आजाद भारत में पहली बार सरकार आपसे आपकी जाति पूछेगी, छिपाने का विकल्प भी

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‘जाति न पूछो साधु की..’ सूत्र वाक्य को आम तौर पर अंगीकार कर चुके समाज के लिए आने वाला वक्त बड़े बदलाव वाला है। सियासत का मुख्य आधार बनने के बाद भी अब तक सरकार ने स्वतंत्र भारत में अधिकृत रूप से कभी नागरिकों की जाति नहीं पूछी। अब एक जून से शुरू होने जा रही आर्थिक-सामाजिक जनगणना में जाति का भी सर्वेक्षण होगा। इस घोर जातिवादी दौर में भी एक बहुत बड़ा तबका ऐसे लोगों का है, जो इसके विरुद्ध अपनी प्रतिबद्धता रखते हैं।

आजादी के बाद पहली दफा सरकार आपसे आपकी जाति पूछने जा रही है। हालांकि 80 साल पहले ब्रिटिश काल में हुई जातिगणना से यह प्रक्रिया थोड़ी अलग होगी। बहुतेरों की झिझक का ख्याल रखते हुए इसमें जाति छिपाने का विकल्प खास तौर पर रखा गया है।  कोई व्यक्ति अपनी जाति न बताना चाहे तो उस कॉलम में ‘इंसान’ या ‘भारतीय’ लिख सकता है। जो टीमें जाति की गणना को निकलेंगी, उनके सदस्यों को इस बात की हिदायत दी गई है कि जाति न बताने के इच्छुक नागरिकों की भावनाओं का सम्मान रखा जाए और उपलब्ध विकल्पों को ही भरा जाए।