19 प्रतिशत मुस्लिम वोटर होंगे विधानसभा चुनाव में अहम

Uncategorized

उत्तर प्रदेश की कुल आबादी में करीब 19 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाले मुसलमानों को रिझाने के लिये भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर लगभग सभी पार्टियां जी-जान से जुटी हैं। देश की राजनीति में सबसे महत्वपूर्ण वोट-बैंक समझे जाने वाले मुसलमानों पर उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में कई पार्टियों का सियासी भविष्य टिका हैं। अब तक सियासी पार्टियों के हाथों का खिलौना रहे इस तबके के मतदाता इस बार फूंक-फूंक कर कदम रख सकते हैं।

प्रदेश पर करीब 40 साल तक शासन कर चुकी कांग्रेस ने मुसलमानों को लुभाने के लिये राज्य में चुनावी बयार शुरू होने के साथ ही अल्पसंख्यकों को साढ़े चार प्रतिशत आरक्षण का पासा फेंका है। वहीं, मुस्लिम मतदाताओं को अपना मानकर चल रही सपा इससे परेशान होकर सत्ता में आने पर आरक्षण के प्रतिशत में बढ़ोत्तरी करने का वादा करते नहीं थक रही। इस होड़ में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस सबसे आगे दिख रही हैं। कहना गलत नहीं होगा कि प्रदेश में सपा और काफी हद तक कांग्रेस की चुनाव में सफलता के लिये मुसलमान वोट कुंजी साबित होते दिख रहे हैं।

आंकड़ों पर गौर करें तो प्रदेश की कुल आबादी में मुसलमानों की संख्या करीब 19 प्रतिशत है और राज्य के रामपुर, मुरादाबाद, बिजनौर, सहारनपुर, बरेली, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बहराइच, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर, ज्योतिबाफुले नगर, श्रावस्ती, बागपत, बदायूं, गाजियाबाद, लखनउ, बुलंदशहर तथा पीलीभीत की कुल 113 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हो सकते हैं। इन जिलों में मुसलमानों की आबादी का प्रतिशत 20 से 49 फीसद के बीच है और नये परिसीमन के बाद सामने आया 113 सीटों का यह आंकड़ा किसी भी दल की किस्मत बना या बिगाड़ सकता है। अगर मुसलमानों का 30 प्रतिशत वोट भी किसी एक दल के पास पहुंच गया तो वह अहम हो सकता है। कांग्रेस ने हाल में अल्पसंख्यकों के लिये साढ़े चार प्रतिशत आरक्षण देकर मुसलमानों को खुश करने की कोशिश की है। वहीं सपा की प्रादेशिक इकाई के अध्यक्ष अखिलेश यादव विधानसभा चुनाव के बाद सत्ता में आने पर इस प्रतिशत में इजाफे का वादा कर रहे हैं, लेकिन आरक्षण का यह दांव कितना कारगर साबित होगा यह तो वक्त ही बताएगा।

हर बार की तरह इस बार भी सियासी पार्टियां मुस्लिम आरक्षण, राजनीति में समुचित प्रतिनिधित्व और मुसलमानों के पिछड़ेपन को दूर करने के मुद्दों को लेकर अनेक वादे कर रही हैं, लेकिन शिया पर्सनल ला बोर्ड इस बार इन दलों को अपने वादों को अमली जामा पहनाने के लिये मजबूर करने की कोशिश कर रहा है। शिया पर्सनल ला बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना यासूब अब्बास कहते हैं कि इस बार पार्टियों के कोरे वादे नहीं चलेंगे बल्कि उन्हें खासकर शिया मुसलमानों के कल्याण के लिये पक्की योजना पेश करनी होगी और उसे अपने-अपने चुनाव घोषणापत्रों में भी शामिल करना होगा। अब्बास ने कहा कि मुसलमानों के मसलों को लेकर उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, पार्टी महासचिव दिग्विजय सिंह, समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव और राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजित सिंह से मुलाकात की, लेकिन उनमें से किसी ने भी समस्याओं को दूर करने का आश्वासन तक नहीं दिया।

बहरहाल, मुस्लिम मतदाताओं को लेकर उनके प्रतिनिधि संगठनों के आकलन और कोशिशें कितनी रंग लाएंगी, यह तो वक्त ही बताएगा। मगर इतना तय है कि चुनावी मेले में हर दल उनके वोट का तलबगार है।