फर्रुखाबाद: चुनाव में कहीं और और अब सपा में निष्ठां की दुहाई देना सपाइयों को महँगा पड़ रहा है। किसी सपाई ने कोई प्रार्थनापत्र पेश किया कि इससे पहले ही उस बूथ के वोटों का लेखा जोखा पेश कर दिया जाता है कि उस बूथ पर सपा किस नम्बर पर रही। राज्य मंत्री नरेन्द्र सिंह यादव तो उन गाँव में स्वागत समारोह में जाना ही कबूल ही नहीं कर रहे हैं जिनमे सपा तीसरे नंबर पर रही।
सपा की सरकार क्या बनी ऐसे कार्यकर्ताओं की बाड़ आ गयी है जो सपा का तमगा रखने के बावजूद निर्दलीय उम्मीदवार को चुनाव लड़ाते रहे। सरकार बनते ही ऐसे नेता अपनी पुरानी सेवाओं को लेकर सक्रिय हो गए। लेकिन उनकी पोल खोलने वाले तो वहीँ मौजूद होते हैं। नेता जी के पूछने से पहले ही बता देते हैं कि उन साहब की हकीकत क्या है। सपा के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने निर्देश दिए हैं कि ऐसे लोग पदाधिकारी ही न बनाये जाएँ जिनके बूथ पर सपा हार कर आई है। व्यवसायिक शिक्षा राज्य मंत्री नरेन्द्र सिंह यादव तो उससे भी एक कदम आगे बढ गए हैं। श्री यादव उन गाँव में स्वागत कार्यक्रम ही नहीं रख रहे हैं जिनमे सपा की दुर्गति हुई। इस नीति से कई लोग स्वागत के नाम पर नेता जी से नजदीकी का ढोल नहीं पीट पाए। 5 साल बाद सरकार बनी तो सपाइयों के तमाम काम निकल आये हैं। शास्त्र लाईसेंस से लेकर हैण्ड पम्प तक सब कुछ चाहिए है। लेकिन माफ़ करैं आपकी अर्जी तब मंजूर की जाएगी जब आपने अपने बूथ पर उम्मीदों की साईकिल में जोर का धक्का लगाया हो। बरना डिब्बा गोल। सूत्रों की मानें तो चन्द्र पाल सिंह सपा जिलाध्यक्ष पद से हटाये ही इसीलिए गए की अपने बूथ पर साईकिल नहीं चला पाए। इसी तरह नदीम फारूकी जिलाध्यक्ष पद की दौड़ में इसीलिए पिछड गए क्यों कि वह कुछ दिन बसपा में रह आये थे।