फर्रुखाबाद परिक्रमा- मृग तृष्णा, ज्योतिष और जन्म कुंडली का खेल

EDITORIALS FARRUKHABAD NEWS

पड़ोसी जिले के दो सजातीय नेता हैं – एक अपने संघर्ष और पुरुषार्थ के बल पर बहुत आगे निकल गये- दूसरे अपनी महत्वाकांक्षाओं के मकड़जाल में फंसकर कई दलों में ठिकाना ढूंढ़ते हुए पुनः पहले नेताजी की शरण में आ गये। यहां उनके परिचितों की अच्छी जमात है- दाम पैसे की कोई कमी नहीं है। इसलिए यहां छिबरामऊ के एक पंडित जी के साथ आते जाते रहते हैं। कभी पार्टी के पर्यवेक्षक बनकर और कभी अपने भविष्य की चिंता में।

नेता जी को ज्योतिष जन्म कुंडली आदि पर अनन्य विश्वास है। स्नातकोत्तर विद्यालय के सेवा निवृत्त आचार्य के वह बहुत पुराने शिष्य रहे हैं। इस बात को लेकर बहुत उत्साहित हैं कि नेता जी ने उच्च सदन की सदस्यता का पक्का भरोसा दिया है। आनन फानन अनेकों ज्योतिषियों से परामर्श कर जन्मकुण्डलियां बनवाकर एक दिन अपने वयोवृद्व आचार्य जी के यहां आ धमके।

आचार्य जी ने शिष्य की स्थिति को समझ कर नगर और आस पास के कई नामी गिरामी पंडित बुलाये। सभी सिर जोड़ कर नेता जी की जन्म कुंडली और गृह नक्षत्र खंगालने लगे। अपने-अपने निष्कर्ष और अपनी-अपनी ठकुर सुहाती। सबकी बातें सुनने के बाद आचार्यजी धीर गंभीर वाणी में बोले, भइया हमें नहीं मालूम कि तुम्हारी किससे क्या बात हुई और किसने तुमसे क्या कहा। परन्तु जिनकी बात तुम कह रहे हो उनकी राशि सिंह है और तुम्हारी राशि है कुंभ। यह दोनो मित्र राशियां नहीं है। इसलिए मेरी समझ से ज्यादा उम्मीदें मत पालो। जहां हो वहीं मजबूती से बने रहो। समाज सुधार का जो व्रत लिया है उसी में पूरी निष्ठा और ईमानदारी से लगो। प्रभु चाहेंगे तो सब कुछ ठीक ठाक हो जायेगा। महत्वाकांक्षाओं की तरंगों में हिलोरें ले रहे नेता जी की समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह अपने पूज्य गुरू की बात पर हंसें या रोयें। क्योंकि दूसरे दलों में रहते हुए उन्होंने अपने आज के नेता को सांप, काला नाग, नेवला और जाने क्या-क्या बातकर चुटकले कहानियां बनाकर सुनाकर अपनी दबंगई और मर्दानगी का ढिंढोरा पीटा था।

तूफान के बाद की खतरनाक शांति

न कहीं शोर न कहीं ढोल न नगाड़ा- चुनाव का ऐसा जबर्दस्त तूफान आया कि मतदान के बाद लगता है लोगों ने मौन व्रत ले लिया हो। होली सर पर है और हुड़दंग पूरी तरह नदारद। कंपिल, कायमगंज, शमशाबाद, नबावगंज, अमृतपुर, राजेपुर, कमालगंज, मोहम्मदाबाद जैसे छोटे बड़े कस्बों की तो बात ही क्या है। जिला मुख्यालय फर्रुखाबाद, फतेहगढ़ में जैसे बतकही चर्चाओं समीकरणों की काटछांट पर पाबंदी लग गयी हो। 19 फरवरी के बाद सबके सब सयाने बन गये।

सुनना सब चाहते हैं। सुनाना कोई नहीं चाहता। खुला खेल फरक्काबादी के बड़े-बड़े सूरमा भी खुलेआम पहले तरह से जोरदारी से कुछ कहने से बच रहे हैं। उन्हें उनके पुराने दिनों और चर्चाओं की याद दिलाओ तो भी तरागी की तरह कहते हैं कौन बेमतलब की मगजमारी करे। अरे भाई इतने दिन धीरज रखा तो अब एक दो दिन में कौन पहाड़ गिर पड़ रहा है। बंगाली होटल तो उजड़ गया। चौक की पटिया से लेकर किराना बाजार लोहाई रोड़, रेलवे रोड, नेहरू रोड़ पर कहीं भी बिना खर्चे के चुनाव के बाद होने वाली चर्चा का जलवा इस बार दिख नहीं रहा है।

अब चचा खैराती लाल को चैन कहां। लगभग सभी सूरमाओं के घरों और कार्यालयों में ताकझांक कर आए हैं। जहां गए वहां उसी की जय जय कार शावासी भी बटोरी और शूरमाओं के दिल का दर्द और डर भी जान लिया।

मियां झानझरोखे और मुंशी हरदिल अजीज सातवें चक्र के मतदान के बाद अपने निजी काम का वास्ता देकर लखनऊ  में ही रुक गए। चचा खैराती लाल को अपने दिल के गुबार बताने थे और दोनो के हाल लेने भी थे। टेलीफोन पर हुई तीनों की लम्बी बात का लब्बो लुआब यह है कि इस बार सन्नाटा केवल चुनाव बाद फर्रुखाबाद में ही नहीं है। कमोवेश पूरे उत्तर प्रदेश का यही हाल है। रिकार्ड तोड़ मतदान, पैसे के वितरण और देशी विदेशी दारू की बेमौसम आई बाढ़ ने खबरचियों, लाल घुमक्कड़ों और मौसमी चटकारे लेने वालों की बोलती बंद कर दी है। न कोई रिस्क लेना चाहता है और न ही किसी की नाराजगी मोल लेना चाहता है। जिन लोगों ने आंधी के आमों की तरह से कई-कई लोगों से रुपये झटके और गटकने गटकाने के लिए देशी विदेशी दारू की पार्टियां एकत्र की हैं। उन्हें तो नींद नहीं आ रही है। कथित गद्दारों से पैसे वापस मांगने की तैयारी के साथ उन्हें सबक सिखाने के अरमान मचल रहे हैं। प्रेम और सौहार्द का त्यौहार होली सर पर है। इसलिए आस्तिक, नास्तिक, हिन्दू मुस्लिम, सिख ईसाई सभी यही दुआ प्रार्थना कर रहे है। कि सब कुछ शांति और बिना किसी बबाल के निबट जाये।

प्रदेश में नई सरकार बने और मतदाताओं ने जिस विश्वास के साथ झूमकर ऐतिहासिक मतदान किया है उनकी आकांक्षाओं की पूर्ति हो। होली के प्रेम भरे त्यौहार पर सबकी सबको यही शुभकामनाएं हैं।

थकना मत रुकना मत

मंगलवार को लोकतंत्र के महासंग्राम के परिणाम उजागर हो जायेंगे। रिकार्ड तोड़ मतदान ने इस बार के चुनाव को ऐतिहासिक बना दिया है। इस बार यह साबित हो गया है कि हम अपने पुरुषार्थ और सामूहिक संकल्प से देश, प्रदेश और समाज की दशा और दिशा दोनो बदलने की कुब्बत रखते हैं।

2009 के लोकसभा चुनाव में हुए कम मतदान के बल पर वोटों के बटवारे में बहुत कम मत प्रतिशत से जीतने वाले जन प्रतिनिधियों को जिम्मेदार पदों पर बैठकर बहुत ही गैर जिम्मेदार वयानवाजी करते देखकर मन में यह भाव आया कि यदि यही सब चलता रहा तब फिर लोकतंत्र का कोई मतलब नहीं रह जायेगा।

तभी से गली मोहल्ले के स्तर पर व्यक्तिगत रूप से लोगों को मतदान करने हेतु प्रेरित करने का प्रयास प्रारंभ हुआ। समझाने और समझने के अंदाज में बातें चलने लगीं। बात बढ़ी तो बढ़ती ही चली गयी। ऐसा लगा कि जो भाव मन में आया था वही भाव एक ही साथ देश प्रदेश के लाखों लाख लोगों के मन में आया।

इसी के चलते बात फैलती गयी, बढ़ती गयी। कुछ ने उपहास किया, बहुतों ने सराहा। धीरे-धीरे साथी बढ़ते चले गये। वह भी अभियान में लगे। हम लोग जहां भी जाते विविध संदर्भों से मतदान का प्रतिशत बढ़ाने की चर्चा करते। हमने बिना संकोच के गांधी जी के अंतिम आदमी तक पहुंचने का प्रयास किया। धीरे-धीरे हमारी झिझक और संकोच दूर होता गया। हमें यह लगने लगा कि देश और समाज का छोटे से छोटा आदमी भी यदि सच्चे मन और संकल्प के साथ किसी अच्छे कार्य और अभियान के लिए आगे बढ़े तब फिर उसकी सफलता को कोई रोक नहीं सकता।

अन्ना हजारे के आंदोलन और उसकी विराट जन भागिता ने हमारे में नई ऊर्जा और उत्साह का संचार किया। 2 अक्टूबर 2011 को दिल्ली में गांधी समाधि पर मौन विरत रखकर मतदान प्रतिशत बढ़ाने के कार्य में और तेजी से जुटने का संकल्प लिया। हमारा यह अकिंचन अत्यंत लघु प्रयास था। परन्तु जन साधारण के व्यापक सहयोग ने हमें रुकने न दिया। फिर तो धीर-धीरे चारो ओर से चाहे सामाजिक संस्कृति, शैक्षिक संस्थाएं हों, मीडिया हो, चुनाव आयोग हो, देश, प्रदेश के विकास के लिए चिंतित युवा हो, व्यापारी, किसान, मजदूर, व्यापारी, अधिवक्ता, चिकित्सक, महिलायें, पुरुष, समाज के विविध वर्गों के लोग तन कर मुट्ठी बांधकर लाम बंद हो गए। जिसका परिणाम है पांचों प्रदेश में सर्वाधिक मतदान का कीर्तिमान। मतदाता सूची में नाम न होने जैसी कुछ कमियां लापरवाहियां भी सामने आयीं उन्हें आगे से दूर करना है।

लेकिन हमें भागना नहीं है, रुकना नहीं है। कीर्तिमान तो तोड़ने के लिए ही बनते हैं। 2012 में जो कीर्तिमान लोकतंत्र के जागरूक पहुरुओं ने बनाया है। निश्चित रूप से अगले लोकसभा चुनाव में वह चाहे जब हो हमको सबको मिलकर अपनी सामूहिक संकल्प शक्ति के बल पर तोड़ना है। मतदान में महिलाओं सहित समाज के हर वर्ग की भागीदारी को और बढ़ाने के लिए बिना थके, बिना रुके शतप्रतिशत मतदान के लक्ष्य के बिना किसी दबाव के निष्पक्ष और निर्भीक होकर प्राप्त करना है।

भैया चलो डालो वोट।
 करोगे तुम जितना मतदान
होगा लोकतंत्र बलवान!
जड़ें होंगी उसकी मजबूत
झुकेगी स्वस्थ फलों की डाली
मिलेगी हम सबको खुशहाली!
सड़े फल स्वयं गिरेंगे टूट
झूमकर करोगे जब मतदान
बढ़ेगी लोकतंत्र की शान
यही है अन्ना का ऐलान!

और अंत में ………………………………………………………….

कभी-कभी जाने अनजाने कोई ऐसा कार्य हो जाता है जिसकी टीस जिन्दगी भर सालती रहती है- जब पांच प्रदेशों का मतदाता झूमकर मतदान कर ऐतिहासिक कीर्तिमान बना रहा था तब कुछ ऐसे लोग ‘पप्पू’ बन गए जिन पर गुस्सा नहीं दया आती है। अपने जिले फर्रुखाबाद के लिए कहा जाता है –

अक्ल और दानिश के जो माने हुए उस्ताद हैं,
ऐसे उस्तादों का मरकज अपना फर्रुखाबाद है।

बुरा न मानो होली है– मौका भी है दस्तूर भी है-
अपने आस पास के उन पप्पुओं की सूची बनाइए जो चुनाव के महापर्व पर भी अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं कर पाये- दो नाम हम बताते हैं:
1.    पितौरा निवासी भारत सरकार के विधि मंत्री
2.    फर्रुखाबाद सदर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी

आगे के नाम आपको जोड़ने हैं- जिससे यह गणमान्य लोग दुवारा ऐसी गलती करने का न सोचें। और अंत में जय हिन्द! होली मुबारक!

सतीश दीक्षित
एडवोकेट
1/432 शिव सुन्दरी सदन
लोहिया पुरम, आवास विकास
कालोनी, बढ़पुर-फर्रुखाबाद।