फर्रुखाबाद: इसे घूसखोरी और भ्रष्टाचार की हद ही तो कहेंगे। वन चेतना केन्द्र निनौआ में बनायी जा रही चाहरदीवारी अमानक निर्माण सामग्री का जीता जागता उदाहरण है। जहां मसाले में सिर्फ बालू का ही प्रयोग किया जा रहा है। जिसके फलस्वरूप एक तरफ से दीवार पर काम होता है दूसरी तरफ टूटती जा रही है।
17 दिसम्बर 1991 में आर के माथुर मुख्य वन संरक्षक द्वारा वन चेतना केन्द्र निनौआ का लोकार्पण किया गया था। इसके बाद वन चेतना केन्द्र में काफी समय तक विभिन्न प्रकार के पशु पक्षी भी रखे गये हैं। लेकिन भ्रष्टाचार की आंधी उन पशु पक्षियों को भी उड़ा ले गयी। आज वन चेतना केन्द्र खण्डहर बन गया है। जिसके चौखटों में न तो दरबाजे हैं और न ही जंगलों में सरिया। रह गया है तो केवल गेस्टहाउस का मुख्य भवन जो विगत कई वर्षों से केवल रसूखदार लोगों व अफसरों की अय्याशी का अड़डा बन कर रह गया है। अब उजड़ चुके वन चेतना केंद्र की सुरक्षा के नाम पर वन विभाग ने उपलब्ध विभागीय बजट के बंदरबांट के लिये इस के चारो तरफ चाहरदीवारी बनाने का प्रस्ताव सरकार से पास करा लिया। और फिर शुरू हुआ गिद्ध भोज का दौर।
जिसका जीता जागता उदाहरण आप चित्रों में देख सकते हैं। मजदूरों से पूछे जाने पर कि दीवार कौन बनवा रहा है तो बमुस्किल उनके मुहं से निकला कि मिश्रा जी। बनवा कोई भी रहा हो लेकिन जो बनवा रहा है यह मानकर चलिए कि वह खुद बन रहा है। तकरीबन 80 प्रतिशत बालू द्वारा बाउन्ड्रीबाल का निर्माण किया जा रहा है। अभी बाउंड्री बनकर खड़ी भी नहीं हो पायी थी कि उसके गिरने का दौर शुरू हो गया। अधिकारी बखूबी जानते हैं कि इतनी जंगल में किसकी नजर पहुंचेगी। जिसका फायदा उठाकर वन विभाग के अधिकारी दीवार निर्माण के नाम पर मोटी कमाई कर रहे हैं।
इस सम्बंध में जिला वन अधिकारी डीपी गुप्ता से फोन पर बात की गयी तो उन्होंने यह तो बता दिया कि बाउंड्रीवाल बन रही है, लेकिन यह बताने में परहेज कर गये कि कौन बनवा रहा है। जानकारी देने के लिए तकरीबन आठ दिन का समय मांगा हैं और यह कहकर फोन काट दिया कि मैं अभी बाहर हूं। इस बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनको इस बात की जानकारी नही थी कि यह दीवार कौन बनवा रहा है और कितनी लागत से बन रही है। कलई खुलने के डर से जिला वन अधिकारी ने तत्काल फोन काट दिया।