इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि कैबिनेट मंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति व राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त होती है, जिसकी न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती। अदालत ने इसी के साथ केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद को हटाए जाने की मांग वाली जनहित याचिका खारिज कर दी है। अपने फैसले में पीठ ने कहा कि याचिका की मांग के अनुसार प्रधानमंत्री को यह निर्देश नहीं दिया जा सकता कि राष्ट्रपति की सलाह से केन्द्रीय विधि मंत्री को हटा दिया जाए। पीठ ने कहा कि पहले ही चुनाव आयोग के समक्ष सलमान खुर्शीद माफी मांग चुके हैं इसलिए याचिका पोषणीय नहीं है। वरिष्ठ न्यायमूर्ति उमानाथ सिंह व न्यायमूर्ति वी.के. दीक्षित की खंडपीठ ने यह फैसला एक जनहित याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है। जनहित याचिका में कहा गया कि केन्द्रीय विधि मंत्री सलमान खुर्शीद ने गत विधानसभा चुनाव में अल्पसंख्यकों को नौ प्रतिशत आरक्षण दिए जाने की बात कही है, इस कारण इनको इस महत्वपूर्ण पद पर रहने का कोई अधिकार नहीं है।
अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि एक मंत्री को नीतिगत मामलों में समाज में टकराव पैदा करने वाला वक्तव्य नहीं देना चाहिए। लेकिन इस मामले में केंद्रीय विधि मंत्री ने अपनी पार्टी की नीतियों की पुन: घोषणा की थी। जनहित याचिका प्रस्तुत कर अधिवक्ता अशोक पांडेय ने कहा था कि 8 जनवरी 2012 को ‘माडल कोड आफ कंडक्ट (चुनावी अधिसूचना) लागू हो चुकी थी, उस दौरान केंद्रीय कानून मंत्री द्वारा इस प्रकार से आरक्षण दिए जाने का मुद्दा उठाना असंवैधानिक कृत्य था। केंद्र सरकार की ओर से एडीशनल सॉलीसीटर जनरल डॉ. अशोक निगम ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि कैबिनेट मंत्री की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 74 व 75 के तहत नियुक्ति होती है। कहा कि इसको चुनौती नहीं दी जा सकती। पीठ ने याचिका खारिज कर दी है।