यूपी चुनाव में दोस्‍त दोस्‍त ना रहा

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यही सियासत का सच है। कभी अनुराधा चौधरी की जुबान चौधरी अजित सिंह की तारीफ करते नहीं थकती थी लेकिन इस चुनाव में चौधरी अजित सिंह के खिलाफ पश्चिम उप्र में वह समाजवादी पार्टी का हथियार बनेंगी। यही हाल कुसुम राय का है। कल्याण सिंह की नजदीकियों के चलते सियासत में खासी चर्चित हुई कुसुम राय को भाजपा का हथियार बनेंगी कल्याण सिंह के खिलाफ। दरअसल दोनो पार्टियां अपनी-अपनी इन महिला नेताओं के दौरे इस हिसाब से लगा रही हैं, जिससे चौधरी अजित और कल्याण सिंह को काउंटर किया जा सके।

कभी रालोद में नम्बर दो की हैसियत रखने वाली पूर्व मंत्री अनुराधा चौधरी आगामी विधानसभा चुनाव में अजित सिंह के खिलाफ मैदान होंगी। दोनों के बीच बिगड़े रिश्तों का सियासी लाभ लेने की जुगत में समाजवादी पार्टी है। सो पार्टी की सदस्यता लेते ही अनुराधा को राष्ट्रीय महासचिव का ओहदा सौंप पश्चिम उप्र के जाट बहुल इलाकों में स्टार प्रचारक के तौर पर उतारकर सपा ने रालोद से पिछले चुनाव में गठबंधन तोड़ने का पुराना हिसाब चुकता करने का फैसला लिया।

वर्ष 2002 विस चुनाव से ऐन पहले रालोद द्वारा गठजोड़ तोड़ने का खामियाजा सपा को विशेष रूप से पश्चिमी उप्र में भुगतना पड़ा था। अब नए चुनाव की तैयारी है। रालोद प्रमुख अजित ने कांग्रेस का हाथ थाम पश्चिमी जिलों में सपा की मुश्किलें बढ़ा दी है। जिसका जवाब तलाशते हुए सपा ने अनुराधा चौधरी को अतिरिक्त तव्वजो देते हुए रणनीति तय की है। प्रचार के दौरान कांग्रेस से गठजोड़ कर केंद्र सरकार में मंत्री बने अजित सिंह को अनुराधा के जाट आरक्षण और भूमि अधिग्रहण कानून बनवाने जैसे सवालों का जवाब देना होगा।

ऐसा ही कुछ सियासी मोर्चेबंदी का नजारा भाजपा और जनक्रांति पार्टी (राष्ट्रवादी) के बीच भी देखने को मिलेगा। भाजपा के जी का जंजाल जक्रांपा मुखिया व पूर्व मुख्यमंत्री कल्याणा सिंह के हमलों के पलटवार को राज्यसभा सदस्य व पूर्व मंत्री श्रीमती कुसुम राय भी मैदान में होंगी। कल्याण सिंह वर्ष 2002 में अलग पार्टी बनाकर भाजपा के खिलाफ लड़े थे। जिसका नतीजा यह हुआ कि वर्ष 1996 में 174 सीट हासिल करने वाली भाजपा वर्ष 2002 में 88 विधानसभा क्षेत्रों में सिमट गई।