गांव में डायन करार दे दिया गया।

बैजंती को पूरे गांव के सामने इतना मारा गया कि उसने अपना डायन होना कबूल लिया। उसको गांव छोड़कर जाना पड़ा। अगर अपनी नजर सन 1951 से 2009 के बीच डाले तो पूरे राज्‍य में 20000 औरतो को डायन करार दे दिया गया और इनमें से ज्‍यादात्‍तर को खत्‍म कर दिया गया।