मायावती को जिताने के लिए लिए कांग्रेस ने पूरी ताकत झोंकी

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मायावती को तीसरी बार विधान सभा में पहुंचाने के लिए इस बार कांग्रेस ने पूरी ताकत झोंक दी है। राहुल गांधी, जितिन प्रसाद, जफर अली नकवी सहित आधा दर्जन कांग्रेसी स्टार प्रचारक मायावती को जिताने के लिए रैली तक कर चुके हैं। मायावती का कड़ा मुकाबला भाजपा की मंजू त्यागी और सपा के राम शरण से है। मायावती इससे पूर्व पहली बार 1996 में और दूसरी बार 2002 में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर विधान सभा में पहुंची थीं, लेकिन इस बार के चुनाव में वह कांग्रेस की उम्मीदवार हैं। बसपा ने मायावती को हराने के लिए श्रीपाल को मैदान में उतारा है।

लखीमपुर-खीरी जिले की श्रीनगर विधान सभा क्षेत्र से वैसे तो मायावती के विरुद्ध 15 उम्मीदवार हैं, परंतु इस सुरक्षित विधान सभा क्षेत्र से उनका त्रिकोणीय मुकाबला भाजपा की दलित मंजू त्यागी और सपा के राम शरण से है। 2007 में इस सीट से सपा के डाक्टर एआर उस्मानी जीते थे, तब यह सामान्य सीट थी। नए परिसीमन में यह सीट सुरक्षित हो जाने के कारण मायावती ने बसपा से नाता तोड़कर कांग्रेस का टिकट ले लिया है।

वास्तव में मायावती, बसपा सुप्रीमो मायावती के मंत्रिमंडल में (11 अक्टूबर 2002 से 29 अगस्त 2003 तक) महिला कल्याण राज्यमंत्री रह चुकी हैं। अक्टूबर 1996 के विधान सभा चुनाव में मायावती को बसपा ने टिकट देकर लखीमपुर जिले की श्रीनगर (सामान्य सीट) से चुनाव लड़ाकर जिताया था। अनुसूचित जाति (पासी) की इंटर पास मायावती के पति रामेश्वर प्रसाद खीरी जिले के काशीनगर इलाके के रहने वाले हैं। वे सरकारी सेवा से अवकाश मुक्त हुए हैं। मायावती के दो पुत्र और एक पुत्री हैं। मायावती का बैडमिंटन प्रिय खेल है। पहली बार विधान सभा में वे सार्वजनिक उपक्रम एवं निगम समिति (1997-99), अनुसूचित जातियों, जनजातियों तथा विमुक्त जातियों संबंधी संयुक्त समिति (1999-2001) की सदस्या तथा दूसरी बार 2002 में विधायक बनने पर वे प्रतिनिहित विधायन समिति (2002-2003) की सभापति रहीं। मायावती मंत्रिमंडल में मायावती को 11 अक्टूबर 2002 को महिला कल्याण राज्‍यमंत्री बनाया गया। उसी समय मायावती अपने नाम को लेकर सुर्खियों में आईं।

दरअसल, बसपा सुप्रीमो मायावती को यह बात पसंद नहीं थी कि उनके सामने विधान सभा में कोई दूसरी दलित मायावती बैठे, लिहाजा उन्होंने अपनी पार्टी की विधायक मायावती पर दबाव डाला कि वे अपना नाम परिवर्तित कर लें। पार्टी मुखिया की आज्ञा का पालन करते हुए बसपा विधायक मायावती ने विधानसभा अध्यक्ष से आग्रह किया कि सदन के अभिलेखों में उनका नाम मायावती की जगह माया प्रसाद कर दिया जाए। इसी के बाद वह मायावती से माया प्रसाद हो गईं। यह और बात है कि हाईस्कूल के प्रमाण-पत्र और अन्य अभिलेखों में अभी भी उनका नाम मायावती ही है। वर्ष 2007 के विधान सभा चुनाव में मायावती तीसरी बार श्रीनगर से बसपा प्रत्याशी बनीं। उनका मुकाबला सपा के आरए उस्मानी से हुआ। माया को करीब साढे़ पांच हजार वोटों से हार का सामना करना पड़ा। इससे पूर्व 2002 में वे सपा के ही धीरेन्द्र बहादुर सिंह को 4462 मतों से हराकर दूसरी बार विधान सभा पहुंची थीं। दिलचस्पप बात यह है कि सामान्य निर्वाचन क्षेत्र से किसी दलित महिला के दूसरी बार जीतने का यह एक रिकार्ड था।

इस बार के चुनाव में मुख्यमंत्री मायावती ने मायावती को टिकट नहीं दिया तो कांग्रेस ने उन्हें अपने पाले में कर लिया। मायावती के भाग्य से इस बार नए परिसीमन में श्रीनगर की यह सीट सुरक्षित (अनुसूचित जाति) हो गई। अब मायावती को यहां से जिताने में कांग्रेस ने पूरी ताकत लगा रखी है। कांग्रेस के जाने-माने मुस्लिम चेहरे और साफ-सुथरी छवि वाले लखीमपुर खीरी के सांसद जफर अली नकवी को इस बार पार्टी की गुटबंदी के चलते तथा जितिन प्रसाद के इशारे पर चुनाव प्रचार अभियान समिति से दूर रखा गया। अपनी इस उपेक्षा से दुखी नकवी ने अपने संसदीय क्षेत्र की श्रीनगर विधान सभा से मायावती को जिताने में पूरी ताकत लगा रखी है। नकवी के चलते क्षेत्र का मुस्लिम एकजुट हो गया है। नकवी कहते हैं, ‘माया की जीत मेरी प्रतिष्ठा का सवाल बना गया है। हम यहां से उन्हें जरूर जिताएंगे।’’ वैसे मायावती ने पूर्व की तरह इस बार भी अपना नामांकन मायावती के नाम से ही किया है, लेकिन उनका प्रचार कांग्रेसी माया प्रसाद के नाम से कर रहे हैं। कांग्रेसी नेताओं को प्रचार के दौरान ‘‘मायावती को जिताओ’’ कहना थोड़ा असहज लग रहा है। इस सबके बावजूद क्षेत्र में मायावती की फिजा अच्छी है। पुराने बसपाई भी चाहते हैं कि विधान सभा में बहनजी के सामने मायावती जाकर बैठें और इस बार वे विधान सभा अभिलेखों में अपना नाम मायावती ही रखें।