असलहों के बल पर सियासी साम्राज्य चलाने वालों पर निर्वाचन आयोग की नजर

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इस बार निर्वाचन आयोग की नजर राज्य के ऐसे सियासी रसूखदारों और बाहुबलियों पर है जो असलहों के बल पर अपना सियासी साम्राज्य चलाते हैं। आयोग ऐसे लोगों पर कड़ी नजर रख रहा है और उन पर नकेल कसने की तैयारी में जुट गया है।

 

हाल ही में प्रदेश के दौरे पर आए मुख्य निर्वाचन आयुक्त एस.वाई. कुरैशी ने राज्य में पिछले एक साल में जारी किए गए शस्त्र लाइसेंसों और जिलाधिकारियों के पास लम्बित पड़े आवेदनों को लेकर चिंता जाहिर की थी। प्रदेश में दशक के भीतर लाइसेंसी शस्त्रों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। पहले लोग अपनी सुरक्षा के लिए शस्त्र का लाइसेंस लेते थे, लेकिन अब यह एक स्टेटस सिम्बल बन गया है। खासतौर से ठेके-पट्टे और सियासी रसूख वालों के लिए लाइसेंसी शस्त्र रखना और उसका प्रदर्शन जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन गया है।

 

प्रदेश में शस्त्र लाइसेंसों की बढ़ती संख्या से निर्वाचन आयोग यूं ही नहीं परेशान है। मौजूदा समय में शस्त्र लाइसेंसों की संख्या 10 लाख को पार कर गई है। एक साल में ही 42 हजार से अधिक शस्त्र लाइसेंस जारी किए गए हैं जबकि अभी भी दो लाख से अधिक आवेदन जिलाधिकारियों के पास लम्बित पड़े हैं। कुरैशी ने चुनावी तैयारियों की समीक्षा करने के बाद मंगलवार को कहा था कि शाहजहांपुर, चित्रकूट, गोरखपुर और हरदोई सहित कुछ अन्य जिलों में पिछले कुछ महीनों में बड़ी संख्या में हथियारों में लाइसेंस जारी किए गए हैं, जो चिंता की बात है। बकौल कुरैशी, ”पिछले दो से चार महीने के भीतर शाहजहांपुर में 220, हरदोई में 210, लखनऊ में 198, इलाहबाद में 114, चित्रकूट में 148 और आजमगढ़ में 111 लाइसेंस जारी किए गए हैं।

” राज्य के अतिरिक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी मृत्युंजय नारायण ने कहा, ”हम केंद्रीय कार्यालय से मिलने वाले दिशा-निर्देशों का इंतजार कर रहे हैं। उसके आधर पर हम आगे की कार्रवाई करेंगे।” उन्होंने कहा कि चुनाव से पहले हथियारों को जब्त कर लिया जाएगा और फिर ऐसे लोगों को चिह्न्ति किया जाएगा जिनके ऊपर गड़बड़ी फैलाने का तनिक भी संदेह होगा। इसके अलावा शस्त्र रखने वालों पर कड़ी निगरानी भी रखी जाएगी। चुनाव के दौरान यूं तो हर बार प्रशासन का जोर शस्त्रों को जमा कराने पर होता हैं लेकिन प्रभावशाली लोगों के शस्त्र उनके पास ही रह जाते हैं और ऐसे ही लोग चुनाव के दौरान प्रशासन के लिए परेशानियों का सवब बन जाते हैं।

 

वैसे भी उत्तर प्रदेश में सत्तापक्ष से जुड़े लोगों को चुनावों से पहले बड़ी संख्या में लाइसेंस जारी किए जाने का इतिहास रहा है। वर्ष 2007 में मुलायम सिंह यादव के शासनकाल के दौरान शिकायतों के आधार पर निर्वाचन आयोग ने उनके शासनकाल के दौरान जारी हुए शस्त्र लाइसेंस का ब्योरा तैयार कराया था, जिससे पता चला था कि मात्र तीन वर्षो में मुलायम सरकार ने नौ हजार से अधिक लाइसेंस जारी किए थे। यही नहीं, वर्तमान सरकार तो पिछले एक माह के भीतर ही 2800 लोगों को शस्त्र लाइसेंस जारी कर चुकी है।

 

कई जिलों के जिलाधिकारी रह चुके एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने बताया कि शस्त्र लाइसेंस जारी करने में हमेशा ही समस्या आती है क्योंकि सियासी रसूख वाले लोग अपने चहेतों को लाइसेंस जारी करवाने के लिए दबाव बनाते हैं। उनके मुताबिक बेरोजगारी भी लाइसेंसी शस्त्र के प्रति आकर्षण पैदा कर रही है। निजी सुरक्षा एजेंसियां शस्त्र रखने वाले युवाओं को ही सुरक्षाकर्मी के रूप में नौकरी देती हैं इस वजह से भी जिलाधिकारियों के यहां इतने बड़े पैमाने पर अर्जियां लम्बित पड़ी रहती हैं।