फर्रुखाबाद: शहर के बीचोबीच स्थित सुनहरी मस्जिद के निकट स्थित कोटेदार पुनीत पालीवाल की दुकान से सटे परिसर में उसके भाई लवी पालीवाल द्वारा संचालित केरोसिन से नकली डीजल बनाने की फैक्ट्री चलाने के मामले में कोटेदार सहित पांच लोगों के विरुद्व डीएम के आदेश पर एफआईआर दर्ज करा दी गयी है।
जेएनआई की खबर का असर
विदित है कि बुधवार को एक मारुति वेन में नकली डीजल व केरोसिन पकड़े जाने के बाद चालक की निशानदेही पर जिलाधिकारी के आदेश पर छापेमारी की गयी थी। छापे के दौरान शहर के बीचोबीच घनी बस्ती में स्थित सुनहरी मस्जिद के निकट कोटेदार पुनीत पालीवाल के बगल में स्थित परिसर में कोटेदार के भाई लवी पालीवाल द्वारा संचालित केरोसिन से नकली डीजल बनाने की फैक्ट्री पकड़ी गयी थी। छापे के दौरान लगभग तीन हजार लीटर अपमिश्रित नकली डीजल व 600 लीटर केरोसिन का जखीरा बरामद किया गया था। लगभग दिन भर चली छापेमारी के बाद सायंकाल जिला पूर्ति अधिकारी आर एन चतुर्वेदी की ओर से जिलाधिकारी को भेजी गयी रिपोर्ट में कोटेदार पुनीत अग्रवाल को लगभग साफ बचा लिया गया था। इस सम्बंध में जेएनआई की ओर से समाचार भी प्रसारित किया गया था। जेएनआई में समाचार प्रसारण के उपरांत जिलाधिकारी ने फाइल को दोबारा मंगवाकर उसमें कोटेदार पुनीत पालीवाल को मुल्जिम न बनाये जाने पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की थी। इसी के बाद पूर्ति विभाग ने पुनरीक्षित रिपोर्ट जिलाधिकारी के समक्ष प्रस्तुत की। जिसमें कोटेदार को भी मुल्जिम दर्शाया गया। इसके बाद ही जिलाधिकारी ने फाइल पर हस्ताक्षर किये।
गुरुवार को जिलाधिकारी की अनुमति के उपरांत कोटेदार पुनीत पालीवाल, उसके भाई व फैक्ट्री संचालक लवी पालीवाल व मारुति वेन के साथ पकड़े गये व्यापारी ब्रहृमाशंकर गुप्ता, उसके साझीदार लल्ला सिंह व ड्राइवर मुकेश गुप्ता के विरुद्व कोतवाली फर्रुखाबाद में पूर्ति निरीक्षक मन्ना सिंह ने मुकदमा दर्ज कराया है।
पूरे प्रकरण में पूर्ति विभाग की भूमिका पर शुरू से ही प्रश्नचिन्हं लगा हुआ है। शहर के अंदर घनी बस्ती के बीचोबीच चल रहे इस अवैध कारोबार की जानकारी पूर्ति विभाग को न होना शुरू से ही जिलाधिकारी के गले नहीं उतर रहा था। यही कारण है कि उन्होंने मौके पर ही जिला पूर्ति अधिकारी आर एन चतुर्वेदी की जमकर क्लास लगायी थी। इसके बावजूद पूर्ति विभाग ने पूरी जांच पड़ताल के दौरान न तो कोटेदार पुनीत पालीवाल की दुकान का निरीक्षण किया, न उसका स्टॉक सीज किया और न ही उसकी दुकान पर उपलब्ध अभिलेखों की जांच पड़ताल की। इस दौरान कोटेदार को अपना स्टॉक पूर्ण करने व अभिलेख दुरुस्त करने का पूरा अवसर दिया गया। जाहिर है डीएम की सख्ती के चलते प्रथम दृष्टया तो पूर्ति विभाग के प्रयासों पर पानी फिर गया परन्तु जांच के दौरान कोटेदार के विरुद्व कोई प्रभावी कार्यवाही हो पायेगी, इसकी संभावना तो फिलहाल कम ही नजर आती है।