मासूमों की जान का सौदा, 40 हजार में बिका प्रधान

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फर्रुखाबादः विकासखण्ड बढ़पुर के ग्राम जिजुइया के प्राथमिक विद्यालय में निर्माणाधीन अतिरिक्त कक्ष के लेंटर का बीम बुधवार को अपने ही बजन से खींचे निपोर गया। बीम चटखा देख ग्रामीणों ने हो हल्ला शुरू किया तो भवन प्रभारी प्रधानाध्यापक सुनील सक्सेना व ग्राम प्रधान बांकेलाल ने तुर्की व तुर्की एक दूसरे की कमियां छुपाना शुरू कर दीं। हद तो तब हो गयी जब मीडियाकर्मियों के सामने ही प्रधान चटके बीम को भी सही बताने तक पर उतर आये। बाद में ग्रामीणों द्वारा टीका टिप्पणी किये जाने पर बिफरी प्रधानाध्यापक ने बीएसए और प्रधान पर रुपये लेने का आरोप लगाते हुए यहां तक कह डाला कि मैं क्या अपने घर से पैसा लगा दूं।

परिषदीय प्राथमिक विद्यालय जिजुइया विकासखण्ड बढ़पुर में दो अतिरिक्त कक्षों का निर्माण किया जा रहा है। इसके लिए दो लाख पांच हजार प्रति की दर से धनराशि प्राप्त हुई। भवन प्रभारी प्रधानाध्यापिका सुनील सक्सेना को बनाया गया। विभाग की परिपाटी के अनुरूप यहां भी भवन प्रभारी को धनराशि आवंटित करने के एवज अग्रिम वसूली कर ली गयी। बाद में प्रधान जी ने भी अपना हिस्सा प्राप्त किये बिना चेक पर साइन करने से इंकार कर दिया।

अपने पास से घूस और कमीशन देने के बाद भवन प्रभारी की लालच का जाग जाना भी स्वाभाविक था। सो उसने भी अपना काम किया। परिणाम यह हुआ कि बुधवार को जब पहले अतिरिक्त कक्ष के लेंटर वाले बीम का झूला हटाया गया तो बीम अपने ही बजन से चटक गया। जाहिर है जिस बीम पर पूरे लेंटर का बजन आना था जब वह ही चटक गया तो भवन की स्थिति का अंदाजा स्वयं ही लगाया जा सकता है।

बीम चटका होने की सूचना गांव में फैली तो ग्रामीणों ने हो हल्ला शुरू कर दिया। सूचना पाकर मीडियाकर्मी भी मौके पर पहुंचे तो ग्रामीणों की भीड़ स्वतः एकत्र हो गयी। मीडिया के सामने ग्रामीणों ने प्रधानाध्यापिका को आड़े हाथों लेना शुरू किया तो वह हत्थे से उखड़ गयीं। चेतावनी के अंदाज में बोलीं कौन मेरा क्या कर लेगा। दफ्तर से लेकर प्रधान तक सबको हिस्सा दिया है।

थोड़ी देर में ग्राम प्रधान बांकेलाल राजपूत भी प्रकट हुए। लोगों ने उन्हें घेरा तो वह भी प्रधानाध्यापिका के बचाव में ही उतर आये। आंखों के सामने चटके जर्जर भवन और झड़ते प्लास्टर को देखने के बावजूद उन्होंने सीमेंट, मसाले और निर्माण की मुक्त कंठ से प्रशंसा कर डाली। बोले मसाला तो मैं अपने सामने बैठकर बनवाता हूं। बेचारे ग्रामीण कोसते, बुदबुदाते घरों को लौट गये।

इस सम्बंध में बेसिक शिक्षा अधिकारी डा0 कौशल किशोर से सम्पर्क करने का प्रयास किया गया परन्तु उन्होंने फोन उठाने की जहमत नहीं की। उन बेचारों के साथ सुबह ही कर्मचारियों द्वारा अभद्रता कर बंधक बना लेने का हादसा हो चुका था। हो सकता है वह उसी उधेड़ बुन में लगे हों। पर सवाल यह है कि लाखों रुपये से बन रहे इन विद्य़ालय भवनों में जब हादसा होगा तो वह कौन से बदनसीब बच्चे होंगे। इस बात का अंदाजा आज न तो प्रधान को है न तो प्रधानाध्यापकों को और न ही गांव के उन भोलेभाले ग्रामीणों को।