फर्रुखाबाद: 2.75 लाख की आबादी और लगभग 42 हजार परिवारों के लिए नगरपालिका परिषद् फर्रुखाबाद में 15 करोड़ रुपये वार्षिक वेतन के नौकर तैनात हैं| इसके बाबजूद केवल 15 हजार परिवारों तक ही नलों का पानी केवल भूतल तक पहुंच पाता है| नगर पालिका के पास 600 सफाई कर्मिओ की भारी भरकम फ़ौज है| तस्वीर का दूसरा पहलु ये है कि नगर की नालिओ में कचरा जमा है, गलिओं में बदबू है और हर 50 मीटर पर कचरे के ढेर हैं। नगरपालिका में अधिशाषी अधिकारी से लेकर छोटे मोटे अफसर रैंक के कर्मिओं से लेकर बाबू, ट्यूबवेल आपरेटर 177 की संख्या में जनता की गाढ़ी कमाई से दिए गए टैक्स से वेतन पाते हैं| यानि कुल मिलाकर नगरपालिका परिषद् फर्रुखाबाद में नियमित और अनियमित 777 नौकर जनता की सेवा के लिए तैनात है और व्यवस्था कितनी दुरुस्त है इस बात का अंदाजा हर वो आम नागरिक लगा सकता है जो चेयरमेन या पूर्व चेयरमेन नहीं है, कोई सरकारी अफसर नहीं है या नगरपालिका की नियमित सुविधाओ के लिए अतिरिक्त धन खर्च नहीं करता है|
सरकारी अभिलेखों में ये पानी शोधित होकर पहुंचता है मगर हकीकत इससे कोसो दूर है| पानी में नियमित गुणवत्ता पूर्वक शोधित होना तो दूर 90 प्रतिशत पानी की लाइने क्रेक या लीक है| यानि नाली या गन्दा पानी भी पीने के पानी के साथ पाइप में नहीं पहुचता इस बात की कोई गारंटी नगरपालिका नहीं दे सकती| पिछले दस साल में लाखो रुपये की क्लोरीन खरीदी गयी और पानी में केवल तब तब मिली जब मीडिया में इसकी खबरें छपीं| यानि चेयरमेन सहित हर बड़ा आदमी जो पानी शोधक यंत्र लगा सकता है को छोड़ अन्य नागरिक नगरपालिका का बिना शोधक किया हुआ पानी पीने को मजबूर रहा है|
जनपद फर्रुखाबाद की नगरीय आबादी में अभी भी 291 घरो में किसी भी प्रकार के प्रकाश की व्यवस्था नहीं है| 11481 घरो में शौचालय नहीं है| अभी भी 2727 घरों के शौचालय की सफाई मैनुअल यानि सफाई कर्मी नाली में बहाता है| ये आंकड़े सरकारी हैं और 2011 की जनगणना के हैं| जनगणना करने वाले कुछ कर्मिओ ने इन आंकड़ो में भी फर्जीवाडा कर डाला है| नगरीय क्षेत्र में 10715 शौचालय सीवर लाइन से चलते दिखाए हैं जबकि सबसे बड़ी आवास विकास कालोनी तक में सीवर लाइन चोक पड़ी है|
जरा सोचिये-
खैर बात नगरपालिका परिषद् में भारी भरकम नौकरों के खर्च को लेकर है| क्या 15 करोड़ रुपये के नौकर रखने के बाद भी शहर की व्यवस्था इस कदर बदहाल होना चाहिए| आबादी के हिसाब से प्रतिव्यक्ति 545 रुपये का खर्च नगरपालिका के नौकरों पर होता है| इस खर्च में विकास पर होने वाला खर्चा, टूट फूट और रखरखाव शामिल नहीं है| जो भी नगरपालिका में चेयरमेन की कुर्सी पर बैठा उसने नगर की सुविधाओ के लिए क्या किया? पूछ बैठो दयमन्ती सिंह/विजय सिंह से या मनोज अग्रवाल से तो झट से नालियां और पक्की गलियां और सड़के गिना देंगे| गलिओं के किनारे लगे पत्थर और उन पर लिखे चेयरमेन के नाम उनकी बात की पुष्टि भी करेंगे |
मगर
* क्या कभी किसी घर में बिना मोटर लगाये पहली मंजिल में पानी पहुचता है?
* क्या बाजार में सफाई कर्मी बिना 20 से 50 रुपये लिए नियमित सड़क चमकाता है?
*क्या किसी परिवार में शादी व्याह के मौके पर नगरपालिका की सफाई और पानी की सुविधाए बिना घूस और अतरिक्त धन खर्च किये मिलती है|
*क्या वाटर सप्लाई में नियमित क्लोरीन डाल पानी शुद्ध किया गया?
*क्या नियमित मच्छर को भगाने/मारने के लिए इंतजाम किये गए?
*क्या कभी इन अध्यक्षों ने शिकायत दर्ज करने के लिए कोई खुला और प्रसारित इंतजाम किया है?
*जन्म से लेकर म्रत्यु तक प्रमाण पत्रों के लिए घूस निर्धारित है| नहीं दी तो इतने नुक्ते लगा देगा पालिका कर्मी जन्म वाले को शमशान तक समय लग जायेगा प्रमाण पत्र पाने में| आखिर क्यूँ?
*क्यूँ नहीं नगरपालिका के दफ्तरों में कर्मिओ की टेबल पर उनके नाम अंकित नहीं कराये गए?
*कौन बाबू और कौन सा अफसर क्या काम करता है इस बात का बोर्ड क्यूँ नहीं लटकाया गया?
*फतेहगढ़ का नगरपालिका दफ्तर कहाँ है किसी नए आदमी से पूछ लीजिये बेचारा दफ्तर के बाहर बैठा होगा तब भी ढूंढ नहीं पायेगा| क्यूँ नहीं लगाया बोर्ड?
यदि नहीं तो क्यों ?
मालूम हो कि नगरपालिका का चेयरमेन इसलिए बनाया जाता है ताकि प्रशासनिक व्यवस्था पर निगाह रखे और व्यवस्था को ईमानदारी से चुस्त और दुरुस्त बनाये| इसलिए नहीं कि जीतने और कुर्सी पर बैठने के बाद निजी लाभ के लिए नगरपालिका का दोहन करे|